बिहार में दिव्यांग से विवाह करने पर सरकार की ओर से 50 हजार रुपए मिलेंगे। लड़का या लड़की दोनों मे से कोई भी दिव्यांग हो इससे फर्क नहीं पड़ेगा। अगर दोनों ही दिव्यांग है तो यह रकम दोगुनी दी जायगी। मुख्यमंत्री निशक्तजन विवाह प्रोत्साहन अनुदान योजना 2016 के तहत यह रकम दी जानी है। मगर इस योजना का तरीके से प्रचार प्रसार न होने से इसका फायदा जमीनी हकीकत नहीं बन पाया है। जिस तरह शराबबंदी का ढिंढोरा पीटा जाता तो शायद ज्यादा दिव्यांगों को लाभ मिल पाता।

बिहार सरकार के सामाजिक सुरक्षा कोषांग के सहायक निदेशक बताते हैं कि योजना के तहत आवेदन निकालने का फरमान सरकार से मिला है। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को योजना का फायदा मिल सके। मगर वैसी दिलचस्पी नहीं दिख रही। दरअसल, लोगों को पता ही नहीं कि ऐसी भी योजना बिहार में है।

नीतीश सरकार का मानना है कि दिव्यांग अपने को उपेक्षित महसूस न करे और उनकी भी गृहस्थी आम नागरिकों की तरह बसे। योजना बीते साल अप्रैल से शुरू हुई है। मगर जानकारी के अभाव में एक साल में किसी को कोई खास फायदा नहीं मिला। इसी से पटना में बैठे आला अफसर फिक्र में हैं और जिलों में तैनात अधिकारियों को आवेदन जुटाने को कहा है।

इस योजना की खासियत है कि दिव्यांग गरीबी रेखा के नीचे या ऊपर या किसी भी जाति धर्म का हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सभी को बगैर भेदभाव के फायदा मिलेगा। मगर कुछ शर्त जरूर है। आवेदन देने वाला कम से कम 10 सालों से बिहार में रह रहा हो। 40 फीसदी दिव्यांग होना चाहिए। विवाह के समय लड़के की उम्र 21 और लड़की की 18 साल हो। दी जाने वाली रकम फिक्स डिपॉजिट बैंक में वर वधु के नाम पर जमा रहेगी। जिसे 3 साल के पहले तोड़ा नहीं जा सकेगा। इसके पीछे सोच है कि पैसों के लालच में शादी न रचाई जाए।

आवेदन गांव की नगर पंचायत ब्लॉक से लेकर जिला अधिकारी के कार्यालय में जमा कराया जा सकता है। लेकिन, यह योजना प्रचार प्रसार नहीं होने के कारण दम तोड़ रही है। कायदे से जिले के आला अफसरों को गांव-गांव और जन-जन तक योजना के बारे में बताने की जहमत उठानी चाहिए थी। लेकिन प्रशासन ने इसके प्रति गंभीरता नहीं दिखाई। नतीजा ये रहा कि यह योजना फाइलों तक ही सीमित रह गई और लोगों को इस बारे में जानकारी ही नहीं।