सुप्रीम कोर्ट ने 3 अप्रैल को बड़ा फैसला सुनाया था। कोर्ट ने 2016 पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (SSC) परीक्षाओं के माध्यम से भर्ती किए गए 25,000 से अधिक शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया था। इसके बाद से ही शिक्षक जोग्या शिक्षक शिक्षा अधिकार मंच (JSSAM) के बैनर तले विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शिक्षकों को आश्वासन दिया लेकिन वह अभी भी प्रदर्शन कर रहे हैं।
5 प्रदर्शनकारी शिक्षकों को पूछताछ के लिए बुलाया गया था
बिधाननगर उत्तर पुलिस स्टेशन ने विकास भवन के सामने गुरुवार को हुई हिंसा के सिलसिले में पूछताछ के लिए 15 प्रदर्शनकारी शिक्षकों को बुलाया था। हालांकि सोमवार को बुलाए गए शिक्षकों में से कोई भी पुलिस स्टेशन नहीं पहुंचा। प्रदर्शन का अहम चेहरा चिन्मय मंडल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हम अपने कानूनी सलाहकार से सलाह-मशविरा कर रहे हैं और उनकी सलाह का पालन करेंगे। अगर वे नोटिस जारी करना चाहते हैं, तो उन्हें हम सभी को जारी करना चाहिए, सिर्फ़ 15 को नहीं। वे हमें बांटने और डराकर पीछे हटने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे। हम अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।”
हम पर भरोसा रखें- शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु
इस बीच राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने सोमवार को मीडियाकर्मियों से कहा, “एसएससी भवन या विकास भवन के सामने आंदोलन करने का कोई मतलब नहीं है। अन्य सरकारी कर्मचारियों के काम में बाधा डालने से अदालत की अवमानना हो सकती है, यह उनके भविष्य के लिए नहीं है। चर्चा करने के लिए कुछ भी नया नहीं है, जो लोग धरने पर बैठे हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि वे हम पर भरोसा रखें, हम उनके लिए लड़ रहे हैं। हमने समीक्षा याचिका दायर की है, हमें उसका इंतजार करना चाहिए। शिक्षकों को जो करना चाहिए वह है स्कूल वापस जाना। मुझे उनसे कोई संवाद नहीं मिला है कि उनकी मांगें क्या हैं।” वहीं मंत्री ने पुलिस समन पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
सोमवार को विकास भवन के बाहर विरोध प्रदर्शन के 13वें दिन शिक्षकों ने पिछले गुरुवार की घटना के दौरान कथित रूप से मारपीट करने वालों की तस्वीरों वाला एक बैनर दिखाया। इसमें पुलिस और शिक्षकों के बीच झड़प हुई थी। यह पुलिस द्वारा सोमवार, मंगलवार और बुधवार को पूछताछ के लिए 15 प्रदर्शनकारियों को बुलाने के बाद हुआ है।
‘हम अपनी नौकरी खो चुके हैं और हमें पुलिस बुला रही है’
प्रदर्शनकारी शिक्षकों में से एक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हम पर हमला किया गया, हम ही अपनी नौकरी खो चुके हैं और हम ही कक्षाओं में पढ़ाने के बजाय सड़कों पर बैठे हैं। अब हमें पुलिस बुला रही है। यही हमारे छात्र देख रहे हैं। उनके शिक्षकों को परेशान किया जा रहा है।”
शिक्षा मंत्री बसु ने सोमवार को कहा कि रद्द की गई प्रक्रिया के उम्मीदवारों के लिए नए सिरे से परीक्षा के लिए नोटिस SC द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर जारी किया जाएगा। इस बीच सोमवार को विरोध स्थल के पास साल्ट लेक के निवासियों के एक समूह ने कलकत्ता हाई कोर्ट की एक खंडपीठ से संपर्क किया, जिसमें जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस राजा बसु चौधरी शामिल थे। उन्होंने जनहित याचिका (PIL) दायर करने की अनुमति मांगी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि विरोध प्रदर्शन और साथ में पुलिस सुरक्षा क्षेत्र में दैनिक जीवन को बाधित कर रही है।
हाई कोर्ट में दायर हुई याचिका
हालांकि कोर्ट ने मामले को दायर करने की अनुमति दी है। जस्टिस सौमेन सेन ने एक टिप्पणी करते हुए कहा, “यदि पुलिस सुरक्षा के बारे में कोई शिकायत है, तो मामले को अत्यधिक पुलिस गतिविधि का आरोप लगाते हुए एकल पीठ के समक्ष दायर किया जाना चाहिए। यह कभी भी जनहित याचिका नहीं हो सकती।” उन्होंने कहा कि अधिकांश जनहित याचिकाए प्रचार के लिए होती हैं और उनमें वास्तविक जनहित की कमी होती है।
इसके साथ ही कुछ प्रदर्शनकारी शिक्षकों ने कलकत्ता हाई कोर्ट का रुख किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि बिधाननगर पुलिस ने उन्हें झूठे आपराधिक मामलों में फंसाया है। उनके वकील के अनुसार, प्रदर्शनकारियों इंद्रजीत मोंडोल और सुदीप कोनार का नाम गलत तरीके से लिया गया है। बिधाननगर कमिश्नरेट ने मंगलवार को उनकी उपस्थिति के लिए समन जारी किया था। हाई कोर्ट ने मामला दायर करने की अनुमति दे दी है, जिसकी सुनवाई बुधवार को जस्टिस तीर्थंकर घोष के सामने होने की उम्मीद है।
पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने जताई चिंता
इसके अलावा पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने विरोध स्थल पर बच्चों की उपस्थिति के बारे में चिंता जताई है। यहां कथित तौर पर खुली क्लासेज आयोजित की गई थीं। आयोग का मानना है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का उल्लंघन किया गया है और उसने तीन दिनों के भीतर बिधाननगर पुलिस कमिश्नरेट से रिपोर्ट मांगी है ताकि पता लगाया जा सके कि बच्चों को वहां कैसे लाया गया।
एक प्रदर्शनकारी शिक्षक ने जवाब दिया, “छात्र न्याय की लड़ाई में अपने शिक्षकों का समर्थन करने के लिए खुद ही आए थे। हमने किसी भी छात्र को आने के लिए मजबूर नहीं किया।”