पिछले दो वर्षों से त्योहारों पर कोरोना की मार ने उत्सव और समारोहों को फीका कर दिया था। इस बार हालात थोड़े बेहतर हुए तो लोगों में फिर पुराना उत्साह दिखने लगा है। इस बार जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मंदिरों में बड़े धूमधाम से मनाया गया। दो साल बाद श्रद्धालुओं को खुलकर त्योहार मनाने का मौका मिला है। इसके चलते हर तरफ उत्साह और उमंग का नजारा रहा।
भागलपुर के मंदरोज़ा स्थित खाटू श्रीश्याम मंदिर के महासचिव सुरेश मोहता बताते हैं कि सुबह से ही दर्शन करने वालों का तांता लगा रहा। श्रद्धालु भजन-कीर्तन का आनंद उठा रहे है। रात बारह बजे भगवान के जन्म का विधान पूरा किया गया। उसके बाद लोग प्रसाद लेकर घरों को लौटे।
दो साल तक मंदिरों में जन्माष्टमी नहीं मनाए जाने से श्रीकृष्ण जन्म की घंटियां भी सुनाई नहीं दी और न ही शंख ध्वनि हुआ। कोरोना ने पूरे देश को यशोदानंदन का उत्सव मनाने से रोक दिया। इस दौरान लोगों ने घरों में ही कान्हा का जन्मोत्सव मनाया। जिन लोगों ने गुरुवार 18 अगस्त को जन्माष्टमी नहीं मनाई वे 19 अगस्त को मनाए। इधर लोकपर्व बिहुला पूजा के विसर्जन की वजह से पूरे भागलपुर में सुबह से बिजली गुल कर दी गई है। इंजीनियरों के मुताबिक देर रात स्थिति सुधरी। कन्हैया का जन्म अंधेरे में ही हो पाया।
भागलपुर के मंदिरों, ठाकुरवाड़ी समेत देश के दूसरे तमाम मंदिरों में मनाया जाने वाला उत्सव मथुरा और द्वारिका की परंपरा की कड़ी है। लोग बड़े उत्साह के साथ जन्माष्टमी मनाते है। बांके बिहारी बड़े दयालु है। वे जो करते है पता नहीं चलता। सुदामा को जो उन्होंने दोस्त के नाते दिया वह आज भी मिसाल है। दुर्योधन जैसे दुष्ट को सबक सिखाया वह भी उदाहरण है। चारों ओर गूंज रहा है नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की।
श्याम की वंशी में बहुत ताकत है। जन्माष्टमी धूमधाम से ऐसे ही लोग नहीं मनाते है। भाव विभोर होकर जो उसे मनाता है वह सब कुछ दे देता है। ठगने पर बहुत कुछ ले लेता है। श्याम माखन चोर कहलाए, रास रचिया कहलाए। जन्म मथुरा में लिया। वृंदावन में रास रचाया। चिटकी अंगुली पर पर्वत उठा गोवर्धन, गिरधारी कहलाए। उनके रास रचाने के निशान वृंदावन में आज भी मिल जाएंगे। राजपाट करने के लिए द्वारकाधीश गए। वहां का ठाठ आज भी वैसे ही है।