डिवीजन के बांका , भागलपुर और नवगछिया पुलिस ज़िले के सभी थानों में लोक संवाद गोष्टी के आयोजन का सिलसिला शनिवार से शुरू हो गया। ऐसा करने का मकसद पुलिस पर से जनता का खोया विश्वास फिर से हासिल करना है। भागलपुर रेंज के डीआईजी विकास वैभव और भागलपुर के एसएसपी मनोज कुमार खुद भी कई थानों की गोष्टी में शरीक हुए।

मगर जिस मकसद से गोष्टी आयोजन करने का फरमान नए डीआइजी ने पद भार ग्रहण करते ही जारी किया था, वह इससे पूरा होने वाला नहीं है। डीआईजी के आने के बाद छोटे छोटे वाकए की शिकायतों का ढेर लग गया। एक महीने के दौरान पांच सौ से ज्यादा लिखित नालिस लेकर लोग पहुंचे। जिसमें ज्यादातर तो थाना स्तर से ही निपटाए जा सकते थे। मसलन शिकायतों में एफआईआर दर्ज न होना, थाना पहुंचे लोगों को गुमराह करना , अवैध वसूली करना बगैरह है। सभी की बात सुनी गई और एफआईआर दर्ज करने का निर्देश हाथोहाथ दिया। यहां तक कि तीन साल पुराने एक मामले को दर्ज कर डा. मनोज चौधरी को नामजद किया गया। लापरवाह 9 पुलिस अधिकारी जिनमे 5 थानेदार को फौरन निलंबित किया।

यह अलग बात है कि इससे आम नागरिक में संदेश गया कि डीआइजी संजीदा है। तभी उन्हें भी लगा कि थाना स्तर पर लोगों की बात नहीं सुनी जा रही। इसी को मद्देनजर उन्होंने मातहत सभी थानों और एसपी – डीएसपी को पत्र लिख महीने के पहले शनिवार को लोक संवाद गोष्टी जरुरी तौर पर आयोजित करने का निर्देश दिया। जिसमें इलाके के प्रबुद्ध नागरिकों और बुजुर्गों को अवश्य बुलावा भेजा जाए।

शनिवार को गोष्टी तो हरेक थाना स्तर पर बुलाई गई। मगर वही लोग नजर आए जो हरेक सभा को कब्जा सा करने के माहिर है। यों कहें कि पुलिस की चापलूसी करने और बड़े अफसरों को फूलों का गुलदस्ता देकर उनकी बड़ाई में कसीदे गढ़ने के लिए जाने जाते है। और वही हुआ भी। कानून व्यवस्था की बात छोड़ शौचालय बनाने की बात डीआईजी और एसएसपी के सामने करने लगे। माहौल को भांप डीआईजी और एसएसपी दूसरे थाने की गोष्टी का मुलम्मा दे 15 मिनट में ही चल दिए। यह थाना कोतवाली की गोष्टी में हुआ।

चेंबर आफ कामर्स के अध्यक्ष शैलेंद्र सर्राफ और महमंत्री अशोक भिवानीवाला और सचिव संजीव कुमार शर्मा थाना कोतवाली की बैठक में आए। लेकिन अपनी बात नहीं रख पाए। इसी तरह कई लोग बंचित रह गए। बात होनी थी पुलिस पब्लिक के बीच पुल कैसे बने। लोग अपनी परेशानी बेधड़क थाना जाकर खुलकर बता सके। इसपर कहीं किसी थाने की गोष्टी में चर्चा नहीं हो सकी। उपस्थिति भी ख़ास नहीं थी। दरअसल थानेदार के खासमखास को ही न्योता था। जाहिर है डीआईजी की पहल का पहली ही बैठक में मकसद पूरा नहीं हुआ। हां गोष्टी होने का सिलसिला शुरू जरूर हो गया। बस यही संतोष की बात है।