चिराग पासवान। LJP चीफ हैं। साथ ही बिहार की सियासी जंग में अहम किरदार हैं। पार्टी के लोग मुख्यमंत्री का दावेदार भी कहते हैं। एजेंडा लिए हैं- ‘बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट’ का। और, बदलना चाहते हैं सूबे की तस्वीर। समूचे बिहार की मौजूदा हालत के लिए वह नीतीश सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। प्रदेश में विकास की बात करते हैं, पर खगड़िया जिले के तहत आने वाला उनका ही गांव अब तक मूलभूत सुविधाओं से महरूम है।
नाम है- शहरबन्नी। जिला मुख्यालय, खगड़िया से यह 23 किमी दूर है। सड़क इतनी खराब है कि बाइक से पहुंचना भी दुरूह है। ग्रामीणों के लिए बाढ़ की पीड़ा झेलना हर साल की कहानी है। इतने सालों मेें गांव के नजदीक अच्छा बाजार तक विकसित नहीं हाे पाया। गांव का करीबी बाजार (बखरी) करीब 23 किमी दूर है। गांव में अस्पताल, हाई स्कूल तक नहीं है। दशकों राम विलास पासवान राजनीति में रहे। कई बार केंद्रीय मंत्री बने। इस बीच उनका खूब निजी विकास हुआ। परिवार के कई सदस्य भी राजनीति में आते गए और बड़ा मुकाम पाते गए। पर उनके पैतृक गांव की तस्वीर आज भी बदहाली की कहानी बयां करती है। उल्टा, उन्होंने गांव से नाता ही तोड़-सा लिया।
हर बार चुनाव में उनका यह गांव चर्चा में आता है। लेकिन, हर बार गांव की बदहाली की कहानी वही रहती है। इस बार राम विलास पासवान की मृत्यु के कारण भी चर्चा में है। पासवान की मौत के बाद उनके पार्थिव शरीर को भी गांव नहीं ले जाया गया। उनकी पहली पत्नी के मुताबिक 2015 में पिता के श्राद्ध कर्म में राम विलास पासवान शहरबन्नी गए थे। वह उनकी आखिरी यात्रा थी गांव की।
राम विलास पासवान के भाई राम चंद्र पासवान और पशुपति पारस के भी राजनीति में अहम ओहदों पर होते हुए भी गांव के विकास पर इस परिवार का ध्यान नहीं गया। अब परिवार में उनके बाद की पीढ़ी भी (चिराग और राम चंद्र के बेटे प्रिंस राज) राजनीति में तेजी से आगे बढ़ रही है। पर गांव की स्थिति जस की तस है।
चुनाव के समय गांव में मीडियावालों की आवाजाही अचानक बढ़ जाती है। पर, गांववाले या तो चुप रहते हैं या बहुत संभल कर बोलते हैं। ग्रामीणों के हवाले से ‘दैनिक भास्कर’ ने एक रिपोर्ट में बताया कि लोगों ने ऑफ कैमरा कबूला कि पासवान परिवार ने गांव के लिए कुछ भी नहीं किया। उन्होंने गांव वालों को कभी अपना माना ही नहीं।
कुुुछ साल पहलेे सहरसा की पांच पंचायतों ने मिल कर कठडुमर में बांस का 400 मीटर लंंबा अस्थायी पुल बनाया था। अपने पैसों से। 50 हजार रुपए चंदा कर। यही पुल शहरबन्नी को भी जोड़ता था। स्थानीय लोगों का कहना है कि रामविलास पासवान भी अपने गांव आएंगे तो इसी पुल से होकर गुजरना होगा। हालांकि, बरसात के दिनों में यह पुल बेकार हो जाता था। ऊपर से जान का जोखिम अलग। लोगों ने तब इस पुल के बारे में ‘ABP News’ को बताया था- रामविलास पासवान के घर जाने के लिए भी यही रास्ता है। उन्हें भी आने-जाने के लिए यही रास्ता है। अगर वह इधर आते हैं और उतरते हैं, तो चचरी (बांस का पुल) सिवाय और कोई जुगाड़ नहीं है। उनका घर पास में फिर भी ऐसा हाल है।