भारत के लोक कल्याणकारी राज्य होने की अवधारणा के तहत सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए कर्ज सबसिडी आधारित केंद्रीय योजना शुरू की। लेकिन नीतिगत अस्पष्टता और कई मामलों में बैंकों के पूर्ण रूप से सहयोग नहीं करने के कारण गरीब छात्रों को इसका पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में छात्रों की मदद के लिए विशेष कोष बनाने की मांग की गई है।

छात्रों का मानना है कि वैश्विक मंदी के कारण रोजगार के अवसरों में कमी आने से कर्ज की अदायगी करने में परेशानी आ रही है, जबकि उन पर बैंकों का दबाव लगातार बना रहता है और कई मामलों में अदालत का चक्कर लगाने की नौबत तक आ गई है। दूसरी ओर बैंकों का कहना है कि काफी मात्रा में कर्ज की अदायगी नहीं होने के कारण गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) बढ़ रही हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि वे कई बार इस विषय को संसद में उठा चुके हैं कि सरकार को गरीब बच्चों की पढ़ाई विशेष तौर पर प्रतिभावान गरीब बच्चों की उच्च शिक्षा का भार वहन करना चाहिए। कई बार शिक्षा कर्ज लेने के बाद अदायगी नहीं होने की स्थिति में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे छात्रों की मदद के लिए विशेष व्यवस्था की जाए और विशेष कोष बनाने की संभावना तलाशी जाए। शिक्षाविद एनके श्रीनिवास ने कहा कि गरीबों, शोषितों, पीड़ितों के सामाजिक, आर्थिक सशक्तीकरण के लिए शिक्षा सबसे जरूरी है। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर होनहार बच्चों को उच्च शिक्षा पाने में मदद करने के लिए आपदा राहत कोष की तर्ज पर एक विशेष कोष गठित किया जाए।

साल 2009-10 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शिक्षा संबंधी कर्ज सबसिडी आधारित केंद्रीय योजना पेश की थी। 2013 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 31 मार्च 2009 से पहले लिए गए शिक्षा कर्ज पर ब्याज में रियायत देने के लिए 2600 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है जिसके तहत 31 मार्च 2009 से दिसंबर 2013 के बीच लिए गए कर्ज पर ब्याज का भुगतान सरकार के करने की बात कही गई थी।

शिक्षाविदों ने सरकार से आग्रह किया है कि आपदा राहत कोष की तरह ही शोषित, पीड़ित वर्ग के छात्रों की शिक्षा को आगे बढ़ाने में मदद के लिए विशेष व्यवस्था की जाए। उन्होंने बैंकों को इस बारे में उदार रुख अपनाने का भी सुझाव दिया है।