बढ़ते हवाई हादसों ने एक बार फिर लोगों को विमान यात्रा के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है। सोमवार को काठमांडो के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरते वक्त बांग्लादेशी विमान आग की लपटों में समा गया। इस हादसे में पचास से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। हादसे का कारण मानवीय गलती और तकनीकी खराबी बताई गई है। घटना की शुरुआती जांच में हवाई अड्डा प्रशासन ने विमान के पायलटों की गलती बताई है। चालक ने गलत दिशा से हवाई पट्टी पर उतरने की कोशिश की। इसी दौरान विमान बेकाबू हो गया और आगे का हिस्सा धराशायी होते ही उसमें आग लग गई।

लगातार होते विमान हादसों ने हवाई सफर करने वालों में बैचेनी पैदा कर दी है। हादसों के बाद सरकारें सुरक्षा संबंधी दावे तो करती हैं, लेकिन बार-बार होते रहने वाले हादसे इन खोखले दावों की पाले खोल देते हैं। दुनिया भर में खतरों की समीक्षा के आधार पर सुरक्षा उपायों को लागू करने के कारण हवाई यात्रा को सुरक्षित और यात्री हितैषी बनाने के लिए नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो सुरक्षा पद्धतियों को लगातार रूप से उन्नत और पुन: परिभाषित करते रहते हैं। लेकिन नतीजा वही ढाक के पात की तरह होता है। नेपाल के इस हादसे के बाद भारतीय विमानन क्षेत्र को सर्तक हो जाना चाहिए। उड्डयन क्षेत्र में भारत आज भी दूसरे देशों से काफी पीछे है। नए विमानन नियम, नई सहूलियतें, आधुनिक तामझाम, यात्रा में सुगमता की गारंटी उस समय धरी रह जाती हैं, जब विमान उड़ने से पहले अपनी अव्यवस्था बयां कर देता है।

उदाहरण के लिए, कुछ महीने पहले जब दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रनवे पर आमने-सामने एक साथ दो विमान आ गए। हादसा होते-होते बचा। नेपाल में भी इसी कारण विमान हादसा हुआ है। इसे चाहे एटीएस का गलती कहें या विमानन कंपनियों की तकनीकी नाकामी, या फिर पायलटों की लापरवाही, लेकिन यात्रियों की जिंदगी दांव पर जरूर लग जाती है। पिछले साल 28 दिसंबर को हिंदुस्तान में दो बड़े विमान हादसे होते-होते बचे। एक दिल्ली में और दूसरा गोवा में। उस वक्त दोनों घटनाओं ने हवाई यात्रा सुरक्षा की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए थे।

नेपाल की घटना ने दुनियाभर की विमानन कंपनियों को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। नेपाल में दुर्घटनाग्रस्त हुआ विमान बांग्ला-यूएस निजी कंपनी का था। इस हादसे में विमान कंपनी की नाकामी स्पष्ट रूप से सामने आई है। उसकी तकनीक की अव्यवस्था की पोल खुल गई है। हालांकि यह गलती न विमानन कंपनी स्वीकार करेगी और न ही सरकारी तंत्र। घटना की शुरुआती जांच के बाद बांग्ला प्रशासन ने फिलहाल विमान कंपनी का लाइसेंस अस्थायी रूप से रद्द कर दिया है। सवाल उठता है कि क्या यह सब करने से हादसों पर अंकुश लगा पाना संभव हो पाएगा?

नेपाल की इस घटना ने इक्कीस साल पहले हरियाणा के चरखी विमान हादसे की याद दिला दी। एअर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) से जुड़ा यह भारत में अब तक का सबसे बड़ा हवाई हादसा था। 12 नवंबर, 1996 को चरखी दादरी में दो विमान हवा में टकरा गए थे। एक विमान सऊदी अरब का था और दूसरा कजाखिस्तान का। उस हादसे में दोनों विमानों में सवार सभी यात्रियों में से कोई जिंदा नहीं बचा। यकीनन, चरखी दादरी विमान दुर्घटना में रूसी जहाज के पायलट की गलती सामने आई थी। वजह उसे एटीसी के दिशा-निर्देश ठीक से समझ नहीं आ रहे थे। एटीसी उसे बता रहा था कि वह गलत रूट पर जा रहा है। दरअसल, रूसी पायलट को अंग्रेजी नहीं आती थी। वह रूसी भाषा ही जानता था। भाषा नहीं समझ पाने से पायलट ने रास्ता नहीं बदला और विमान सामने से आ रहे दूसरे जहाज से टकरा गया था। इस हादसे के बाद एअर मैनुअल में एक संशोधन किया गया कि हर देश में एटीसी और पायलट को अंग्रेजी जरूर आनी चाहिए। इस हादसे के बाद एटीसी के लोग अंग्रेजी तो सीख गए, लेकिन हादसे नहीं थमे। ज्यादातर विमान हादसों में खराब मौसम होने की दुहाई दी जाती है। लेकिन ऐसे हादसों में मानवीय चूक भी बहुत बड़ी भूमिका अदा करती है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता।

दरअसल, विमानन क्षेत्र में अक्सर कहा जाता है कि भारत का उड्डयन क्षेत्र अभी भी विश्वस्तरीय नहीं है। हिंदुस्तान में महज दिल्ली, मुंबई जैसे दो-तीन ही अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं जो वैश्विक मानकों के अनुरूप हैं। जबकि देश में उड्डयन क्षेत्र में भारी संभावनाएं हैं। यह क्षेत्र सालाना चौदह फीसद की दर से बढ़ रहा है। भारतीय उड्डयन क्षेत्र का अभी तक उचित दोहन नहीं किया गया है। टियर-दो और टियर-तीन श्रेणी के शहरों को तो हवाई मार्गों से जोड़ा ही नहीं गया है, जबकि आर्थिक तरक्की के साथ इन शहरों में हवाई यात्री बढ़े हैं। उड्डयन क्षेत्र में पिछले दो दशकों से ईमानदारी से काम नहीं किया गया। यही कारण है कि इस क्षेत्र का स्तर पिछले बीस सालों में काफी गिरा है।

पिछले कुछ सालों में जिस तेजी से विमान हादसे बढ़े हैं उससे लोगों के मन में विमान यात्रा को लेकर खौफ तो पैदा हो ही गया है। कुछ दिन पहले रूस के साइबेरिया प्रांत में विमान हादसा हुआ था। पिछले साल ही रूस का एक विमान समुद्र में समा गया था। चार साल पहले मलेशिया के विमान हादसे के बारे में आज तक कोई सुराग नहीं मिल पाया। ऐसे में अब विमानन कंपनियों की लापरवाही और अशांत क्षेत्रों के ऊपर से उड़ान भरने को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। आखिर कैसे हो सुरक्षित बने हवाई यात्रा?

अगर पायलटों की गलती सामने आती है, तो प्रशासन को ऐसे सभी पायलटों को अयोग्य कर देना चाहिए जो उड़ान के दौरान लापरवाही दिखाते हैं। उनकी थोड़ी सी चूक कई लोगों की जान ले सकती है। भारत के लिहाज से देखें तो हमारे यहां भी लगातार विमान दुर्घटनाएं हो रही हैं। खराब मौसम, पायलट की चूक या फिर कोई तकनीकी समस्या से अब तक हवाई हादसों में कई यात्रियों ने अपनी जान गंवाई है। जनवरी 1978 में पहली बार एअर इंडिया का विमान अरब सागर में गिरा था। उस विमान में दो सौ तेरह यात्री सफर कर रहे थे। इसके बाद 21 जून, 1982 को एअर इंडिया का एक और विमान मुंबई हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हुआ। जांच में पता चला कि पायलट की गलती से यह हादसा हुआ। वर्ष 1988 में अमदाबाद में एअर इंडिया का एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था जिसमें एक सौ चौबीस लोग मारे गए थे। 1990 में बंगलुरु में हुए विमान हादसे में बानवे लोगों की मौत हो गई थी। 1991 में इंफल में हुए विमान हादसे में उनहत्तर लोगों की मौत हो गई थी। साल 2000 में पटना हवाई अड्डे पर हुए हादसे में साठ लोग मारे गए थे। इन सारे हादसों की जांच में जो सबसे बड़ा खुलासा हुआ वह यह कि ज्यादातर हादसे खराब रखरखाव और तकनीकी खराबियों की वजह से हुए। कुछ में पायलटों की गलती और लापरवाही भी सामने आई थी। इन हवाई हादसों से सबक लिया जाना चाहिए। सबसे पहली जरूरत इस बात की है कि दक्ष पायलटों को ही विमान उड़ाने की इजाजत होनी चाहिए। विमानों का रखरखाव ठीक से हो और उसकी समय पर जांच करनी चाहिए, ताकि यात्री भयमुक्त होकर विमानों में सफर कर सकें।