मुंगेर ज़िले की तारापुर विधानसभा सीट हमेशा चर्चा में रही है। चाहे शकुनी चौधरी की दबंगई की वजह रही हो या मेवालाल चौधरी के भ्रष्टाचार के किस्से के कारण। सुशासन बाबू कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शिक्षा मंत्री मेवालाल का मुद्दा मीडिया से लेकर विपक्ष ने सुर्खियों में ला दिया है। तीन दिनों तक सरकार में चले खेल में आखिरकार मंत्री पद से मेवालाल को इस्तीफा देना पड़ा। ऊपर से रिटायर आईपीएस अभिताभ दास के पत्र ने खुजली में खाज का काम कर दिया। हालांकि मेवालाल चौधरी ने एक पत्रकार को आरोपों को सिरे से खारिज कर रिटायर आईपीएस को कानूनी नोटिस भेजने की बात कही है।

आइए अब हम तारापुर विधान सभा क्षेत्र से चुने गए जन प्रतिनिधि की बात करते है। शकुनी चौधरी 1985 में निर्दलीय लड़े और विधायक चुने गए। 1990 का चुनाव इन्होंने कांग्रेस पार्टी से लड़ा और जीते। 1995 के चुनाव में इन्होंने समता पार्टी का उम्मीदवार बन फतह हासिल की। साल 2000 और 2005 का चुनाव राजद प्रत्याशी की हैसियत से लड़े और जीते। इस बीच ये मुंगेर के सांसद के लिए निर्वाचित हुए तो उपचुनाव इनकी पत्नी पार्वती देवी जीती हैं। मसलन 25 साल तक यह सीट एक परिवार के कब्जे में रही।

1995 का चुनाव हिंसक होने की वजह तारापुर सुर्खियों में आया था। उस वक्त शकुनी चौधरी कांग्रेस छोड़ समता पार्टी का दामन थाम चुके थे। विधानसभा के चुनाव हो चुके थे। कांग्रेसी उम्मीदवार सच्चिदानंद सिंह अपने पांच समर्थकों के साथ मतगणना केंद्र जा रहे थे। इसी दौरान लौना-परसा गांव के बीच नवटोलिया के नजदीक घात लगाए हमलावरों ने बमों और गोलियों से हमला कर दिया था। इसमें कई लोग मारे गए।

इतना ही नहीं मुंगेर ज़िला जनता दल अध्य्क्ष प्रभाकर सिंह से इनके नजदीकी रिश्ते थे और घटना वाली जगह के नजदीक ही इनका भी गांव है। बताते हैं कि ये सच्चिदानंद सिंह को लेकर तारापुर रेफरल अस्पताल ले कर पहुंचे तो हमलावरों ने इन्हें भी अस्पताल में ही गोलियां दाग छलनी कर दिया था। उनकी मौत भी ठौर पर ही हो गई थी। यह बात 29 मार्च 1995 की है। कुल नौ लोगों की हत्या पूरे देश में सुर्खियों में थी। मतगणना का काम चुनाव पर्यवेक्षक एएम सर्राफ और एम स्वामी की रिपोर्ट मिलने के बाद निर्वाचन आयोग ने उस रोज रोक दिया था।

इस हत्याकांड में शकुनी चौधरी समेत 33 लोग नामजद थे। इस मामले का आगे जाकर क्या हश्र हुआ, इसका पता नहीं है। मगर दूसरे रोज हुई मतगणना में शकुनी चौधरी फिर विधायक निर्वाचित घोषित किए गए। जनसत्ता ने उस वक्त भी खबर को प्रमुखता से छापी थी। दिलचस्प बात कि 2010 विधानसभा चुनाव से शकुनी चौधरी के दिन गर्दिश में आ गए। राजद की टिकट पर वह चुनाव लड़े मगर जदयू की नीता चौधरी से हार गए। 2015 चुनाव में इन्होंने हम पार्टी का दामन थाम लिया और चुनाव लड़े। इस बार नीता चौधरी के पति मेवालाल चौधरी से पराजित हो गए। अबकी यानी 2020 चुनाव में इन्होंने किस्मत नहीं आजमाई। मेवालाल चौधरी ने राजद की दिव्या प्रकाश को परास्त किया।

बता दें कि 1985 से 2010 तक शकुनी चौधरी और 2010 से अबतक मेवालाल चौधरी परिवार के शिकंजे में है तारापुर विधानसभा सीट। एक की दबंगई और रुतबे और दूसरे के भ्रष्टाचार की वजह से यह क्षेत्र भले ही चर्चा में आया हो मगर तारापुर का विकास का चक्का जस का तस थमा हुआ। तारापुर बाजार या इनके सटे गांवों में यदि आप 20-25 साल पहले गए हों तो आज की तस्वीर उस वक्त से ज्यादा कुछ बदली नहीं है। सड़कें पक्की, बिजली आपूर्ति , बैलगाड़ी की जगह माल ढोने वाले ऑटो , ब्लाक भवन पर रंग-रोगन छोड़कर आपको कुछ बदला नजर नहीं आता है।

आजकल चौक-चौराहों पर मेवालाल चौधरी के शिक्षा मंत्री बनने की खुशी और फिर तीन दिन बाद ही हटा दिए जाने के बाद मायूसी का माहौल छाया है। लोजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य मिथिलेश कुमार सिंह कहते है कि यह तारापुर की जनता का अपमान मुख्यमंत्री ने किया है। इस्तीफा ही लेना था तो मंत्री क्यों बनाया? वहीं भाजपा के प्रखंड अध्यक्ष शंभु शरण चौधरी ने कहा कि नैतिकता के आधार पर शिक्षा मंत्री पद से त्यागपत्र दिया है।

मेवालाल चौधरी के कुलपति रहते भागलपुर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय में 166 शिक्षक और वैज्ञानिक बहालियों में भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से तारापुर एक बार फिर सुर्खियों में आया है। इसे लेकर मीडिया और विपक्ष हमलावर है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव कहते है कि भ्रष्टाचार के आरोपो से घिरे मेवालाल चौधरी को मंत्री बनाया ही क्यों ? इसमें सारा कसूर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है। इन्होंने जानबूझकर इन्हें शपथ दिलाई और शिक्षा मंत्री का प्रभार ग्रहण करने दिया। जबकि जदयू नेताओं का कहना है कि इस्तीफा लेकर