बिहार में चुनाव परिणाम के बाद मंत्री बने मेवालाल चौधरी पर बिहार कृषि विश्वविद्यालय की नियुक्तियों में घोटाले के आरोप हैं। चौतरफा घिरने के बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। पटना हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस सैयद मोहम्मद महफूज की अध्यक्षता वाली जांच कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया था, ‘मेवालाल बड़े पैमाने पर हेरफेर, पक्षपात और मैनिपुलेशन के लिए जिम्मेदार हैं।’ कमिीशन की 2016 की रिपोर्ट के आधार पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
आइए हम आपको बताते हैं कि इस इन्क्वायरी रिपोर्ट में क्या कहा गया था, ‘असिस्टेंट प्रोफेसर/जूनियर साइंटिस्ट की नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर हेरफेर, पक्षपात, बदलाव, अकैडमिक पॉइंट्स में जोड़-घटाव, रिमार्क्स में ओवर राइटिंग की गई है जो कि नियमों का उल्लंघन है। अपने लोगों को सिलेक्ट करने के लिए यह सब किया गया। डॉ. मेवालाल उस वक्त वीसी और सिलेक्शन बोर्ड के चेयरमैन रहे इसलिए वह इसके लिए जिम्मेदार हैं।’ रिपोर्ट में कहा गया, ‘एक पब्लिक सर्वेंट का इस तरह विश्वास तोड़ना और धोखेबाजी करना स्वीकार्य नहीं है। 2010 से 2015 के बीच वीसी रहने के दौरान 2012 में हुई भर्तियों में गड़बड़ी की गई है जो कि आपराधिक साजिश है।’
चौधरी के खिलाफ शिकायतों के बाद राज्यपाल और विश्वविद्यालय के चांसलर ने जस्टिस आलम कमिशन का गठन किया था और जांच करने के लिए कहा था। साल 2011 में बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने 281 वैकंसी निकाली थीं। रिपोर्ट में यह भी पूछा गया था कि जब सिलेक्शन बोर्ड ने केवल 115 नाम चयनित किए थे तो 161 लोगों की नियुक्ति कैसे हुई। क्या चयन समिति के सदस्य मूक दर्शक बने हुए थे?
रिपोर्ट में कहा गया, ‘161 लोगों की नियुक्तियां हुई हैं जबकि मेरिट लिस्ट में केवल 115 नाम हैं। डॉ. मेवालाल चौधरी की हैंडराइटिंग में ही चयनित लोगों के नाम के आगे एसएल लिखा हुआ है।’ रिपोर्ट में बताया गया कि डॉ. मेवालाल ने अपना पक्ष रखा और स्वीकार किया कि उन्होंने खुद ही कॉलम में रिमार्क भरे थे। दूसरे गवाह ने भी यह बात स्वीकार की। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि चौधरी ने कुछ नामों के आगे एक्सिलेंट रिमार्क भी दिया था। उन्होंने कमिशन को बताया कि इसका मतलब बहुत अच्छा पर्फॉर्मेंस था लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनका चयन हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सोशल साइंस के लिए इंटरव्यू में शामिल हुए सोवन देबनाथ का एसएल नंबर 310 था लेकिन उनके नाम के आगे एक्सिलेंट लिखा गया था। नियुक्त लोगों में भी उनका नाम नहीं था, इसका मतलब एक्सिलेंट का मतलब चयनित होना बिल्कुल नहीं था।
जांच रिपोर्ट में बताया गया कि सभी स्थितियां यही बताती हैं कि डॉ. मेवालाला चौधरी खुद ही नियुक्तियों को हैंडल कर रहे थे और रिमार्क भी दे रहे थे। मार्क्स के टेबुलेशन और कुल मार्क्स निकलना फिर रिमार्क देना, सारा उनके ही हाथ में था। कमिशन ने पाया कि कम से कम 20 कैंडिडेट ऐसे थे जिनको अच्छे पॉइंट मिले बावजूद इसके चयनित नहीं किए गए। उनके अकैडमिक रेकॉर्ड के मार्क्स 50 से ज्यादा थे लेकिन इंटरव्यू ऐंड प्रजंटेशन में 10 में से 0.1 से 2 नंबर तक ही दिए गए। इसमें 28 और 39 मार्क्स वाले भी सिलेक्ट हो गए क्योंकि इंटरव्यू में उन्हें पूरे नंबर दिए गए थे। चौधरी अभी जमानत पर हैं और विजिलेंस डिपार्टमेंट को उनके खिलाफ चार्जशीट फाइल करनी है। भागलपुर के डीआईजी सुजीत कुमार ने कहा, ‘इस मामले में एक सप्लिमेंट्री चार्जशीट फाइल की जा सकती है। कोरोना की वजह से जांच में देरी हो गई।’