बंगाल के राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने रविवार को राजभवन के कर्मचारियों को पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए छेड़छाड़ के आरोपों के संबंध में पुलिस के किसी भी कम्युनिकेशन को नजरअंदाज करने को कहा। राज्यपाल ने राजभवन के कर्मचारियों से यह भी कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान राज्यपाल के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती।

महिला ने लगाया है छेड़छाड़ का आरोप

राज्यपाल का यह कदम कोलकाता पुलिस द्वारा राजभवन में एक संविदा महिला कर्मचारी द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने के एक दिन बाद आया है। कोलकाता पुलिस के सूत्रों ने बताया कि कमिश्नर (सेंट्रल) इंदिरा मुखर्जी के नेतृत्व में विशेष टीम ने घटना की पूछताछ शुरू कर दी है। विशेष जांच टीम में आठ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल हैं।

महिला कर्मचारी ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पर राजभवन में छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए कोलकाता पुलिस में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। राज्यपाल ने आरोपों को ‘बेतुका नाटक’ बताया और कहा कि कोई भी उन्हें ‘भ्रष्टाचार को उजागर करने और हिंसा पर अंकुश लगाने के उनके दृढ़ प्रयासों’ से नहीं रोक पाएगा।

राज्यपाल आनंद बोस ने लिखा पत्र

राजभवन के कर्मचारियों को रविवार को लिखे पत्र में राज्यपाल आनंद बोस ने कहा, “मीडिया की रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि पुलिस घटना की जांच करने का प्रस्ताव रखती है और वे राजभवन के कर्मचारियों की जांच करेंगे। यह भी खबर है कि जांच टीम राजभवन से सीसीटीवी फुटेज इकट्ठा करने का इरादा रखती है। सवाल यह उठता है कि क्या भारत के संविधान की धारा 361(2) और (3) के तहत राज्यपाल को मिली छूट के मद्देनजर पुलिस जांच कर सकती है और सबूत इकट्ठा कर सकती है?

संविधान के अनुच्छेद 361 (2) के अनुसार राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रखी जा सकती है।

सीवी बोस ने लिखा, “चूंकि राज्यपाल को उनके खिलाफ शुरू की गई या जारी रखने वाली किसी भी आपराधिक कार्यवाही से संवैधानिक छूट दी गई है, इसलिए यह तर्कसंगत है कि पुलिस किसी भी तरह से मामले की जांच/पूछताछ नहीं कर सकती है। कोई भी अदालत अंतिम रिपोर्ट का संज्ञान नहीं ले सकती, क्योंकि यह भारत के संविधान की धारा 361 का अपमान होगा।”