सीवान के अस्पताल रोड निवासी चंद्रशेखर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू मोहम्मद शहाबुद्दीन के खौफ और आतंक की जीती-जागती निशानी हैं। चंदा बाबू शहाबुद्दीन की खिलाफत करनेवाले संभवत: आखिरी शख्स हैं। 70 साल के ये बुजुर्ग अपने तीन-तीन बेटों को खो चुके हैं। गितीश और सतीश को साल 2004 में तेजाब में डुबो-डुबो कर मार दिया गया जबकि उस घटना के प्रत्यक्षदर्शी बेटे राजीव रौशन को साल 2014 में मामले में गवाही देने के ठीक तीन दिन पहले ही मौत की नींद सुला दिया गया। कोर्ट ने इस मामले में शहाबुद्दीन को साल 2015 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई जबकि राजीव रौशन की हत्या के मामले में मुख्य साजिशकर्ता करार दिया। हालांकि इसका ट्रायल अभी तक
शुरू नहीं हो सका है।

शहाबुद्दीन के भागलपुर जेल से रिहा होने पर चंदा बाबू हताशाभरे लहजे में कहते हैं कि “22 लाख की आबादी वाले सीवान में अगर सिर्फ एक या दो व्यक्ति नाखुश है तो वह कुछ  नहीं कर सकता।” चंदा बाबू कहते हैं “मैं एक अभागा और मजबूर बाप हूं जो तीन-तीन बेटों के मरने के बाद भी जिंदा हूं और एक विकलांग बेटे के साथ जीवन बसर कर रहा हूं। अब  मेरे मन में कोई खौफ नहीं है और इससे ज्यादा बुरा क्या हो सकता है कि मैंने अपने तीन-तीन जवान बेटों को खोया है। लेकिन शहाबुद्दीन जैसे लोगों के लिए सही ठिकाना जेल ही है।” चंदा बाबू बीमारी की वजह से पिछले ही साल अपने किराने की दुकान बंद कर चुके हैं। उनका परिवार किराये से मिलनेवाले मात्र 10 हजार रुपये से ही चलता है।

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चंदा बाबू ने शहाबुद्दीन की जमानत का विरोध करने के लिए किसी तरह सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण से संपर्क साधा है। वो कहते हैं कि राजीव रौशन मर्डर केस में जल्द ही उनका कोई नजदीकी प्रशांत भूषण को कागजात मुहैया कराएगा। प्रशांत भूषण ने भी सुप्रीम कोर्ट में केस की पैरवी करने पर अपनी सहमति दे दी है। चंदा बाबू कहते हैं “पिछले दो साल में कोई भी बड़ा वकील उनके साथ खड़ा नहीं हुआ। सभी ने शहाबुद्दीन के खौफ की वजह से बीच मझधार में हमारे केस को छोड़ दिया।” वो  कहते हैं “यह वही नीतीश सरकार है जिसने शहाबुद्दीन के खिलाफ स्पीडी ट्रायल चलाने का वादा किया था और कुछ हद तक काम भी किया था।”

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बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील रंजीत कुमार को साल 2010 में केस की पैरवी के लिए बुलाया था जब शहाबुद्दीन के खिलाफ ट्रायल चल रहा था। लेकिन राजीव रौशन हत्या केस में शहाबुद्दीन की जमानत याचिका का विरोध करने के लिए सरकार ने मशहूर वकील वाई वी गिरि के सामने एक सामान्य एपीपी को खड़ा कर दिया। वो एपीपी गिरि का विरोध करने में कोर्ट में नाकाम रहा और नतीजा आरजेडी के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन जेल से बाहर हैं।

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चंदा बाबू आश्चर्य जताते हुए कहते हैं कि “16 जून 2014 को उनके तीसरे बेटे की हत्या हुई लेकिन आज तक सरकारी लापरवाही की वजह से उसका ट्रायल शुरू नहीं हो सका है। यह सरकारी ढीलापन उजागर करता है।” वो कहते हैं कि “अब हमारा एकमात्र मकसद है कि राजीन रौशन केस में जल्द से जल्द ट्रायल शुरू हो।” चंदा बाबू कहते हैं कि “हमें हमारे कमजोर पैरों पर अब भी भरोसा है इसलिए प्रशांत भूषण के सहयोग से शहाबुद्दीन की जमानत को चैलेंज करने जा रहे हैं।”

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चंदा बाबू और उनकी पत्नी कलावती पूरी तरह से अपने बेटे नीतीश राज पर निर्भर हैं, जो खुद शारीरिक रूप से अक्षम हैं। उनका परिवार नहीं चाहता है कि उनका आखिरी चिराग  नीतीश राज कैमरे के सामने आए और मीडिया से बात करे। नीतीश ही इनलोगों के लिए खाना बनाता है और उनकी हरसंभव सेवा करता है। सीवान छोड़ने के सवाल को चंदा बाबू सिरे से खारिज करते हैं। वो कहते हैं कि “उनके पास अब खोने को कुछ नहीं है। वो यहां सिर्फ अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं।”