भागलपुर के एसएसपी मनोज कुमार ने पुरानी स्कार्पियो गाड़ियों को नई बताकर की गई खरीद मामले में बीएन मंडल मधेपुरा के कुलपति डॉ. अवध किशोर राय समेत आठ लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया है। यह खरीद तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में 2016 में हुई थी। उस वक्त डॉ. राय वहां के प्रतिकुलपति थे। उनके रहते ही वाहन खरीद में गड़बड़ी का पता चल गया था और विश्वविद्यालय ने जांच के लिए एक समिति भी गठित कर दी थी। इसके अलावा पुलिस में इस बाबत प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी। समिति और सिटी डीएसपी शहरयार अख्तर ने अपनी जांच में भी इन सभी आरोपियों को कसूरवार ठहराया था। एसएसपी ने इनके अलावा विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलसचिव प्रो. आशुतोष प्रसाद, वित्त अधिकारी वीरेंद्र कुमार वर्मा, वित्त परामर्शी मो. ऐनुल हक, सिविल इंजीनियर अंजनी कुमार, लेखापाल डीके मिश्रा, वत्स आटोमोबाइल फर्म के प्रबंधक चंद्रप्रकाश और सेल्स मैनेजर को गिरफ्तार करने का लिखित आदेश अपने मातहत पुलिस अधिकारी को दिया है।
इस सन्दर्भ में गुरुवार शाम एसएसपी के दस्तख्त से पत्र जारी हुआ है, जिसमें हिदायत दी गई है कि इनमें छह लोग सरकारी अधिकारी हैं। मुकदमे में आगे की कार्रवाई के लिए जिलाधीश की मंजूरी ले ली जाए। इसके साथ ही खरीदे गए पुराने चार पहिए वाहनों के नंबर तीन बार किस वजह से बदले गए और इसमें जिला परिवहन दफ्तर के किन-किन अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत है, इसकी जांच कर कार्रवाई करने का आदेश भी मातहत पुलिस अधिकारी को दिया है। मालूम रहे कि विश्वविद्यालय की खरीदी गईं स्कार्पियो गाड़ियों का नंबर पहले बीआर 10वीं 1457 था जो बाद में 1422 कर दिया। फिर यही गाड़ी बीआर 10 पीए 8591 नंबर की हो गई जो अभी भी है। ये स्कार्पियो गाड़ियां 19 अप्रैल 2016 में खरीदी गई थीं और सितंबर 2016 को तत्कालीन कुलसचिव मोहन मिश्र ने थाना विश्वविद्यालय में मामला दर्ज कराया था। वाहन की पहली मुफ्त सर्विसिंग करने से ऑटोमोबाइल फर्म के इंकार कर देने पर मामला तूल पकड़ा। उसके इंकार की वजह थी कि गाड़ी 20 हजार किलोमीटर चली हुई और पुरानी थी।
एसएसपी बताते हैं कि इस सन्दर्भ में और भी कई अनियमितताएं और लापरवाहियां बरती गईं। इनकी खरीददारी से पहले दो कोटेशन लिए गए। ब्रजेश ऑटोमोबाइल का 1427590 रुपए और वत्स ऑटोमोबाइल का 1429834 का। मगर कम कीमत वाले कोटेशन की अनदेखी कर ज्यादा कीमत पर इन्हें खरीदा गया। ये गाड़ियां जिस कोटेशन पर खरीद की गईं उसमें एसेसरीज की कीमत शामिल थी। इसके बाबजूद 48500 रुपए एसेसरीज के भी भुगतान किए गए, जिसकी प्रशासनिक मंजूरी नहीं थी। दरअसल ये स्कार्पियो गाड़ियां मार्च 2015 में किसी चंद्रप्रकाश ने खरीदी थीं। यह जांच के दौरान पता चला। जानकार बताते हैं कि चंद्रप्रकाश को फर्म ने ये गाड़ियां किस्त पर दी होगीं और किस्त न चुकाने पर गाड़ियां जब्त कर ली गईं। और बाद में सांठगांठ कर इन्हें विश्वविद्यालय के मत्थे मढ़ दिया गया।
विश्वविद्यालय ने खरीद के समय इंजीनियर अंजनी कुमार को मुआयना करने की जिम्मेवारी सौंपी थी। लेकिन उन्होंने भी इसमें अनदेखी की। मालूम हो कि असल में अंजनी सिविल इंजीनियर हैं, जबकि विश्वविद्यालय ने इन्हें मैकेनिकल का काम सौंपा दिया था। इस तरह से गड़बड़ी सब तरफ से हुई है। इसके फलस्वरूप विश्वविद्यालय को नई स्कार्पियो गाड़ियों की कीमत पर पुरानी और खटारा गाड़ियां मिलीं। अब देखना है कि डीएम आदेश तितमारे इस मुकदमे में आगे की कार्रवाई में कौन सा रुख अपनाते हैं।

