बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी भले ही नहीं हुआ हो उसके पहले ही सभी दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। जहां विपक्षी महागठबंधन पूरे प्रदेश में वोटर अधिकार यात्रा निकाल रहा है वहीं सत्ता पक्ष भी हर रोज कोई न कोई नया कार्य कर रहा है। इसी बीच केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने ऐलान किया है कि इस चुनाव में पहली बार उनका दल नीतीश कुमार के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरेगा। ये पिछले 25 सालों में पहली बार होने वाला है।

जमुई से सांसद और लोकसभा में पार्टी के चीफ व्हिप अरुण भारती ने कहा है कि लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना के समय लेकर अब तक पार्टी ने कभी भी बिहार विधानसभा चुनाव जेडीयू के साथ नहीं लड़ा। यही कारण है कि 2025 का विधानसभा चुनाव LJP(R) के लिए ऐतिहासिक होगा।

विधानसभा में कभी प्रभावी भुमिका में नहीं रही है एलजेपी

मीडिया से बात करते हुए भारती ने कहा, ‘लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना वर्ष 2000 में हुई थी। तब से अब तक पार्टी ने कभी भी बिहार विधानसभा चुनाव JD(U) के साथ नहीं लड़ा। यही कारण है कि 2025 का विधानसभा चुनाव LJP(R) के लिए ऐतिहासिक होगा, क्योंकि पहली बार LJP(R) – JD(U) के साथ गठबंधन में चुनाव मैदान में उतरेगी। 2015 में पार्टी ने NDA के साथ मिलकर 43 सीटों पर चुनाव लड़ा और 2020 में 137 सीटों पर चुनाव लड़ा। 2000 से लेकर 2025 तक हमारे नेता चिराग पासवान जी के नेतृत्व में पार्टी लगातार मजबूत हुई है। इसी पृष्ठभूमि में आगामी चुनाव में, मेरी व्यक्तिगत राय में, NDA के भीतर सीट बंटवारे का LJP(R) के लिए सम्मानजनक आंकड़ा इन्हीं दोनों सीटों के आंकड़े के बीच का होना चाहिए।’

जब बिहार में ‘किंग मेकर’ बन सकती थी LJP, ‘रामविलास पासवान’ के इस दांव से चित हो गए थे ‘लालू यादव’, दोबारा फिर कभी उठ नहीं पाई RJD

वहीं बिहार विधानसभा में एलजेपी (रामविलास) की स्थिति की बात करें तो साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को महज 1 सीट पर जीत मिली थी। जबकि 2015 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो पार्टी के खाते में महज 2 सीटें आईं। वहीं साल 2010 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 3 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।

पार्टी की सबसे अच्छी स्थिति साल 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में देखने को मिली। उस समय पार्टी को 29 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन किसी भी पार्टी या गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं होने की वजह से विधानसभा को राज्यपाल ने कुछ दिन के भीतर ही भंग कर दिया था। उसके बाद उसी साल अक्टूबर में फिर चुनाव हुए और पार्टी के खाते में महज 10 सीटें आईं।