एक भाषा जिसकी पहचान उसकी गौरवशाली संस्कृति से नहीं बल्कि अश्लीलता से होने लगी है। फूहड़ता की आंधी में मूल चीजें गुम होती जा रही हैं। हम बात कर रहे हैं भोजपुरी फिल्मों और संस्कृति की जिसका दायरा अब सिर्फ बिहार या पूर्वांचल तक सीमित नहीं है। अपनी भाषा के प्रति यह दर्द बयां किया है विवेक दीप पाठक ने। इस शख्स से शायद आप अनजान हों लेकिन पिछले एक महीने में विवेक लगभग 1200 किमी की पदयात्रा कर चुके हैं। मौसम की मार और जंगलों से गुजरते हुए वे बिहार के आरा से चलकर राजधानी दिल्ली पहुंचे हैं और अब वे राष्ट्रपति से मिलना चाहते हैं। पढ़िए ‘जनसत्ता’ से खास बातचीत…
विवेक क्या है आपकी इस पदयात्रा का मकसद? क्या है वो दर्द, वो तकलीफ जिसने इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया?
खासतौर से बिहार में एक तकलीफ का सामना लगभग सभी को करना पड़ता है। जब हम ऑटो या बस में बैठकर यात्रा कर रहे होते हैं, कई बार हमारे साथ हमारी बहनें, मां, बेटियां और अन्य महिलाएं भी होती हैं। तब तेज-तेज गूंजते अश्लील गानों से दो-चार होना पड़ता है। जब उन्हें ऐसा करने से मना किया जाता है तो बीच रास्ते में ही वे कहते हैं या तो उतर जाओ या सुनो, गाना तो ऐसे ही बजेगा। लगभग हर गली में ऐसा स्टूडियो है जहां बच्चों को बरगलाया जा रहा है। उनसे अश्लील गाने गवाए जा रहे हैं। धीरे-धीरे कई लोगों का नजरिया हो गया है कि भोजपुरी मतलब अश्लीलता। भाषा को मां कहा जाता है और मां अगर बीमार हो जाए तो इलाज के लिए किसी का इंतजार नहीं किया जाता। बदनामी एक बीमारी है और भोजपुरी बीमार हो रही है और इसीलिए किसी का इंतजार किए बिना हम निकल गए।
आप दिल्ली तक पहुंच गए हैं क्या बिहार में आपके कदम को लोगों का समर्थन मिल रहा है?
लोगों का भरपूर साथ मिल रहा है। लगभग हर पारिवारिक और सभ्य आदमी को इस तरह के गाने असहज कर देते हैं। यात्रा के दौरान भी जगह-जगह लोगों ने इस कदम का स्वागत किया और हमारा समर्थन किया। उस धरती की पहचान सिर्फ अश्लील गानों से होती जा रही है। जबकि भोजपुर वो जगह हैं जहां से 80 साल की उम्र में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले वीर कुंवर सिंह भी आते हैं। भिखारी ठाकुर एक बड़ा नाम है जिन्होंने भोजपुरी को काफी आगे तक बढ़ाया है।
आपकी प्रमुख मांगें क्या-क्या हैं?
– भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में सेंसर बोर्ड का गठन किया जाए। इससे काफी हद तक राहत मिल सकती है।
– जाति सूचक, व्यक्ति विशेष और स्त्री की गरिमा को निशाने पर लेने वाले गानों पर रोक लगाई जाए। इसके लिए कानून बने।
– भोजपुरी को भाषा का दर्जा मिले और उसे आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।

भोजपुरी को जानने-समझने वालों से कई बार सुनने को मिलता है कि अश्लीलता के बिना वहां की फिल्मों को दर्शक नहीं मिलेंगे। इस पर क्या कहना चाहेंगे?
ऐसा कुछ नहीं है। ये वो लोग हैं जो कहीं न कहीं अश्लीलता फैलाने वालों के लिए प्रमोटर का काम करते हैं। वो भाषा को इस स्तर तक ले जा रहे हैं तो यह उनकी सोच है। अलग-अलग मानसिकता के लोग हर जगह मिलेंगे। 1200 किलोमीटर की यात्रा के दौरान भी हमें कई तरह के लोग मिले हैं। ऐसी बात करने वालों को गंगा, नदिया के पार, माटी जैसी सुपरहिट फिल्मों की एक लंबी फेहरिस्त से रूबरू होना चाहिए जो परिवार के साथ बैठकर देखी जा सकती हैं और मनोरंजक भी हैं। दर्शक उन्हें भी देखना पसंद करता है।
यू-ट्यूब पर तो उन फिल्मों को भी खासी तादाद में दर्शक मिलते हैं। इससे तो जो बिकेगा वही दिखेगा वाली बात को बल मिलता है। ऐसे में आप किसकी गलती मानते हैं?
गलती कहीं न कहीं सभी की है। बनाने वालों की भी और देखने वालों की भी। जो लोग ऐसी फिल्में और ऐसे गाने बनाते हैं वो पहले तो सार्वजनिक रूप से चरण स्पर्श करने जैसी संस्कारी बातें करते हैं। एक तरफ जनता को भगवान मानते हैं और फिर फिर अश्लील फिल्में बनाते हैं और जब लॉन्चिंग के बाद उनसे पूछा जाता है तो वो ही लोगों को गालियां देते हैं। वे कहते हैं दर्शक देख रहे हैं तभी हम लोग परोस रहे हैं।
1200 किमी पैदल चलना बहुत बड़ी बात है। करीब एक महीने की पदयात्रा में आपके साथ क्या-क्या हुआ? अपना अनुभव बताइये।
आरा से बनारस तक तो सब ठीक था। उसके बाद पूर्वावन, मालावन जैसे कई जंगली इलाके आए। मीलों तक रात बिताने की जगह भी नहीं मिलती थी। भाषा और बोली अलग होने से लोग भी अलग नजरिये से देखते हैं। हर कोई विश्वास नहीं करता। ऐसे में कई बार मंदिर और ढाबों में भी रात बिताई। मुसाफिरखाना के पास दो बार बाइकर्स ने टक्कर भी मार दी, तीन दिनों तक लखनऊ में इलाज चला। जब ये घटना मैंने सोशल मीडिया पर शेयर की तो लोगों ने यह भी कहा कि कुछ लोग नहीं चाहते हैं कि ये मकसद पूरा हो क्योंकि कानून बना तो कई लोगों की दुकानदारी बंद हो जाएगी। लेकिन आत्मविश्वास था, लोगों का साथ था तो हम चलते गए।

(विवेक के साथ आलोक कुमार चौबे भी हैं जो सामान लेकर बाइक से चल रहे थे। इस दौरान उन्होंने लगभग पूरे रास्ते महज पांच किमी प्रतिघंटा से भी कम की गति से बाइक चलाई।)
आरा से चलकर अब आप दिल्ली पहुंच चुके हैं, यहां क्या प्लान है अब आपका?
राष्ट्रपति जी से मुलाकात कर उन्हें अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपना चाहते हैं। हमारी कोई बड़ी मांगें नहीं हैं। उनके आदेश से काम जल्दी हो सकता है।
राष्ट्रपति से आप मुलाकात करना चाहते हैं? आपको समय मिल गया या क्या रणनीति होगी आपकी?
हमें अपॉइंटमेंट मिल गया था लेकिन अचानक उनका भारत से बाहर जाने का कार्यक्रम बन गया। तो पहला अपॉइंटमेंट कैंसिल हो गया। आगे हम बात करेंगे हो सकता है फिर से कोई तारीख तय हो और अपॉइंटमेंट मिले। प्रोटोकॉल के हिसाब से थोड़ा समय लग सकता है। हम ई-मेल के जरिए भी अपनी बात पहुंचा चुके हैं। सचिवालय के संपर्क में हैं और उम्मीद है मौका मिलेगा।
पटना की यात्रा से भी काम हो सकता था। फिर दिल्ली को ही मंजिल क्यों बनाया?
चूंकि भोजपुरी अब सिर्फ बिहार की भाषा नहीं है। लगभग 30 करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं। इसका दायरा बिहार से आगे उत्तर प्रदेश, दिल्ली और सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। इसका दायरा काफी विस्तृत है ऐसे में सिर्फ पटना तक की यात्रा से इतनी जागरूकता हम नहीं फैला सकते थे। यात्रा के दौरान हमें कई बार चाय की चौपालों पर खाने के ढाबों पर लोग मिले उनसे चर्चा हुई। उन्होंने भी सहमति और खुशी जताई तो काफी अच्छा लगा।
भोजपुरी के जानने-समझने वालों से आप क्या अपील करना चाहेंगे?
लोगों से यही अपील करूंगा कि वो ऐसे कंटेंट को बढ़ावा न दें। हमारी मुहिम में साथ जुड़ें। यह अकेले मेरी मुहिम नहीं है इसमें आप सबका साथ बहुत जरूरी है। भोजपुरी हम सबकी मां हैं और बीमार मां के इलाज के लिए आगे आएं। अगर बिहार के पारंपरिक खेल ‘ओका-बोका’ को भी अगर यू-ट्यूब पर सर्च करें तो वहां अश्लीलता ही मिलेगी। ऐसे में अब जरूरत है कि हम इस तरह का कंटेंट जब भी यू-ट्यूब या कहीं देखें तो तुरंत उसके खिलाफ शिकायत करें।

विवेक से बातचीत के दौरान हमें वहां मौजूद बिहार के कई लोग मौजूद थे। उनमें आरा के ही रहने वाले उत्तम मिश्रा भी थे। उत्तम से भी जब हमने विवेक की मुहिम को लेकर बातचीत की…
आप विवेक जी की मुहिम से कितने सहमत हैं, क्या आप उनके साथ हैं?
हम सोशल मीडिया के जरिये विवेक जी को पहले भी देखते रहे हैं। मेरा मानना है कि अगर अपनी भाषा और संस्कृति के लिए कोई इतनी मेहनत करता है तो हमें बिल्कुल उनका साथ देना चाहिए। भोजपुरी में अच्छा गाने वाले भी हैं उन्हें प्रोत्साहन मिलना चाहिए। कई ऐसे गाने भी हैं जिन्हें सुनकर-समझकर आप सीना चौड़ा कर कह सकें कि हां हम बिहार से हैं। कोविंद जी राष्ट्रपति बनने से पहले बिहार के राज्यपाल थे तो मेरी उनसे यही अपील है कि जिस मिट्टी से आप आए हैं उसे एक छोटा-सा तोहफा दीजिए और भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करवा दीजिए।