देशभर के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए ली जाने वाली राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) के नियमों को सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) द्वारा भारत सरकार के नियमों को तोड़ने-मरोड़ने के खिलाफ आख़िरकार आंदोलनकारी छात्रों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। कोर्ट 17 फ़रवरी को मामले की सुनवाई करेगा। असल में आंदोलन के दबाव में परीक्षा में तीन मौके इसी दफा से गिनने की मांग तो मान ली गई लेकिन अधिकतम उम्र के सवाल पर सीबीएसई चुप्पी साधे हुए है। सीबीएसई ने नीट के लिए अधिकतम उम्र सीमा 25 साल तय की है। इसकी वजह से सालों से मेडिकल की तैयारी कर रहे करीब 80 हजार छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में लटक गया है। इस बाबत राय सभ्य सांची एवं अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है।
मालूम हो कि 17 जनवरी 2017 को पत्रांक यू.12023/16/2010-एमबी-II स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सीबीएसई के संयुक्त सचिव डा. संयम भारद्वाज के नाम भेजे पत्र के जरिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) के नियमों का जिक्र करते हुए इम्तिहान लेने की हरी झंडी दी। पत्र में 7 नियम का हवाला दिया है जिनमें दूसरे नम्बर का नियम छात्रों की उम्र और परीक्षा में बैठने के अधिकतम मौके के बारे में है। इसके मुताबिक मेडिकल और डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया ने तय किया है कि जिनकी आयु 31 दिसंबर 2017 को 17 साल पूरी हो रही है, ऐसे छात्र-छात्राएं नीट परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। उसी नियम में यह भी लिखा है कि इससे ऊपर की उम्र और परीक्षा देने के मौके की कोई सीमा की पाबंदी नहीं होगी। साथ ही लिखा है कि यह नियम ऑल इंडिया कोटा सीट पर भी लागू होगा। पत्र पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अवर सचिव अमित बिश्वास का दस्तखत है। जिसकी कॉपी भारतीय चिकित्सा और दंत चिकित्सा परिषद को भी भेजी गई है। इसके अलावे भारतीय चिकित्सा परिषद् के नियम 1956 में भी इम्तिहान में बैठने की ऊपरी या अधिकतम सीमा का कोई उल्लेख नहीं है।
तो ऐसे में सवाल उठता है कि सीबीएसई ने नीट के संबंध में 31 जनवरी को जारी नोटिफिकेशन में इम्तिहान देने के तीन मौके (उसमें वे भी शामिल है जो एआईपीएमटी दे चुके) और 25 साल की उम्र पूरी कर चुके छात्रों को प्रवेश परीक्षा में बैठने से रोक देने का पेंच कैसे और किसने लगाया। यह समझ से परे है। इसी को लेकर पूरे देश में नीट देने के इच्छुक छात्रों ने आंदोलन कर दिया है। हालांकि, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय आंदोलन के मद्देनजर इसमें एक संशोधन करने को मजबूर हुआ है। जारी नई अधिसूचना के मुताबिक अब तीन मौके इस बार की नीट परीक्षा से गिने जाएंगे। मसलन, पिछले प्रयासों को नहीं गिना जाएगा लेकिन उम्र सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है। नए नियम के तहत सामान्य वर्ग के लिए उम्र 25 साल और आरक्षित वर्ग के लिए 30 साल ही तय है। अब छात्र-छात्राओं का गुस्सा उम्र सीमा को लेकर है। ज्यादातर छात्रों ने बातचीत में बताया कि अब तक सीबीएसई के 15 फीसदी और राज्य के 85 फीसदी सीटों के लिए ऊपर की कोई उम्र निर्धारित नहीं थी। यह अचानक आयु का फंडा कहां से आ गया। वह भी ऐन वक़्त पर। यह नीट की तैयारी कर रहे छात्रों के साथ नाइंसाफी है। साल भर तैयारी में लगे रहे। समय और पैसा बर्बाद हुआ। अब फॉर्म भरने के समय नया नियम आड़े खड़ा कर दिया गया। इसे केंद्र सरकार फ़ौरन वापस ले।
असल में बीते साल हुई नीट परीक्षा में कई छात्र-छात्राएं सफल तो हुए पर निजी मेडिकल कॉलेजों की काउंसलिंग कराने में राज्य सरकार ने वैसी दिलचस्पी नहीं दिखाई। नतीजतन, निजी मेडिकल कॉलेज ने अधिकतर सीटों पर खुद ही दाखिला ले लिया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि काउंसलिंग कराने का काम राज्य सरकारों का है। और तो और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों ने फ़ीस में भी भारी इजाफा कर दिया है। नतीजतन इनकी फ़ीस हर मां-बाप या अभिभावक के बूते के बाहर है। जाहिर है इस वजह से कई विद्यार्थी दाखिला नहीं ले सके। अब उम्र सीमा का नया बखेड़ा सामने खड़ा हो गया है। इसी वजह से पूरे देश में आंदोलन चल रहा है। आंदोलन पर उतारू खासकर बिहार से जुड़े विद्यार्थियों ने मुख्यमंत्री को मांग पत्र सौपा है। उसमें गुजारिश की गई है कि वे मामले में दखल दें क्योंकि बिहार के ज्यादातर छात्र-छात्राएं गरीब परिवार से हैं। मुख्यमंत्री को सौंपे पत्र में कहा गया है कि ज्यादातर बच्चों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वो महंगे कोचिंग कर सकें। लिहाजा, अपने घरों में ही रहकर खुद पढ़ाई कर परीक्षा की तैयारी करते हैं। इस वजह से सफल होने में देरी भी होती है। इसलिए अधिकतम उम्र सीमा इनके भविष्य को अंधकार में ठेल देना जैसा है।
बहरहाल, 31 जनवरी 2017 से नीट के लिए फॉर्म भरना शुरू हो चुका है। मगर उम्र के पंगा की वजह से तकरीबन 80 हजार छात्र-छात्राएं फॉर्म नहीं भर पा रहे हैं जिन्होंने अपने सुनहरे भविष्य के लिए बीते साल से लगातार मेहनत कर कामयाबी के सपने देखे हैं। उन्हें अब पढ़ाई छोड़ आंदोलन और अदालत के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।