एक ऐसा वर्ग जो गुमनाम रहकर पोस्टर चिपका रहा है। हस्तलिखित इन पोस्टरों में राजनीतिक दलों के प्रति निराशा के संकेत है। कहीं नोटा को वोट देने की अपील है तो कहीं किसी राजनीतिक दफ्तर जाने वाले पथ को ‘भ्रष्ट-पथ’ तक लिखा गया है। नई दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज रोड और पंत मार्ग को जोड़ने वाले गोल चक्कर पर लगा ‘भ्रष्ट-पथ’ वाला पोस्टर राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

इससे सटे एक राष्ट्रीय दल का प्रदेश कार्यालय भी है। लिहाजा ऐसा पोस्टर लगाने वाला कौन हो सकता है? इसकी खोज खबर ली जा रही थी। कई नेता तो बड़े गुस्से में थे ! इसे टिकट काटने वालों की करतूत बताया जा रहा था। अलबत्ता नेताजी तक शांत हुए जब उन्हें एक खबरनवीस ने बताया कि ऐसे गुमनाम पोस्टर कई जगह लगे हैं। बात सिर्फ आपकी या आपके पार्टी की नहीं है।

बिचौलियों का दांव

नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों में दलाली पर रोक लगाने के लिए किए गए सभी उपाय दलालों ने नाकाम कर दिए हैं। इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार दलालों से ज्यादा अन्य प्राधिकरणों से यहां आने वाले अधिकारी हैं। दरअसल, यहां काम कराने आने वाले फरियादियों को चक्कर कटा-कटा कर कर्मचारी थका देते हैं, ऐसे में उनके पास दलालों के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता। बेदिल ने किसी से सुना कि यह सब पहले से तय होता है।

यह कड़ी इतनी मजबूत है कि अधिकारियों और कर्मचारियों के नजदीक रहने वाले दलाल पहली बार में सौदे की रकम तय होकर केवल उतने ही दस्तावेज मांगते हैं, जिनके बगैर काम होना संभव नहीं होता है। अन्य कागजों की एवज में सीटवार शुल्क निर्धारित कर काम करा देते हैं। अन्य प्राधिकरणों से स्थानांतरित होकर आए अधिकारियों को जरूरी और गैर जरूरी कागजातों के बारे में ज्यादा पता नहीं है। दलाल विभागीय कर्मचारियों से उन फाइलों को प्राधिकरण कार्यालय के बाहर स्थित अपने आफिसों में मंगाकर पहले की भांति सब कुछ करा पा रहे हैं।

कर्मचारियों की आह

दिल्ली में हो रहे नगर निगम चुनाव हो रहे हैं लेकिन कर्मचारी खुश नहीं हैं। कर्मचारी वेतन की मांग कर रहे हैं और जिनकी चुनाव ड्यूटी लगी है वे सुविधाओं के लिए गुहार लगा रहे हैं। ऐसे में कुछ का तो यह भी कहना है कि यह चुनाव जल्दीबाजी में कराने के क्या मायने हैं? जब से तीनों निगम का एकीकरण हुआ है तब से आपाधापी शुरू है। तीनों निगमों में दक्षिण के कर्मचारियों को वेतन और अन्य सुविधाएं समय से मिलता रहा है तो पूर्वी और उत्तरी को इन चीजों से महरूम होना पड़ रहा है ऐसे में चुनाव की घोषणा के बाद इस मुद्दे पर कुछ कर्मचारियों ने गोलबंदी शुरू कर दी है और इसका परिणाम तो अब चुनाव में ही देखने को मिलेगा।

ये कैसी मजबूरी

पिछले कुछ दिनों से आए दिन जेल के अंदर बंद एक मंत्री जी के आवभगत से संबंधित सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया पर चर्चा में हैं। इसके बाद से जहां एक ओर मंत्री विपक्ष के निशाने पर हैं। वहीं, पार्टी कार्यालय में भी इसको लेकर चर्चा जोरों पर है। पार्टी इसे विपक्ष की सोची समझी साजिश मान रही है। बीमारी का सहारा ले रही है। पर यह बात आम कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतर रही है।

कार्यकर्ता दबे जुबान ही सही पर मान रहे हैं कि इसको लेकर कहीं न कहीं पार्टी की छवि धूमिल हो रही है। इस दिशा में पार्टी के आलाकमान को सही और ठोस निर्णय लेना चाहिए। पर कोई खुल कर विरोध नहीं कर पा रहा है। चर्चा तो यह भी हो रही है कि यदि ऐसे ही वीडियो सामने आते रहे तो आने वाले दिनों में कार्यकर्ताओं को आम जनता को जवाब देना भारी पड़ेगा। पार्टी कार्यकर्ताओं को समझ नहीं आ रहा है कि यह कैसी मजबूरी है जो पार्टी आला कमान के लिए गले की फांस बन गई।
-बेदिल