केरल स्टेट फिल्म्स अवॉर्ड्स में ‘कंथन- द कलर ऑफ लव’ को बेस्ट फिल्म चुना गया। यह कहानी है केरल के वायनाड जिले में रहने वाले कुछ ऐसे आदिवासियों के सर्वाइवल की है, जिन्होंने इससे पहले कभी कैमरा तक नहीं देखा था। वहीं, फिल्म बनाने वाले शख्स एक वेडिंग फोटोग्राफर हैं, जो ऑफ सीजन में रबर टैपर (रबर के पेड़ से लेटेक्स निकालने वाला) का भी काम करते हैं। उन्होंने इस फिल्म के लिए अपना घर गिरवी रखकर 11 लाख का लोन लिया और कैमरा तक बेच दिया। इसके बाद दोस्तों व जानकारों से मदद ली और 2 साल में इस फिल्म को तैयार किया। बता दें कि केरल स्टेट फिल्म्स अवॉर्ड्स पिछले 49 साल से मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में सराहनीय काम करने वालों को सम्मानित कर रहा है।
ऐसी है फिल्म के डायरेक्टर की कहानी : इस फिल्म के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर 32 वर्षीय शरीफ इएसा हैं। शरीफ कॉलेज ड्रॉपआउट हैं। उन्होंने यह फिल्म बनाने के लिए अपना घर गिरवी रख दिया। लोन लिया। साथ ही, कई अन्य लोगों से भी पैसा जुटाया। शरीफ बताते हैं, ‘‘मैं पिछले 17 साल से बतौर रबर टैपर काम कर रहा हूं। वैसे मुझे 200 पेड़ों पर चढ़ने के बाद 400 रुपए मिलते थे, जो एक सीजनल जॉब है। हालांकि, अब मैं केरल की बेस्ट फिल्म का डायरेक्टर और प्रोड्यूसर हूं, इसलिए मुझे 4 लाख रुपए मिलेंगे। इसकी मदद से मैं अपना लोन कुछ हद तक चुका सकूंगा। फिल्म की स्टोरी के बारे में शरीफ कहते हैं कि यह कोई कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है। वायनाड के आदिवासियों की हकीकत।
140 मिनट की है फिल्म: ‘कंथन- द कलर ऑफ लव’ 140 मिनट की फिल्म है। यह फिल्म गांव के आदिवासियों का जिक्र किया गया है। इस फिल्म में जितने भी लोगों ने काम किया, वे सभी पहली बार कैमरे के सामने आए थे। वहीं, फिल्म के लीड चाइल्ड एक्टर प्राजिथ हैं और दादी मां का किरदार सोशल एक्टिविस्ट दया बाई ने निभाया। बता दें कि फिल्म में डायरेक्टर सहित कुल 6 लोगों ने काम किया। इनके अलावा बाकी लोग भी वेडिंग वीडियोग्राफी का ही काम करते थे।
11 लाख का लिया लोन: शरीफ बताते हैं कि फिल्म को बनाने के लिए उनके सामने सबसे बड़ी समस्या पैसा जुटाना थी। इसके लिए शरीफ ने अपनी संपत्ति गिरवी रखकर 11 लाख का लोन लिया। साथ ही, उन्होंने अपना वीडियो कैमरा भी 60 हजार रुपए में बेच दिया। हालांकि, पैसे जुटाने में उनके दोस्तों ने भी मदद की।
फिल्म में नहीं हुआ किसी का भी मेकअप: शरीफ बताते हैं कि एक स्कूल टीचर बिंदू और एक लोकल वेल्डर सुजायन पूवम ने भी करीब 1.9 लाख रुपए से उनकी मदद की। फिल्म में बिंदू के बेटों ने भी काम किया। वहीं, कैमरा वर्क तलीपारंबा के एक फोटो स्टूडियो मालिक ने संभाला। शरीफ का दावा है कि इस फिल्म में किसी का भी मेकअप नहीं किया गया। बता दें कि फिल्म को बनाने में करीब 2 साल लग गए।
बचपन से ही था शौक: शरीफ बताते हैं कि मुझे बचपन से ही फिल्म देखने शौक था। मैं ड्रामा और सांस्कृतिक इवेंट्स को बहुत ध्यान से देखता था। 1999 में यानी 8वीं कक्षा में मैंने पहली बार एक नाटक में हिस्सा लिया। वहीं, 12वीं कक्षा में आने के बाद से ही मैंने रबर टैपर का काम शुरू कर दिया था। उसके बाद कॉलेज शुरू किया, लेकिन किसी वजह से छोड़ना पड़ा। हालांकि, इस दौरान तीन महीने का वीडियोग्राफी और एडिटिंग कोर्स किया। मैंने करीब एक लाख रुपए का वीडियो कैमरा खरीदा और वेडिंग वीडियोग्राफर का काम शुरू कर दिया। मैंने 2012 में हुए गैंगरेप पर भी एक शॉर्ट फिल्म सेक्शन-376 बनाई थी। साथ ही, मैंने पशु व्यापार और रोड सेफ्टी पर भी शॉर्ट फिल्म बनाई हैं।
नेशनल अवॉर्ड के लिए भेजी गई यह फिल्म: डायरेक्टर शरीफ कहते हैं किं कंथन के लिए एक और अच्छी खबर आ सकती है। उन्होंने बताया कि इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड के लिए भेजा गया है।