बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बाद राज्य की राजनीति में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण दलित नेता के रूप में देखा जाता है। मांझी दो हफ्ते पहले महागठबंधन से अलग हुए थे और अबतक एनडीए में वापस शामिल नहीं हो पाये हैं। उनका अगला राजनीतिक कदम क्या होगा ये किसी को नहीं पता। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) दोनों अनुसूचित जाति (एससी) वोटों पर अपना फोकस कर रहे हैं।
बिहार की आबादी का लगभग 16 प्रतिशत हिस्सा एससी है। जिसमें पासवान समुदाय लगभग 5.5 प्रतिशत और रविदास समुदाय लगभग 4 प्रतिशत है। यह दोनों समुदाय बिहार चुनाव में महत्वपूर्ण मतदाताओं में से एक हैं। लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच रिश्तों में कड़वाहट देखने को भी मिली है। जिससे बिहार की राजनीति में उलझन पैदा हो गई है। ऐसे में दोनों दलित नेताओं के अगले कदम का सभी को इंतजार है।
पूर्व राज्य मंत्री श्याम रजक ने भी जेडीयू छोड़ अपनी पुरानी पार्टी आरजेडी में फिर से शामिल होने का निर्णय लिया है। जिसके बाद राज्य की दलित राजनीति में उथल-पुथल मच गई है। रजक ने सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दलित विरोधी कहा था।
इसपर जेडीयू नेता अशोक चौधरी ने श्याम पर पलटवार करते हुए कहा कि नीतीश कुमार दलित विरोधी हैं यह समझने में श्याम रजक को दस साल लग गए। उन्होंने कहा कि स्कूल में पढ़ने वाला छात्र साल भर में समझ जाता है कि शिक्षक क्या पढ़ा रहे हैं। श्याम कैसे छात्र हैं, जिन्हें 10 साल तक पता ही नहीं चला कि नीतीश उन्हें क्या पढ़ा रहे हैं। श्याम को साल-डेढ़ साल में ही समझ जाना चाहिए था। इसी से पता चलता है कि आप कितने होशियार विद्यार्थी हैं।
इस बीच, रजक ने कहा कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ही शोषितों की असली आवाज़ हैं। वे सामाजिक न्याय के प्रतीक हैं। दलित वोटों को लेकर इस राजनीति में रजक अब पार्टी की बैठकों में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बगल में बैठेंगे और प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।