बिहार में पर्यावरण का जायका बिगाड़ रही हैं जुगाड़ गाड़ियां। इनसे सभी परेशान हैं। जुगाड़ गाड़ी के रहते सड़कों पर जाम की समस्या से निजात पाना मुश्किल है। सभी तमाशबीन हैं। कमिश्नर से लेकर डीएम, एसएसपी तक बैठकें और बातें तो रोजाना करते हैं पर नतीजा सिफर है और धूं-धूं कर सड़कों पर अपनी रफ़्तार से जुगाड़ अपना जुगाड़ कर दौड़ रही है। ये हालत बिहार की राजधानी पटना समेत तमाम जिलों और गांव-कस्बों का है। ना लाइसेंस, ना रोड परमिट, ना ही कोई टैक्स और ना ही कोई ड्राइविंग लाइसेंस फिर भी मजे से 2-4 टन सामान लादकर जहरीला धुआं छोड़ती जुगाड़ गाड़ी राज्यभर में दौड़ रही है। सरकार को हो रहे नकद नुकसान के अलावे वायु और ध्वनि प्रदूषण लोगों को मुफ्त में खतरनाक बीमारियां भी हो रही हैं। पर्यावरण के जानकार बताते हैं कि जुगाड़ गाड़ी दूसरे वाहनों की तुलना में 14 गुणा ज्यादा कार्बन मोनो आक्साइड छोड़ती हैं जो पर्यावरण और जिंदगी के लिए बहुत खतरनाक है।
आलम यह है कि अगर जुगाड़ गाड़ी आपके बगल से निकल जाय तो एक बार सांस लेना मुश्किल हो जाता है। भले ही भागलपुर स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है लेकिन यहां भी प्रदूषण एक मजबूरी बन चुकी है। कमोबेश यही हाल पूरे बिहार का है। सभी प्रदूषण के शिकार और परेशान हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि जुगाड़ गाड़ी का मतलब क्या है? दरअसल, साइकिल रिक्शेवाले ठेले में टायर वाले पहिये और उसमें जेनरेटर फिट कर, डीजल डालकर धूं-धूं धुंआ छोड़ती गाड़ियां ही जुगाड़ हैं। इस जुगाड़ का आविष्कार पश्चिम बंगाल में हुआ जो धीरे-धीरे बिहार-झारखंड के प्रायः शहरों गांवों में फैल गया। इसको तैयार करने में मुश्किल से 50 से 60 हजार रुपए खर्च होते हैं। यह लागत दो महीने में वसूल हो जाता है। जाहिर है इस जुगाड़ की वजह से साइकिल ठेले के दिन लद गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस पर किसी प्रकार की रोक-टोक नहीं है। ना ही लाइसेंस और ना ही कोई फ़ीस। जो कमाया खुद का। नतीजतन, दूसरे माल ढोने वाले वाहन निठल्ले हो गए। माल ढोने का भाड़ा जुगाड़ के मुकाबले ज्यादा कोई देने तैयार नहीं। नूरपुर के अजित यादव बताते हैं कि माल ढोने वाले दूसरे वाहनों को सभी का जुल्म सहना मजबूरी है।
प्रशासन बीच-बीच में जुगाड़ पर बंदिश लगाने की मुहिम चलाने की सोचती भी है तो ये लाल झंडा लेकर प्रदर्शन और धरना पर उतारू हो जाते हैं। पिछले साल पहली जून से सड़कों पर जुगाड़ गाड़ी को बंद करने की बात प्रशासन ने कही थी। मगर कुछ नहीं हुआ बल्कि जुगाड़ गाड़ी वालों ने यूनियन बना ली और लाल झंडा लगा लिया। इसके एवज में 300-500 रुपए वसूले गए। लाल झंडे का पैगाम कोई डर नहीं। यूनियन वालों का कहना है कि इन पैसों से अदालत का दरवाजा खटखटाया जायगा। ताकि जुगाड़ को सड़क पर और वाहनों की तरह चलने का कानूनी हक मिल सके। कई 500 रुपए के एवज में मिले लाल झंडे को लाइसेंस मान बैठे हैं तभी सुबह घर से निकलते वक्त इनकी गाड़ी पर लाल झंडा लहराता रहता है। बिहार में जुगाड़ गाड़ी कोढ़ में खुजली का काम कर रही है। इसमें कोई शक नहीं है। ऐसा डॉक्टर शशिकांत जोशी और डॉक्टर पुनीत परशुरामपुरिया ने बातचीत में बताया। इससे निकलने वाले धुएं आँखों के लिए खतरनाक होने के साथ-साथ फेफड़े को भी सीधा नुकसान पहुंचा रहे हैं।
वीडियो देखिए- ऐसी होती है जुगाड़ गाड़ी