बिकरू कांड के मुख्य आरोपी विकास दुबे के एनकाउंटर में अब दो महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है। इस बीच पुलिस और जांच एजेंसियों ने उसके रिकॉर्ड्स खंगालना जारी रखा है। अब खुलासा हुआ है कि सरकारी रिकॉर्ड्स से विकास दुबे और उसके गुर्गों के हथियारों के लाइसेंस की फाइलें ही गायब हो गई हैं। इसे लेकर वेपन्स डिपार्टमेंट में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में अफसरों ने रिकॉर्ड मेंटेन करने वाले एक क्लर्क पर एफआईआर दर्ज कराई गई है।

जानकारी के मुताबिक, विकास दुबे ने 1997 में पहली बार हथियार रखने के लिए लाइसेंस बनवाया था। जब जांच अधिकारियों ने असलहा विभाग से इसकी जानकारी मांगी, तो पता चला कि विकास की फाइलें ही गायब हैं। पुलिस अब विकास दुबे के असलहों के लाइसेंस से जुड़ी फाइलें गायब होने की खुद जांच कर रही है। बताया जाता है कि विकास दुबे और उसके साथियों ने गुप्त तरीके से कई लाइसेंस बनवाए थे। बिकरू कांड के बाद पुलिस प्रशासन ने गांव में सभी शस्त्र धारकों के लाइसेंस चेक किए थे और जिनके पास अवैध रूप से हथियार मिले थे, उन पर कार्यवाही के आदेश दिए गए थे।

विभाग से 200 के करीब फाइलें गायब: पुलिस की जांच में सामने आया है कि असलहा विभाग से अब तक 200 फाइलें गायब हो चुकी हैं। इसमें रिकॉर्ड मेंटेन करने वाले तत्कालीन क्लर्क विजय रावत की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। उन पर मौजूदा क्लर्क वैभव अवस्थी की तहरीर पर कोतवाली थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई।

बड़े लोगों से नाम जुड़ा होने का शक: गौरतलब है कि विकास दुबे ने कानपुर के चौबेपुर स्थित बिकरू गांव पुलिसवालों को मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद मध्य प्रदेश पुलिस ने उसे लंबी खोजबीन के बाद उज्जैन से पकड़ा गया था। माना जाता है कि विकास को घटनास्थल से फरार कराने में पुलिसकर्मियों के साथ कुछ नेताओं का हाथ था। इसमें दो पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल हुई है।

फिलहाल एनकाउंटर में मारे गए गैंगस्टर की संपत्ति की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कर रहा है। ईडी इस जांच के दौरान विकास दुबे और उसके सहयोगियों की चल-अचल संपत्ति के बारे में भी पता कर ही है। साथ ही यह भी पता कर रही है कि कौन से फाइनेंसर थे जो विकास दुबे और उसके गैंग को आर्थिक तौर पर मजबूत कर रहे थे।