जब कान्हा का भजन सुनने आई भीड़ को पता चला कि 500 रुपए का टिकट लगेगा तो भीड़ आयोजकों को कोसकर अपने-अपने घर लौट गई। भीड़ में ज्यादातर बुजुर्ग थे जिन्हें भारी निराशा हुई। चश्मदीद बताते हैं कि आयोजन स्थल पर तैनात बंदूकधारी गार्डों ने बदसलूकी भी की। यह तो गनीमत रही कि भीड़ ने संयम बरता, अन्यथा लेने के देने पड़ सकते थे और भारी बबेला खड़ा हो सकता था। असल में आयोजकों ने लोगों को धोखा दिया और भक्ति-भजन के नाम पर लाखों का खेल कर लिया जिसके हिसाब का कोई लेखा-जोखा नहीं है। वाणिज्य कर विभाग इस खेल से अंजान है। कायदे से ऐसे चैरिटी कार्यक्रम पर वाणिज्य कर विभाग को मनोरंजन कर वसूलना चाहिए था लेकिन सारे अधिकारी बेखबर और लोग-बाग मालामाल हो चुके हैं।

दरअसल, बिहार प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन के बैनर तले भागलपुर में दो दिवसीय 11 और 12 फरवरी को भजन संध्या का आयोजन किया गया है। इसमें कान्हा के भजन गायक विनोद अग्रवाल मुंबई से बुलावे पर आए हैं। कार्यक्रम के लिए प्रचार किया गया, सोशल मीडिया और मैसेज के जरिए लोगों को शरीक होने और भजन का लुत्फ़ उठाने का बुलावा भेजा गया मगर लोगों को यह नहीं बताया गया कि भजन का लुत्फ मुफ्त में नहीं है। आयोजकों में से एक भागलपुर के विनोद अग्रवाल ने बताया कि 500 रुपए सम्मेलन में बतौर सहयोग राशि ली गई है। मसलन, टिकट बेचकर मोटी रकम उगाहने का खेल पर्दे के पीछे किया गया। भजन संध्या के नाम पर रुपए कमाने के तौर-तरीके की हर कोई आलोचना कर रहा है। लोग कह रहे हैं कि यह मारवाड़ी सम्मेलन के बैनर का बेजा इस्तेमाल है। जाने-माने साहित्यकार शिवकुमार शिव ने कहा कि आयोजन समाज के चंदे से होना चाहिए था न कि टिकट बेचकर। भागलपुर जैसे शहर में भजन जैसे धार्मिक आयोजन में पहली दफा एंट्री फीस का कारोबार दिखा। श्रवण कुमार शर्मा, हरि प्रसाद शर्मा इसे कुल्हड़ में गुड़ फोड़ने जैसा बताते हैं क्योंकि शहर के तमाम मारवाड़ी समाज से सच्चाई छुपाई गई थी।

भागलपुर में आयोजित 2 दिवसीय भजन संध्या की तस्वीर

बिहार में भागलपुर को मिनी राजस्थान कहा जाता है। यहां काफी संख्या में राजस्थानी समाज के लोग रहते हैं जो अब बिहार की आबोहवा में घुल-मिल गए हैं। किसी की चार पीढ़ी तो किसी की पांच पीढ़ी पहले बिहार आई थी। तब से ये यहीं रह रहे हैं। मोटामोटी व्यापार पर भी इनका कब्जा है। इनमें बनिया, ब्राह्मण, नाई, धोबी, छिप्पी, मनियार सभी जाति-धर्म के लोग हैं। रंगरेज और मनियार मुस्लिम समुदाय के भले हों मगर भाषा इनकी आज भी राजस्थानी है। यह मारवाड़ी समाज की खासियत है। इनकी भाषा और पहनावे में कोई खास बदलाव नहीं आ सका है। भागलपुर और आसपास मारवाड़ियों की आबादी अच्छी है लेकिन मारवाड़ी सम्मेलन संस्था पर मुठ्ठीभर लोगों का कब्जा है। इसमें तकरीबन 500 सदस्य हैं। संस्था के एक सक्रिय सदस्य श्रवण शर्मा बताते हैं कि ये लोग सदस्यता में इजाफा पसंद नहीं करते। तभी दूसरे किसी को संस्था से नहीं जोड़ते। 25 से 30 लोग कार्यकारिणी में है, इन्हीं का दबदबा है। बाकी मूकदर्शक लेकिन इस भजन संध्या के आयोजन ने लोगों को अब मुखर कर दिया है।

अब लोग खुलकर विरोध कर रहे हैं। विरोध इनकी धोखाधड़ी वाली नियत को लेकर है। कार्यक्रम का उद्घाटन महापौर दीपक भुवानियां ने किया। मंच पर आपस में ही एक-दूसरे को माला पहना दी और स्थानीय अख़बारों में रविवार को शीर्षक छपी कि शहर में कान्हा के भजनों की गंगा बही। दरअसल, अख़बार नवीसों को भी टिकट पर हुए आयोजन से अंजान रखा गया था, सभी ने धार्मिक आयोजन समझ सहयोग किया। धोखा एक जगह नहीं कई जगह हुआ। सैल्स टैक्स की चोरी कर सरकार को चूना लगाया। शायद वाणिज्य कर महकमा जगे और हिसाब ले। लोग चाहते है ऐसे धार्मिक आयोजन के रैकेट पर सरकार और प्रशासन लगाम लगाए। जय माता दी कैटरर के लालू शर्मा बताते हैं कि ऐसे आयोजन में टिकट लागू करने की बात जानकर ही उन्होंने काम करने से इंकार कर दिया था। जो हो सौ बात की एक बात कि समाज में फरेब वह भी धार्मिक आयोजन के लिए ठीक नहीं है।