वर्ष 2014 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के विधायक और वफादार सिपाही के तौर पर वे पार्टी के उम्मीदवार दिनेश त्रिवेदी के साथ साए की तरह रहे थे। लेकिन अबकी वफादारी बदलते हुए उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। वे इस सीट पर तृणमूल उम्मीदवार और पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी की लगातार तीसरी जीत की राह में सबसे बड़ा कांटा बन गए हैं। बात भाटपाड़ा के पूर्व तृणमूल कांग्रेस विधायक अर्जुन सिंह की है। भाटापाड़ा विधानसभा सीट से लगातार चार बार चुनाव जीतने वाले अर्जुन सिंह भाजपा में शामिल होकर त्रिवेदी को चुनौती देते नजर आ रहे हैं। हिंदीभाषियों में उनकी पकड़ मजबूत है। इलाके के मतदाताओं पर अर्जुन की पकड़ और पहुंच के सहारे ही भाजपा यहां जीत के दावे कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी सप्ताह इलाके में चुनावी रैली को संबोधित कर चुके हैं।
त्रिवेदी वर्ष 2009 और 2014 में चुनाव जीत चुके हैं। अबकी वे जीत की हैट्रिक बनाने के लिए मैदान में हैं। लेकिन जूट मिलों और हिंदीभाषियों की बहुलता वाले इस इलाके में उनकी राह आसान नहीं हैं। वैसे, दिनेश त्रिवेदी को कमतर आंकना उचित नहीं है। वर्ष 2009 में उन्होंने इस सीट पर माकपा के तड़ित तोपदार को हरा कर अपना सफर शुरू किया था। उसके बाद वर्ष 2014 में भी उन्होंने माकपा की दिग्गज नेता सुहासिनी अली को हरा कर सीट पर कब्जा बरकरार रखा। जूट मिलों की वजह से कभी बेहद खुशहाल रहा यह इलाका अब बदहाली से परेशान है। इन मिलों में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मजदूर ही काम करते हैं। इनके समर्थन ने दिनेश को दो बार तो चुनाव जिता दिया पर अबकी अर्जुन सिंह के मैदान में उतरने से समीकरण बदले हैं। लेकिन खुद दिनेश त्रिवेदी ऐसा नहीं मानते। वे कहते हैं कि अर्जुन की बाहुबली की छवि का फायदा मुझे ही मिलेगा। लोग बाहुबली नहीं चाहते। दूसरी ओर, अर्जुन सिंह अबकी यहां अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं। वे कहते हैं कि इलाके के लोगों ने विधानसभा चुनावों में लगातार उनका समर्थन किया है और अब लोकसभा चुनावों में भी वे बाहरी उम्मीदवार की जगह उनका ही साथ देंगे।
वर्ष 2004 तक वामपंथी ट्रेड यूनियनों की मजबूत पकड़ के कारण माकपा यह सीट जीतती रही थी। लेकिन वर्ष 2009 के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी ने 49.28 फीसद वोट लेकर माकपा उम्मीदवार को लगभग 56 हजार वोटों से हरा दिया। उस साल भाजपा को यहां महज 3.56 फीसद वोट मिले थे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में दिनेश दोबारा जीत तो गए लेकिन पार्टी को मिलने वाले वोटों में चार फीसद की गिरावट आई। माकपा को मिलने वाले वोट भी 17 फीसद घट गए। इसका फायदा मिला भाजपा को। उसके वोट 21.92 फीसद तक पहुंच गए और उसके उम्मीदवार आरके हांडा को 2.30 लाख से ज्यादा वोट मिले। भाजपा को उम्मीद है कि अर्जुन अबकी यहां तृणमूल कांग्रेस का चक्रव्यूह तोड़ते हुए विजयी होकर निकलेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तृणणूल कांग्रेस भले यहां लगातार तीसरी बार जीत के दावे करे, अर्जुन सिंह के पाला बदलने से उसकी राह कुछ मुश्किल जरूर हो गई है। अर्जुन भी तृणमूल के वोट बैंक में ही सेंध लगाएंगे। अब देखना यह है कि भाजपा के अर्जुन मछली की आंख भेद पाते हैं या नहीं।
