मां और ममता दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। कोई मां कभी अपने संतान का अहित नहीं चाह सकती। लेकिन यही बात सभी संतानों पर लागू नहीं होती। पिछले दिनों दिल्ली के कालकाजी की बयासी साल की गुरवचन कौर की अपनी बेटी द्वारा पिटाई का करीब डेढ़ मिनट का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। उसे टीवी चैनलों ने भी पर्याप्त महत्त्व दिया। उस दृश्य को देख कर किसी का भी दिल दहल जाएगा। जिस तरह चेहरे पर झुर्रियां निकली हुई बरामदे में कुर्सी पर बैठी बूढ़ी महिला की उसकी अपनी ही बेटी पिटाई करने के लिए अंदर खींचने की कोशिश करती है और न आने पर मारना शुरू कर देती है वह सन्न करने वाला दृश्य है। कोई संतान, वह बेटा हो या बेटी, अपनी मां को पीटे यह दुनिया के किसी समाज को कतई स्वीकार्य नहीं हो सकता। लेकिन बूढ़ी मां को बेवजह पीटने वाली लड़की को पड़ोस के लोग जब लानत देते हैं तो वह पड़ोस से ही लड़ पड़ती है कि यह हमारे मां और बेटी के बीच का मामला है।
जब वीडियो वायरल हुआ तो पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने घटना की छानबीन की। उससे पता चला कि वह महिला नियमित रूप से अपनी मां की बेरहमी से पिटाई करती है। यह ज्यादातर घर के अंदर होता है और पड़ोसी उस अभागी मां की चीख सुनते रहते हैं। पर यह अपनी किस्म की अकेली घटना नहीं हो सकती। वास्तव में घर में बुजुर्गों के साथ इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। ऐसी घटनाओं के कई पहलू हैं और उन सब पर गहराई से विचार किया जाना आवश्यक है।
इनमें पहला है, एक बेटी या बेटा का इस तरह मां के प्रति बेरहम होना। कुछ लोग इसे मानसिक समस्या साबित करते हैं। यह संभव है। अगर मानसिक समस्या न हो तो फिर माता या पिता के साथ कोई ऐसा बर्ताव क्यों करेगा? पर यह मान लेने से हम मां-बाप या घर के दूसरे बुजुर्गों के साथ बेरहम होने वालों के अपराधों को कम कर देते हैं। वैसे भी मनोविज्ञान के विस्तार ने हमारी हर असहज गतिविधि को किसी न किसी रोग का नाम दे दिया है। वास्तव में इसका इतना आसान उत्तर नहीं हो सकता। हमने ऐसी घटनाएं भी देखी हैं जिनमें बेटे ने या दो बेटों ने मिल कर अपनी मां की या पिता की हत्या कर दी, क्योंकि उनकी मृत्यु के बाद ही संपत्ति के वे मालिक बन सकते थे।
वर्तमान घटना में भी पड़ोसी बताते हैं कि बूढ़ी मां के मरने के बाद ही वह महिला संपत्ति की मालिक बन सकती है। हो सकता है बेटी की चाहत हो कि जल्दी से जल्दी मरे और वह मर नहीं रही तो खीझ में इतनी बेरहम हो गई हो। यह समय के चक्र का भी परिणाम है। संयुक्त परिवार प्रथा के कमजोर होने या टूटते जाने को इसका बड़ा कारण माना जा रहा है। वैसे आज के महानगरीय जीवन की एकांगिता में किसी के घर में क्या हो रहा है इसका पड़ोस तक को पता नहीं चलता। गांवों में यदि कोई ऐसा करे तो पूरा समाज उसे थू-थू करेगा।
गांवों में भी बुजुर्ग माता-पिता की अनदेखी करने वाले हैं, पर उनके लिए समाज में सिर उठा कर बात करना कठिन होता है। शहरों मेंं ऐसी स्थिति नहीं होती। यहां कौन किस पर नजर रखे। नजर पड़ भी गई तो अकेलेपन के दौर में सोच यह होती है कि कौन लफड़े में पड़े। शहरों में रिश्तेदार भी कभी-कभार कुछ समय के लिए आते हैं जिन्हें पता नहीं चलता कि घर में नियमित रूप से क्या होता है।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू है, बुजुर्गों की भारत में स्थिति। इस पर चर्चा करें इसके पहले जरा बेटी से नियमित बेरहम पिटाई की शिकार मां का रवैया देखना आवश्यक है। वीडियो वायरल होने के बाद पत्रकार वृद्ध महिला के पास पहुंचे तो उसने इस बात से ही इनकार कर दिया कि बेटी उनकी पिटाई करती है; कहा कि बेटी उन्हें कभी नहीं मारती। जब पूछा गया कि बेटी को आप अपने घर में क्यों रखती हो तो उन्होंने कहा कि उसके दो बच्चे हैं वो जाएगी कहां। तो यह है मां का व्यवहार, और उसके समानांतर बेटी की दरिंदगी देखिए। इतना होने पर भी मां नहीं चाहती कि उसकी बेटी की बदनामी हो या उस पर पुलिस मुकदमा करे।
अगर मां बोल देती कि वाकई उसकी पिटाई की जाती है तो उसकी बेटी पर मुकदमा दर्ज हो जाता और पड़ोसी जिस तरह तैयार थे उनकी गवाही से उसे सजा भी होती। तो यहां बेरहमी की शिकार मां ने ही बेरहम बेटी को गिरफ्तारी और मुकदमे से बचा लिया। यह है मां की ममता और सोच। लानत है उन पर जो इसे नहीं समझ पाते। लगभग यही स्थिति ऐसे दूसरे परिवारों में भी होती है। वास्तव में यह तो एक उदाहरण है जो बताता है कि वेदना झेलते हुए भी हमारे बुजुर्ग किस तरह अपने बच्चों को बचाते हैं।
भारत में बुजुर्गों की स्थिति पर ‘हेल्पेज इंडिया’ ने दो वर्ष पहले बारह महानगरों में बारह सौ से ज्यादा बुजुर्गों से बातचीत कर सर्वेक्षण जारी किया था। इनमें से लगभग आधे ने कहा कि वे अपने ही घर में बेगाने हैं। उनको प्रतिदिन किसी न किसी रूप में अत्याचार सहना पड़ता है। इसके पिछले साल ऐसे लोगों की संख्या तेईस प्रतिशत ही थी। यानी एक साल में उत्पीड़न के शिकार बुजुर्गों की संख्या दोगुनी से ज्यादा बढ़ गई। भारत में बुजुर्गों की आबादी लगभग दस करोड़ है और 2050 तक इसके बत्तीस करोड़ हो जाने का अनुमान है। तो जिस तरह का एकांगी जीवन होता जा रहा है उसमें बेरहम व्यवहार सहने वाले बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ने वाली है।
ऐसा नहीं कि बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए हमारे यहां कानून नहीं है। उनकी सामाजिक और कानूनी सुरक्षा के लिए ‘मेंटेनेंस एंड वेलफेयर आॅफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजेंस एक्ट, 2007’ है। इसके प्रावधान काफी कड़े हैं और यह कानून बच्चों को माता-पिता, दादा-दादी की सही तरीके से देखभाल के लिए बाध्य करता है। पर बहुत-से लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है। जो जानते हैं वे भी अपनी परंपरागत मानसिकता में परिवार की बदनामी या फिर बच्चों के प्रति ममता या बच्चों की ओर से बदले की कार्रवाई के डर से कानूनी सहायता लेने से हिचकते हैं।
सर्वेक्षण के दौरान लगभग सत्तर प्रतिशत ने कहा कि उनको पुलिस हेल्पलाइन के बारे में जानकारी है, लेकिन घर का माहौल खराब होने की वजह से शिकायत नहीं करना चाहते। इन लोगों को डर था कि एक बार पुलिस में शिकायत के बाद उन पर मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न तेज हो सकता है। हालांकि सर्वेक्षण में इकसठ प्रतिशत ने बहुओं को उत्पीड़न और अत्याचार का कारण माना। यानी अब भी बेटे-बेटियों की संख्या उत्पीड़न करने वालों में कम है, पर जितना है उतना ही अंदर से हिला देने वाला है।
‘हेल्पेज इंटरनेशनल नेटवर्क आॅफ चैरिटीज’ द्वारा तैयार ‘ग्लोबल एज वॉच इंडेक्स 2015’ में छियानबे देशों में भारत को बुजुर्गों की स्थिति के मामले में इकहत्तरवां स्थान दिया गया। इस सूचकांक में छियानबे देशों के वृद्धों के सामाजिक और आर्थिक रहन-सहन का आकलन किया गया है। जिन देशों की हम एकल परिवार को लेकर आलोचना करते हैं वहां बुजुर्गों की स्थिति बेहतर मानी गई। ऊपर के दस स्थानों पर आए देश पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के ही हैं। भारत की तरह दुनिया भर में वृद्धों का अनुपात बढ़ रहा है। 2050 तक छियानबे में से छियालीस देशों की तीस प्रतिशत से ज्यादा आबादी साठ वर्ष या इससे ऊपर के लोगों की होगी।
कहने का तात्पर्य यह कि भारत और दुनिया के स्तर पर बुजुर्गों की सुरक्षा, उनकी देखभाल, उनकी गरिमा आदि का प्रश्न बहुत बड़ा मसला बन कर सामने आ रहा है। कानून भी तो तभी काम करेगा जब लोग उसके दरवाजे तक जाएंगे। भारत में गुरवचन कौर जैसी माताएं हैं जो शिकार होते हुए भी अपने उत्पीड़न की शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहतीं। जाहिर है, कानून की यहां सीमा है। हालांकि किसी एक पर कानूनी कार्रवाई के बाद दुष्ट मानसिकता वाले दूसरे भी अपने घर के बुजुर्गों पर, भय से ही सही, अत्याचार करने से बचेंगे। दुर्भाग्य से, ऐसा होता दिखता नहीं।
तो एक रास्ता सामाजिकता का दिखता है। हमारे-आपमें से जिनका भी थोड़ा सार्वजनिक जीवन है वे इस दिशा में समाज सुधार के लिए काम करें। लोगों में संवेदनशीलता और कानून का भय दोनों पैदा करने की आवश्यकता है। बेटे-बेटियों-दामादों-बहुओं को यह समझना होगा कि वे भी कभी बुजुर्ग होंगे और जो व्यवहार आपके बच्चे आपके माता-पिता के साथ होते देख रहे हैं वे भी आपके साथ वैसा ही करेंगे। यह वे नहीं समझते तो समझाने की जरूरत है।
इसी तरह यह विचार भी समाज में फैलाने की आवश्यकता है कि जिन्होंने अपने घर के बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार किया और देखभाल ठीक से नहीं की, उनके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। बुजुर्गों को भी पारंपरिक सोच से बाहर निकलने की आवश्यकता है। जो बच्चे आपका उत्पीड़न करते हैंं उनके प्रति कैसा प्यार और मोह! हम जानते हैं इस प्रकार का जागरण आसान नहीं है। अंतत: मामला हमारी आंखों के पानी और माता-पिता के प्रति दायित्व पर ही आकर टिक जाता है।