रंजना मिश्रा

अनेक सरकारी सुविधाओं और योजनाओं के बावजूद अभी यह क्षेत्र अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसके समाधान के लिए समुचित प्रयास होने चाहिए। किसी भी उद्यम को चालू करने के लिए कुछ बुनियादी जरूरतों का होना बहुत जरूरी है।

सू क्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। देश के औद्योगिक उत्पादन का तीस प्रतिशत एमएसएमई क्षेत्र से आता है, अड़तालीस प्रतिशत निर्यात में इनका योगदान है और रोजगार की दृष्टि से देखें तो कृषि के बाद कम पूंजी लागत पर सर्वाधिक रोजगार का सृजन करके देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इन उद्योगों से लगभग ग्यारह करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होता है। कोविड ने इस क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है।

इस क्षेत्र को मजबूत बनाकर ही बड़े उद्योगों को मजबूत बनाया जा सकता है, मगर सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस उद्योग के पास संसाधनों की कमी है। एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमियों के पास न तो ज्यादा वित्तीय पूंजी होती है और न ही बड़े उद्यमियों की तरह इन्हें व्यवसाय की कोई अच्छी समझ होती है। ज्यादातर सूक्ष्म और लघु उद्योग ग्रामीण इलाकों या कस्बों में लगे हैं, इसलिए इन्हें अवसंरचनात्मक सुविधाओं जैसे, बिजली, सड़क, पानी आदि की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों का विकास, उनकी बाजार तक पहुंच, उत्पादों की गुणवत्ता, समय पर ऋण की उपलब्धता और प्रौद्योगिकी के उन्नयन आदि कारकों पर निर्भर करता है। जीएसटी लागू होने के शुरुआती दौर में छोटे उद्यमों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिससे कच्चे माल की आपूर्ति वाला पक्ष प्रभावित हुआ।

कोई भी उद्यम अगर अपने आप को आज के दौर की उन्नत तकनीक में नहीं ढालता, तो वह औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाता है, लेकिन इन तकनीकों के महंगे होने के कारण छोटे उद्योग इनका उपयोग नहीं कर पाते, जिसका असर उनके उत्पादन पर पड़ता है। इनके उत्पाद की गुणवत्ता गिरती और इनकी आपूर्ति शृंखला भी प्रभावित होती है।

इन उद्यमियों को विलंबित भुगतान होने के कारण दो प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पहली समस्या है विलंबित भुगतान की, जिसकी वजह से वे आने वाले आदेश के लिए कच्चा माल नहीं खरीद पाते। दूसरे, उसकी वजह से उनकी साख पर प्रभाव पड़ता है और बैंकों से कर्ज लेना और भी मुश्किल हो जाता है।

एक समस्या यह है कि इस क्षेत्र के चालीस प्रतिशत से अधिक उद्यमियों के पास वित्त के औपचारिक स्रोतों तक पहुंच ही नहीं है, यानी वे बैंकिंग क्षेत्र से कर्ज ही नहीं ले पाते। पूर्णबंदी के दौरान और उसके बाद कच्चे माल की कीमतों में भारी इजाफा हुआ, विशेषकर धातुओं में। इसके कारण लागत बढ़ गई। छोटे उद्यमियों के सामने एक समस्या यह भी आती है कि कच्चे माल की अनुपलब्धता के कारण वे समय पर माल की आपूर्ति नहीं कर पाते और इस वजह से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां उन्हें काली सूची में डाल देती हैं।

भारत सरकार और एमएसएमई मंत्रालय द्वारा इन चुनौतियों को कम करने तथा भारतीय एमएसएमई क्षेत्र के क्षमता निर्माण के लिए कौशल विकास, प्रौद्योगिकी उन्नयन, विपणन सहायता और एमएसएमई को ऋण तक पहुंच के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया गया है। सरकार की ओर से एक अच्छी पहल की गई है कि केंद्र सरकार के मंत्रालय, उसके विभाग या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा जो भी खरीद की जाएगी, उसका पच्चीस प्रतिशत एमएसएमई उद्योगों से ही खरीदा जाए।

व्यवसाय करने में आसानी हो इसके लिए ‘उद्यम पंजीकरण’ नाम से एक पोर्टल शुरू किया गया है, जिसमें अपने उद्यम को बहुत आसानी से पंजीकृत कराया जा सकता है। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एमएसएमई उद्यमों को स्थापित करके सरकार रोजगार के अवसर पैदा करना चाहती है। इसके लिए क्रेडिट लिंक्ड सबसिडी सरकार की तरफ से दी जाएगी।

पारंपरिक उद्योगों के उन्नयन और पुनर्निर्माण के लिए कोष की योजना के तहत कारीगरों और पारंपरिक उद्योगों को समूहों में व्यवस्थित करके उन्हें व्यापार में प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। सूक्ष्म और लघु उद्योगों के लिए क्रेडिट गारंटी योजना ऋण के आसान प्रवाह की सुविधा के लिए चलाई गई है। इसके तहत छोटे उद्यमियों को गारंटी मुक्त ऋण प्रदान किया जाता है और बैंकों को भी कोई नुकसान न हो इसके लिए सरकार गारंटी देती है। छोटे उद्यमियों की उत्पादकता, प्रतिस्पर्धात्मकता के साथ-साथ क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने के लिए ‘सूक्ष्म और लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम’ चलाया जा रहा है।

भारत सरकार ने राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआइसी) के सहयोग से कच्चा माल सहायता योजना शुरू की है। इस योजना के तहत संकटग्रस्त एमएसएमई को कच्चे माल की खरीद के लिए वित्तीय ऋण प्रदान किया जाता है। उत्पादकता में सुधार के साथ-साथ, एमएसएमई की क्षमता बढ़ाने के लिए एमएसएमई मंत्रालय ने सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) की स्थापना की है। इसके तहत इन उद्यमों की प्रमुख समस्याओं को कम करके, प्रौद्योगिकी, बाजार पहुंच, कौशल और गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।

अर्थव्यवस्था को और मजबूती देने और उसकी रफ्तार बढ़ाने के लिए सशक्त और आत्मनिर्भर एमएसएमई का होना बहुत आवश्यक है। अनेक सरकारी सुविधाओं और योजनाओं के बावजूद अभी यह क्षेत्र अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसके समाधान के लिए समुचित प्रयास होने चाहिए। किसी भी उद्यम को चालू करने के लिए कुछ बुनियादी जरूरतों का होना बहुत जरूरी है। औद्योगिक क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था अच्छी और सुदृढ़ होनी चाहिए, तभी कोई उद्यमी निडर होकर भली प्रकार अपना व्यवसाय कर सकता है। अराजक तत्वों व भ्रष्टाचार के कारण उद्योग धंधे फल-फूल नहीं पाते।

अच्छे उत्पादन के लिए बिजली की निर्बाध आपूर्ति जरूरी है। उद्योगों के विकास के लिए, अच्छी सड़कें और परिवहन व्यवस्था सही होना भी बहुत जरूरी है। एमएसएमई क्षेत्र में मुख्य समस्या कुशल श्रमिकों की आती है। सरकार को कौशल विकास कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए अधिक से अधिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना करनी चाहिए, ताकि विभिन्न कार्यों के जानकार और कुशल कारीगर अधिक संख्या में उपलब्ध हो सकें।

कच्चे माल की कालाबाजारी रुकनी चाहिए, ताकि कारोबारियों को नुकसान न हो। छोटे उद्यमियों के सामने एक प्रमुख समस्या विलंबित भुगतान की आती है। सरकार की खरीदारी देश में काफी बड़ी मात्रा में है और जब तक सरकारी संस्थाओं से बेचे गए सामान का भुगतान नहीं होता, तब तक पूरी आपूर्ति शृंखला धीमी हो जाती है। इसलिए इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

निर्यात के क्षेत्र में एमएसएमई क्षेत्र बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकता है। इसके लिए अधिक पूंजी और आधारभूत ढांचे की जरूरत है, जिसमें सरकार को पूरा सहयोग देना चाहिए। सरकार को एमएसएमई क्षेत्र को मजबूत बनाने और बढ़ावा देने के लिए बड़ा आर्थिक पैकेज देना चाहिए। साथ ही रोजगार सृजन पर अधिक ध्यान देने और नई राष्ट्रीय रोजगार नीति तैयार करने की आवश्यकता है।

विनिर्माण में आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रौद्योगिक केंद्रों की स्थापना होनी चाहिए। सूक्ष्म उद्यमों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए प्रयास होने चाहिए। बैंकों द्वारा एमएसएमई को ऋण प्रदान करने में उदारता बरती जाए और स्वीकृति के बाद ऋण देने में देरी न हो, इसकी भी व्यवस्था होनी चाहिए। पांच खरब की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एमएसएमई क्षेत्र का मजबूत होना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह क्षेत्र न केवल अपने लिए रोजगार बनाता है, बल्कि देश के करोड़ों लोगों को भी रोजगार देता है।