इलाहाबाद हाईकोर्ट लिवइन रिलेशनशिप को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक अंतरधार्मिक लिव-इन जोड़े की ओर से पुलिस सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे रिश्ते बिना किसी ईमानदारी के विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण की वजह से बनते हैं, जो अक्सर टाइमपास में बदल जाते हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता जरूर दी है, लेकिन ऐसे रिश्तों में ईमानदारी से ज्यादा एक दूसरे का मोह या आकर्षण ही होता है। कोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप के रिश्ते बेहद नाजुक और अस्थाई होते हैं।
कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला
जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने फैसले में कहा कि कोर्ट यह उम्मीद नहीं कर सकता है कि दो महीने की अवधि में और वह भी 20-22 साल की उम्र में दोनों इस तरह के अस्थायी रिश्ते पर गंभीरता से विचार कर पाएंगे। हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक, जिंदगी कठिनताओं और संघर्षों से भरी होती है। इसलिए इसे फूलों का बिस्तर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी इन्हीं टिप्पणियों के आधार पर मुस्लिम युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हिंदू युवती की सुरक्षा दिए जाने की अर्जी को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि 22 साल की उम्र में सिर्फ 2 महीने किसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह लेने से रिश्तों की परिपक्वता यानी मैच्योरिटी को नहीं आंका जा सकता. हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हिंदू युवती और मुस्लिम युवक की याचिका को खारिज करते हुए फैसला सुनाया है.
क्या है पूरा मामला?
उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में रिफाइनरी थाना क्षेत्र में 22 साल की एक हिंदू लड़की घर छोड़कर एक मुस्लिम युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी थी। पीड़िता के परिजनों ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई। परिवार वालों ने युवक पर उनकी बेटी को अगवा करने का आरोप लगाया। इस मामले को लेकर लिव इन रिलेशनशिप में रहे युवक और युवती एफआईआर रद्द किए जाने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे। याचिका में पीड़िता ने परिवार वालों से अपनी व प्रेमी की जान का खतरा बताते हुए मथुरा पुलिस को सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम का आदेश दिए जाने की भी मांग की थी।