Amritsar Train Accident: अमृतसर में शुक्रवार (19 अक्टूबर) को दशहरे के जश्न के दौरान जौड़ा फाटक पर हुए रेल हादसे में जो लोग मारे गए या घायल हुए, उनमें से ज्यादातर रेलवे लाइन के पास कॉलोनियों में रहने वाले थे। वे यहां दशकों से रह रहे हैं और पटरियों के पास होने वाले रावण दहन को देखते आ रहे थे, यह जानते हुए कि ये सुरक्षित तरीका नहीं है। हालांकि शुक्रवार की घटना की तरह पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिसमें ट्रेन की जद में करीब 150 लोग आए और उनमें से कम से कम 59 की मौत हो गई। ज्यादातर प्रभावित परिवार मजदूर, लकड़ी पर पॉलिश करने वाले, सफाई कर्मचारी, माली, पेंटर और अन्य हैं। उनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं जो रोजी-रोटी की जुगाड़ के लिए वहां से पलायन कर पंजाब में बस गए। भयानक हादसे को याद करते हुए चश्मदीदों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हर वर्ष वे पटरियों पर खड़े होते हैं, आतिशबाजी देखते हैं यह जानते हुए कि वह स्थान सुरक्षित नहीं है लेकिन शुक्रवार को जो हुआ वह पहले कभी नहीं हुआ।
अमृतसर के गुरुनानक देव अस्पताल में खून से लथपथ शर्ट पहने बैठे 35 वर्षीय राकेश बदहवास हैं, अपने 32 वर्षीय भाई दिनेश और 9 वर्षीय भतीजे अभिषेक के शवों का इंतजार कर रहे हैं। राकेश और उनके भाई राहुल दोनों सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करते हैं और पास की धरमपुरा कॉलोनी में रह रहे हैं, उन्होंने कहा कि मेला देखने के लिए वे अपने परिवार के साथ निकले थे। राहुल ने बताया, ”जब रावण का पुतला जलाया गया तब मैं और राकेश स्थल की सीमा के भीतर थे लेकिन दिनेश, उसकी पत्नी, सास, साली और उसके बच्चे पटरियों की तरफ बढ़ गए थे। जल्द ही वहां हर तरफ अफरा-तफरी मच गई और आतिशबाजी के साथ जो हम सुन पाए उसमें चीखें थीं और लोगों की मदद के लिए गुहार लगाती तेज आवाजे थीं। हमने आती हुई ट्रेन के द्वारा एक भी हॉर्न या अलर्ट साउंड नहीं सुना।”
VIDEO | Dussehra turns tragic as speeding train mows down revellers near #Amritsar
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राहुल ने आगे बताया, ”शुरू में हमने सोचा कि पांच लोगों में से दो जरूर घायल हुए होंगे लेकिन जैसे-जैसे अफरा-तफरी बढ़ी और हम पटरियों पर पहुंचे तो वहां सैकड़ों लाशें थीं और उनके शरीर के टुकड़े तक चारों ओर बिखरे पड़े थे। तब हमने सोचा के हमारे अपने परिवार के लोग नहीं मिल रहे है। दिनेश और उसके बेटे के शव मिल गए। उसकी पत्नी प्रीति का इलाज चल रहा है लेकिन उसकी सास, साली और बच्चों का अब भी पता नहीं चला है।”
राहुल ने कहा, ”उन्हें हम कहां खोजें, हम सभी अस्पताल हो आए हैं लेकिन कोई सुराग नहीं है।” राहुल ने बताया कि पहले रेल आने पर चेतावनी मिलती थी लेकिन इस बार ट्रेन गोली की रफ्तार से आई और लोगों को रौंदते हुए चली गई। पूनम के 70 वर्षीय ससुर कल्लू राम हादसे में घायल हुए। पूनम ने बताया, ”हम पहले भी इस मेले में आए और ट्रेनें हमेशा धीमी गति से आती थीं लेकिन दूसरी ट्रेन जो जालंधर से आई वह तेज रफ्तार में थी और सबको कुचलती हुई चली गई।”
एक और चश्मदीद 22 वर्षीय समीर के 20 वर्षीय दोस्त बृजभान की हादसे में मौत हो गई। समीर ने बताया, ”रावण जल रहा था और हमें पता ही नहीं चला कब ट्रेन आ गई।” उसने बताया कि आतिशबाजी की आवाज में ट्रेन के आने के बारे में बिल्कुल पता नहीं लगा। चार दोस्त बच गए लेकिन बृजभान की मौत हो गई। ट्रेन के ड्राइवर ने कोई हूटर क्यों नहीं बजाया या अलर्ट क्यों नहीं दिया? मृतक बृजभान के भाई राम खेर ने कहा, ”मेरे लिए यह ट्रेन रावण से कम नहीं है जिसने मेरे भाई की जिंदगी ले ली।”