कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने प्रवर्तन निदेशालय के नोटिस से एक महीने पहले अपनी कंपनी स्काई लाइट होस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड में बड़ा बदलाव कर लिया था। वाड्रा ने अपनी कंपनी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) में बदला था। प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों को कड़े नियामक नियमों का पालन करना होता है, जबकि एलएलपी को केवल अपनी वार्षिक रिटर्नस और अकाउंट्स की स्टेटमेंट्स देना होता है। एलएलपी के लिए ऑडिट भी जरूरी नहीं है, इसके लिए अलावा भी कई और छूट मिलती हैं।
रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के रिकोर्ड्स के मुताबिक स्काई लाइट होस्पिटैलिटी को एलएलपी 13 मई 2016 को बनाया गया है। कंपनी के डायरेक्टर रॉबर्ट वाड्रा और उनकी मां मौरीन वाड्रा हैं। रिकोर्ड्स में दिखाया गया है कि कंपनी का पता 268, सुखदेव विहार, दिल्ली ही रखा गया है। स्काई लाइट होस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड का रजिस्ट्रेशन 2007 में किया गया था।
बता दें, वाड्रा की पत्नी प्रियंका वाड्रा ने बुधवार को इसकी पुष्टि की थी कि उनके पति की कंपनी को बीकानेर में एक लैंड डील में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी का नोटिस मिला है। नोटिस में ईडी ने वाड्रा की कंपनी से बीकानेर के कोलायत क्षेत्र में कथित खरीदी गई 275 बीघा जमीन के फाइनेंशियल स्टेटमेंट और अन्य कागजात जमा कराने के लिेए कहा गया है। पिछले साल विभाग ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया था। यह मामला स्थानीय तहसीलदार द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था।
रिकोर्ड्स से यह पता चला है कि वाड्रा और उनकी मां ने अन्य कंपनियों में भी ऐसे बदलाव किए हैं। 24 अप्रैल 2015 को ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड को बंद करके ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग एलएलपी बना दिया गया था। यह कंपनी भी विवादित बीकानेर लैंड डील से लिंक है। साथ ही रिकोर्ड्स से पता चला है कि दोनों ने जनवरी 2015 से ही अपनी प्राइवेट कंपनियों को एलएलपी में बदलना शुरू कर दिया था। जब उन्होंने रियल अर्थ एस्टेट एलएलपी और नॉर्थ इंडिया आईटी पार्क एलएलपी की स्थापना की थी। जुलाई 2015 में उन्होंने ऑरिजिनल कंपनियां रियल अर्थ एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड और नॉर्थ इंडिया आईटी पार्क प्राइवेट लिमिटेड को बंद कर दिया था।
प्राइवेट कंपनी को एलएलपी बनाने के फायदे-
-कड़े नियामक कानूनों में छूट
-रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज की मंजूरी के बिना एक्ट और डीड बन सकती हैं।
-प्राइवेट कंपनियों में डायरेक्टर्स पैसा निकाल सकते हैं, जबकि एलएलपी में पार्टनर निकाल सकते हैं।
-कोर्ट और केंद्र सरकार की अनुमति के बिना कंपनी को बंद किया जा सकता है।