भागलपुर के जिलाधिकारी 9 जून को नगर निगम के महापौर और उपमहापौर का चुनाव कराएंगे। इसी रोज नवनिर्वाचित पार्षदों का शपथ ग्रहण भी होगा। इस बाबत सभी पार्षदों को लिखित सूचना डीएम आदर्श तितमारे ने जारी कर दी है। साथ ही पार्षदों की खरीद फरोख्त पर कड़ी नजर रखने का निर्देश एसएसपी और खुफिया महकमा की विशेष शाखा को डीएम ने दिया है। नवनिर्वाचित पार्षदों की बोली लगने की खबर जिला प्रशासन को भी है। इसमें नोटबंदी बेअसर है और किसी तरह की कंजूसी भी नहीं है। मसलन देने वाला राम, दिलानेवाला राम।
दरअसल, महापौर का पद पिछड़ी जाति की महिला के पहले से ही आरक्षित है, फिर भी रेस और रेट में कमी नहीं है। जिला परिषद के अध्यक्ष अनंत कुमार उर्फ टुनटुन साह की पत्नी सीमा साह, स्वास्थ्य महकमा के कर्मचारी राजेंद्र मंडल की पत्नी बबिता देवी, सिल्क व्यापारी की बहन फरीदा आफरीन महापौर की दौड़ में रणनीतिकार बता रहे हैं। इसी तरह उपमहापौर की कुर्सी हासिल करने के लिए सर्राफा व्यापारी के पुत्र राजेश वर्मा और निवर्तमान उपमहापौर प्रीति शेखर मुख्य रूप से लगी है। इसके अलावे जो महापौर की रेस से बाहर होगा वह उपमहापौर की कुर्सी के लिए अपना दांव लगाएगा।
प्रीति शेखर बातचीत में साफ कहती है इतना इतना पैसा हम कहा से लाएंगे। इससे बढ़िया पार्षद ही रह कर सेवा करना है। यह सच है कि इनके सामने जो दावेदार है उनके मुकाबले धनबल में ये पीछे है। हालांकि, खर्च करने ये भी तैयार है, मगर रेट के सामने इनकी हिम्मत पस्त अभी से ही नजर आ रही है। याद रहे राजेश वर्मा ने शहर में थोड़े रोज पहले एक जिम खोला है। जिसके उद्घाटन में डब्लू डब्लू एफ के पहलवान दलीप सिंह राणा खली को बुलवाकर खलबली मचा दी थी, जो धनकुबेर है।
जानकार बताते हैं कि सीमा साह और राजेश वर्मा ने साझा गुट बना 36 पार्षदों को अपने पाले में कर लिया है। कुल 51 पार्षद हैं। जिनमें 36 महिलाएं जीत कर आई है। मसलन, आरक्षण से और बगैर आरक्षण से भी नंबर के खेल में तो केवल 26 ही चाहिए, जो पहले 26 आ गए उनकी रेट अलग है। ‘पहले आओ पहले पाओ’ की तर्ज पर खेल हुआ, बाद में जो आया रेट ओनेपौने दाम मिले। लेकिन कुर्सी पांच साल के बीच में किसी तिकड़म के भूकंप से न हिले इसका पुख्ता इंतजाम के ख्याल से 36 का आंकड़ा तय किया गया है। इस खेल में महिला पार्षद भी पीछे नहीं है। वैसे पुरुष तो केवल 15 ही जीते हैं।
खरीद-फरोख्त का पुख्ता सबूत के तौर पर पार्षदों के अचानक शहर से परिवार समेत गायब होना है। रणनीतिकार बताते हैं कि जिनसे इनका सौदा पक्का हो गया वे उनके कब्जे में तब तक रहेंगे जब तक वे उनके पक्ष में मतदान नहीं कर देते। ये उसी रोज प्रकट होंगे जिस रोज मतदान होगा। इतने दिनों गुटबाजों की निगरानी में परिवार समेत दर्शनीय स्थल की यात्रा पर निकल पड़े हैं। किसी का मोबाइल नेपाल तो किसी का राजस्थान तो कोई दार्जिलिंग या सिक्किम की भाषा बोल रहा हैं। बताते हैं कि इस टूर पैकेज के साथ नया मोबाइल सिम भी दिया गया है, ताकि दूसरा कोई इनसे संपर्क न साध सके।
इतना ही नहीं सभी अलग-अलग दिशा में लग्जरी गाड़ियों पर सवार हो निकले हैं। यह सीक्रेट खेल है और नगदी से अलग है। खैर हो जो भी, लेकिन नोटबंदी का असर न पार्षदों के चुनाव में नजर आया और न अब महापौर और उपमहापौर के चुनाव में। सब खेल खुल्लम खुल्ला है। आम आदमी इनके पार्षद बनने के इरादों को टुकुर-टुकुर लाचार सी देख रही है।

