Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश के दाबोह में एक न्यूज रिपोर्ट को लेकर तीन पत्रकारों के खिलाफ केस दर्ज होने के मामले में नया ट्विस्ट आ गया है। पत्रकारों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने वाले एक सरकारी अधिकारी का कहना है कि उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था।

दाबोह के चिकित्सा अधिकारी राजीव कौरव ने कहा, “मैं अपने दम पर शिकायत कैसे दर्ज कर सकता हूं, जब मैं शिकायत में नामित किसी भी पत्रकार को नहीं जानता? शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव में दर्ज की गई थी।” इस मामले में पुलिस ने स्थानीय पत्रकार कुंजबिहारी कौरव, अनिल शर्मा और एनके भटेले के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। उन पर आरोप है कि 15 अगस्त को पत्रकारों ने भिंड जिले के एक गांव के 76 वर्षीय ज्ञान प्रसाद विश्वकर्मा का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर झूठी खबर फैलाई।

वीडियो में पत्रकारों ने दावा किया कि 108 पर कॉल करने के बाद भी एम्बुलेंस मौके पर नहीं पहुंची, जिसके बाद परिवार के सदस्य मरीज को ठेले पर बैठाकर 5 किमी दूर अस्पताल ले जाने को मजबूर हुए। इसमें यह भी दावा किया गया कि पीड़ित सरकारी योजनाओं का लाभार्थी नहीं है।

जांच के लिए बनाई गई टीम

पत्रकारों ने कल लहार में विरोध मार्च निकाला और उपमंडल मजिस्ट्रेट आरए प्रजापति को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को संबोधित एक अपील सौंपी, जिसमें तीनों पत्रकारों के खिलाफ मामला वापस लेने की मांग की गई थी। इसके बाद तीन सदस्यों की जांच कमिटी बनाई गई।

समिति ने बताया कि संबंधित पत्रकारों की कहानी, जिसे सोशल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर जारी किया गया था, झूठी और निराधार थी क्योंकि परिवार ने एम्बुलेंस के लिए कोई फोन नहीं किया था। बुजुर्ग व्यक्ति को सरकारी अस्पताल में नहीं बल्कि एक निजी अस्पताल में ले जाया गया। जांच में यह भी पता चला कि परिवार को पीएम आवास योजना, पेंशन योजना समेत अन्य सरकारी सुविधाएं मिलती हैं।

विपक्ष के नेता डॉ गोविंद सिंह भी तीनों पत्रकारों के समर्थन में सामने आए और स्थानीय प्रशासन, विशेषकर लहर के एसडीएम पर पत्रकारों के खिलाफ झूठे बयान देने और फिर पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए परिवार पर दबाव बनाने का आरोप लगाया।