उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों की तैयारियां परवान चढ़ने के बीच, पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा शुक्रवार (13 मई) को कांग्रेस का ‘हाथ’ झटककर एक अर्से बाद समाजवादी पार्टी (सपा) की ‘साइकिल’ पर फिर सवार हो गए। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और वरिष्ठ कबीना मंत्री आजम खां की मौजूदगी में करीब 10 साल बाद सपा में ‘घर वापसी’ करने वाले वर्मा ने सुबह पार्टी प्रमुख से मुलाकात की और आनन-फानन में बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि वे कांग्रेस में ‘घुटन’ महसूस कर रहे थे, इसलिए अपने ‘पुराने घर’ लौट आए हैं।

वर्मा ने कहा, मैं सोनिया जी और राहुल जी को धन्यवाद देता हूं, लेकिन अब मैं पार्टी से तालमेल नहीं बैठा पा रहा था। मैं सपा में इसलिए शामिल हो रहा हूं, कि अगले चुनाव में मैं अखिलेश यादव का विरोध नहीं कर सकता। कांग्रेस में रहते हुए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के खिलाफ बेहद तल्ख बयान देने वाले वर्मा ने अपने पूर्व के बयानों पर मौजूदा राय के बारे में पूछे जाने पर कहा- नई शुरुआत में पुरानी बातों को भूला जाता है। हम और नेताजी (मुलायम) तो शुरुआत से साथ थे। बाद में मतभेद हो गए थे, वह अलग बात है। घर में लड़ाई भी होती है और सुलह भी।

इस बीच, कांग्रेस के प्रांतीय उपाध्यक्ष सत्यदेव त्रिपाठी ने वर्मा के इस कदम की निंदा करते हुए कहा कि आज राजनीति पूरी तरह व्यावसायिकता का पर्याय बनती जा रही है। पार्टियों में सिद्धांतों वाले लोग कम रह गए हैं और वर्मा बिना सत्ता के नहीं रह सकते थे। यही वजह है कि कभी मुलायम सिंह यादव के खिलाफ लगातार बयानबाजी करने वाले वर्मा अब राज्यसभा की सीट पाने के लिए उन्हीं सपा मुखिया की शरण में चले गए हैं।

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने खासकर कुर्मी मतदाताओं में खासा प्रभाव रखने वाले वर्मा का पार्टी में वापसी पर स्वागत करते हुए कहा कि उनकी इस वापसी का संदेश ना सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में जाएगा। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी को उसका नाम दरअसल बेनी प्रसाद वर्मा ने ही सुझाया था। उनके सभी निर्णयों में भी वे हमेशा उनके साथ रहे थे। यादव ने कहा कि वर्मा जब सपा छोड़कर गए थे, तब उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था। अब उनकी वापसी से ना सिर्फ सपा मजबूत होगी, बल्कि जनता का विश्वास भी सुदृढ़ होगा। सपा मुखिया ने इस संवाद में आजम खां की भी बराबर तारीफ की और कहा कि सपा का संविधान खां ने ही पेश किया था और वर्मा और खां ने कंधे से कंधा मिलाकर हर मुश्किल में उनका साथ दिया।

मालूम हो कि सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे और कभी पार्टी मुखिया मुलायम का दाहिना हाथ माने जाने वाले वर्मा ने अंदरूनी मतभेदों का हवाला देते वर्ष 2007 में पार्टी छोड़ दी थी। उसके फौरन बाद उन्होंने समाजवादी क्रांति दल नाम की नई पार्टी बनाई थी। लेकिन कामयाबी नहीं मिलने पर वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे और वर्ष 2009 में गोंडा लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर इस्पात मंत्री बने थे। हाल के दिनों में उनके सपा में शामिल होने की अटकलें जोरों पर थीं।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मौके पर वर्मा की सपा में वापसी पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि पुराने दोस्त और पुरानी शराब का हमेशा स्वागत होता है। वर्मा की वापसी के बाद वर्ष 2017 में प्रदेश में सपा की सरकार फिर से बनेगी। वर्मा का कुर्मी मतदाताओं में खासा प्रभाव माना जाता है। यह बिरादरी अन्य पिछड़ा वर्ग में दूसरा सबसे प्रभावशाली समुदाय है। माना जा रहा है कि वर्मा की वापसी से सपा को आगामी विधानसभा चुनाव में इन बिरादरी के मत आकर्षित करने में मदद मिलेगी। ऐसी अटकलें भी हैं कि सपा वर्मा को आगामी जुलाई में होने वाले राज्यसभा के चुनाव के लिए अपना प्रत्याशी बना सकती है। राज्यसभा में 11 सीटें रिक्त होने जा रही हैं और प्रदेश विधानसभा में संख्याबल के आधार पर सपा छह सदस्यों को उच्च सदन में भेज सकती है।