देश के इकसठ फीसद कारोबारी और अन्य श्रेणी के संस्थानों का विकास साइबर हमले से बुरी तरह प्रभावित है। इस वजह से इन संस्थानों को भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। यह खुलासा एक आइटी विश्लेषक कंपनी ने किया है। यह स्थिति इस बात को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि देश के पनच्यानवे फीसद कारोबारी और संस्थान डिजिटलीकरण की राह पर तो चल दिए हैं, लेकिन साइबर हमले से निपटने के लिए पुख्ता सुरक्षा तंत्र विकसित नहीं कर पाए हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो वर्षों के दौरान छियालीस फीसद संगठनों ने साइबर हमले झेले हैं। बीस फीसद संगठनों ने तो बीते एक वर्ष में कभी भी साइबर हमले से बचने का मूल्यांकन नहीं करवाया। सत्तर फीसद संगठनों ने साइबर सुरक्षा को लेकर बचाव का रास्ता अख्तियार किया। सिर्फ अठारह फीसद कंपनियों ने ही डिजिटलीकरण के शुरुआती चरण में साइबर सुरक्षा की व्यवस्था की।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में साइबर अपराध बीते दो वर्ष में दोगुना हो चुका है। वर्ष 2015 में साइबर अपराध के 11592 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2017 में यह संख्या 21796 पहुंच चुकी है। यानी तकरीबन अट्ठासी फीसद की वृद्धि हुई है। इनमें बड़ी संख्या संस्थानों और संगठनों पर हुए साइबर हमलों, वेबसाइट हैकिंग और अवैध लेन-देन की है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) साइबर हमले को नाकाम करने के लिए मौजूदा फ्रेमवर्क को मजबूत बनाने और साइबर सुरक्षा को अभेद्य बनाने की दीर्घकालीन रणनीति तैयार करने की बात कह चुका है। लेकिन साइबर हमले कम होने के बजाय बढ़े रहे हैं। इससे संस्थानों, संगठनों व विशेषकर बैंकों को लेकर लोगों में नाराजगी बढ़ी है।
पिछले साल अमेरिकी कंपनी एफआइएस द्वारा वैश्विक स्तर पर किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि देश के अठारह से छत्तीस वर्ष के आयु वर्ग के युवा उपभोक्ता बैंकों की कार्यप्रणाली से नाखुश हैं। उसका कारण यह है कि भारतीय बैंक अपने ग्राहकों की अपेक्षाओं की कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि बैंकों के समक्ष कई तरह की चुनौतियां हैं, जिनमें एक सबसे बड़ी चुनौती साइबर अपराध रोकने की है। लेकिन बैंक इसमें नाकाम रहे हैं। सरकार के आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले तीन वित्त वर्ष में बैंकों से जुड़े साइबर अपराध के 43204 मामले सामने आए हैं जिसमें अपराधियों ने 232.32 करोड़ रुपए का चूना लगाया है। वित्त वर्ष 2014-15 में डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग से जुड़े साइबर अपराध के 13,083 मामले सामने आए जिनमें 80.64 करोड़ रुपए की चपत लगी। इसी तरह वित्त वर्ष 2015-16 में मामलों की संख्या बढ़ कर 16,468 तक पहुंच गई। पिछले वित्त वर्ष में कुल 13,653 मामले सामने आए जिनमें 72.68 करोड़ रुपए की चपत लगी।
साइबर अपराधियों के निशाने पर सबसे ज्यादा क्रेडिट कार्ड रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक देश में आइटी एक्ट के तहत पंजीकृत साइबर अपराधों के मामले में 2011 से अब तक तकरीबन तीन सौ फीसद तक की वृद्धि हो चुकी है। इस अध्ययन में कहा गया है कि अगर साइबर अपराध पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो साइबर हमलावर न्यूक्लियर प्लांट, रेलवे, परिवहन और अस्पतालों जैसी महत्त्वपूर्ण जगहों पर हमले कर सकते हैं जिससे कई गंभीर समस्याएं खड़ी हो सकती है और जनजीवन व सारे काम ठप पड़ सकते हैं। कुछ साल पहले भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों में हैकरों ने साइबर हमला बोल कई देशों की सरकारों की नींद उड़ा दी थी।
पिछले एक दशक में भारत में साइबर अपराध अट्ठासी गुना बढ़े हैं। साइबर अपराधों के मामले में गिरफ्तारी में भी दस गुना बढ़ोत्तरी हुई है। साइबर अपराध के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरे नंबर पर है। आज भारत की बड़ी आबादी डिजिटल जिंदगी जी रही है। अधिकांश लोग बैंक खाते से लेकर निजी गोपनीय जानकारी तक कंप्यूटर और मोबाइल फोन में रखने लगे हैं। इंटरनेट उपयोग करने के मामले में दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है। इंटरनेट पर जिस तेजी से निर्भरता बढ़ी है, उतने ही ज्यादा खतरे भी बढ़े हैं। यही वजह है कि हैकिंग की वारदातें भी तेजी से बढ़ रही हैं। भारत की ही बात करें तो यहां ऐसी अनेक देशी-विदेशी कंपनियां हैं जो इंटरनेट आधारित कारोबार और सेवाएं प्रदान कर रही हैं। उचित होगा कि भारत सरकार ऐसी कंपनियों पर निगरानी रखने के लिए ऐसा निगरानी तंत्र विकसित करे जो इन कंपनियों पर कड़ी नजर रखे। उचित यह भी होगा कि जिन कंपनियों की कार्यप्रणाली संदिग्ध नजर आए उन पर शिकंजा कस कानूनी कार्रवाई की जाए। ऐसी कंपनियों के लाइसेंस निरस्त किया जाएं जो साइबर सुरक्षा से संबंधित नियमों का पालन करने में कोताही बरत रही हैं। इसके अलावा देश में अनेक ऐसी विदेशी कंपनियां सेवाएं दे रही हैं जिनका सर्वर भारत में नहीं है। ऐसी कंपनियों को निगरानी की जद में रखना एक बड़ी चुनौती है।
ऐसा नहीं है कि भारत में साइबर अपराध रोकने के लिए कानून नहीं हैं। भारत में साइबर अपराध को तीन मुख्य अधिनियमों के अंतर्गत रखा गया है। ये अधिनियम हैं-सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, भारतीय दंड संहिता और राज्य स्तरीय कानून। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गत आने वाले प्रमुख मामलों में कंप्यूटर स्रोत और दस्तावेजों से छेड़छाड़, कंप्यूटर सिस्टम की हैंकिंग, आंकड़ों में हेराफेरी, अश्लील सामग्री का प्रकाशन, गोपनीयता को भंग करना जैसे कई अपराध शामिल हैं। भारत में साइबर अपराध के मामलों में सूचना तकनीक कानून, 2000 और सूचना तकनीक संशोधन कानून, 2008 लागू होते हैं। किंतु इसी श्रेणी के कई मामलों में भारतीय दंड संहिता, कॉपीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और जरूरत पड़ने पर आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी कार्रवाई हो सकती है।
साइबर अपराध के बदलते तरीकों और घटनाओं ने भीषण समस्या का रूप ले लिया है। जुर्म की दुनिया में अपराधी हमेशा कानून को गुमराह करने के लिए नए-नए तरीके ईजाद करते रहते हैं। हैकिंग के जरिए रक्षा-सुरक्षा से जुड़ी गोपनीय जानकारियों में सेंध लगाने की घटनाएं कई बाक सामने आ चुकी हैं। सीबीआइ दफ्तर जैसे संस्थान भी साइबर हमले की चपेट में आ चुके हैं। साइबर अपराधियों के बढ़ते हौसले की मुख्य वजह यह है कि देश में साइबर अपराधों को रोकने और अपराधियों को दंडित करने के लिए कठोर तथा प्रभावी कानूनों का अभाव है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में अभी भी साइबर अपराध गैर जमानती नहीं है। इसके लिए अधिकतम सजा तीन साल है। उचित होगा कि सरकार साइबर अपराध से जुड़े कानूनों में फेरबदल कर इसे कठोर बनाए और सजा की मियाद बढ़ाए। देश में साइबर अपराध से निपटने के लिए साइबर थानों की संख्या में वृद्धि करना बहुत जरूरी है।
ज्यादातर शहरों में तो साइबर अपराध की शिकायत भी सामान्य थानों में कराई जाती है और पुलिस इस काम को कर पाने में सक्षम नहीं होती। देश में साइबर थानों की संख्या पचास से भी कम है। सरकार को साइबर अपराध पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानून तो बनाना ही होंगे, आमजन को भी साइबर सुरक्षा से जुड़े उपायों का पालन करना होगा। मसलन हार्डड्राइव को सुरक्षित रखने के अलावा सिग्नल या वाट्सअप से संदेश भेजने पर जोर देना चाहिए। ईमेल पर दोहरी सुरक्षा कैसे हो इसका उपाय ढूंढ़ना चाहिए। असुरक्षित वेबसाइट पर जाने से बचना चाहिए। लेकिन देखा जा रहा है कि तमाम हिदायतों के बावजूद साइबर सुरक्षा संबंधी उपायों का पालन नहीं हो रहा है।