बिहार के पुलिस महानिदेशक पीके ठाकुर ने बैंकों की हिफाजत के लिए जरुरी दिशा-निर्देश हाल ही में दिए थे। ख़ासकर जो इलाका नक्सल प्रभावित है वहां के थानों को ज्यादा चौकस रहने को कहा था। मगर निचले पुलिस अफसर अपनी मर्जी से काम करते हैं। वरना, भारतीय स्टेट बैंक की बांका के चानन शाखा से शुक्रवार दिनदहाड़े 39 लाख रूपए लुटे नहीं जाते। हालांकि, आईजी सुशील खोपड़े ने बैंकों की सुरक्षा को लेकर अपने दायरे के ज़िलों के एसपी को जरूरी हिदायत दी है। गौरतलब है कि बांका का चानन गांव नक्सल प्रभवित है। वैसे तो बांका के बेलहर, कटोरिया, मुंगेर के हवेली खड़गपुर, संग्रामपुर, कजरा और जमुई जिले के सिमुतल्ला, कैरो बगैरह गांव नक्सलियों का गढ़ कहे जाते हैं। बैंक लूटकर डकैत मोटरसाइकिल से सिमुतल्ला की ओर ही फरार हुए थे, ऐसा पुलिस को पता चला है। बांका एसपी राजीव रंजन ने अपराधियों की धरपकड़ के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है लेकिन अभी तक उन्हें कोई सुराग हाथ नहीं लगा है। बैंक खुलते ही लुटेरे बड़ी चालाकी से बैंककर्मियों के साथ ग्राहक बनकर बैंक में प्रवेश कर गए और आराम से अपना काम कर चलते बने।

खासबात यह है कि थाना से बैंक की शाखा की दूरी कुछ ही मीटर है। बावजूद लुटेरे बैंककर्मियों को बंधक बना घटना को अंजाम दे गए। राज्य में ख़ुफ़िया रिपोर्ट भी है कि नोटबंदी की वजह से नक्सली और बड़े अपराधी आर्थिक दिक्कत से गुजर रहे हैं। ख़ुफ़िया रिपोर्ट के मद्देनजर बिहार के पुलिस महानिदेशक ने अलर्ट जारी किया था। चानन शाखा से 39 लाख लूटने में जो तरीका बदमाशों ने आजमाया उससे जाहिर होता है कि लुटेरों में पुलिस का कोई ख़ौफ़ नहीं है। आईजी खोपड़े बताते हैं कि हाल में हुई झारखंड के गिरिडीह में बैंक डकैती में भी यही तरीका अपनाया गया था। इससे यह भी शक होता है कि उसी गिरोह की करतूत तो नहीं। चानन शाखा लूट में लुटेरों ने सीसीटीवी को तोड़ डाला और जाते-जाते उसकी हार्डडिस्क भी साथ ले गए। जाहिर है गिरोह में तकनीकी जानकर भी है। आईजी का कहना है कि झारखंड के दुमका के डीआईजी से सम्पर्क कर देवघर पुलिस की भी लुटेरों को पकड़ने में मदद ली जा रही है।

दरअसल, चानन बिहार और झारखंड सीमा को जोड़ता है। केवल 15 किलोमीटर की दूरी मोटरसाइकिल से कुछ मिनटों में ही तय कर झारखंड के देवघर में आसानी से प्रवेश पाया जा सकता है। इसमें कहीं कोई रोक टोक नहीं है। अक्सर आपको सीमा पर दो लाठीधारी सिपाही बैठे दिखेंगे। वह भी शराब की निगरानी के लिए। यों कहें कि यह आबकारी महकमा का नाका है जो बिहार में शराबबंदी के बाद बना है। तैनात सिपाहियों को इन सब से कोई लेना देना नहीं है। बस ये अपनी ड्यूटी बजा दिहाड़ी पक्की कर रहे हैं।

बिहार के बैंकों की हिफाजत पर बैंक के आलाअफसर भी संजीदा नहीं है। ज्यादातर शाखाओं में गार्ड तक तैनात नहीं है और जहां हैं उनके हथियार आज के युग के मुताबिक बेकाम हैं। बहुत शाखा में गार्ड है तो हथियार नहीं है। मसलन, आंतरिक सुरक्षा भी संदेह के घेरे में है। इनके अफसर शाखा मुआयना करने तो आते हैं मगर इस मुद्दे को नजरंदाज करते हैं। नतीजतन, ऐसी वारदात को लुटेरे अंजाम देने में कामयाब होते हैं। पुलिस की गश्त भी सुस्ती वाली है। तभी शुक्रवार के वाकए में लुटेरे गार्ड को भी बंधक बना लिया था। डीजीपी की हिदायत है कि बैंकों के बाहर पुलिस गश्त और निगरानी लगातार होनी है पर सब चिठ्ठियों तक ही सीमित है।