मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने मणिपुर के कुकी-नगा बहुल इलाके सदर हिल्स और सेनापति में नए जिले बनाने की घोषणा कर राज्य की यूनाइटेड नगा कॉउंसिल (यूएनसी) के पैरों के नीचे की जमीन खिसका दी। इन इलाकों पर नगा उग्रवादी संगठन नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल आॅफ नगालैंड (आईएम) का गहरा प्रभाव है। यही कारण है कि पिछले एक नवंबर से यूएनसी ने राष्ट्रीय राजमार्गों को अवरुद्ध कर रखा है।
मणिपुर तक जाने वाले दो राष्ट्रीय राजमार्गों को यूनाइटेड नगा कौंसिल ने विगत दो महीने से अवरुद्ध कर रखा है और इसे विरोध जताने के एक तरीके के रूप में आर्थिक अवरोध का नाम दिया गया है। इस अवरोध के चलते मणिपुर की आम जनता को भीषण दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुओं की किल्लत हो गई है। लोगों की तकलीफ को और बढ़ाने में नोटबंदी ने भी अहम भूमिका निभाई है। एक नवंबर से आर्थिक अवरोध शुरू किया गया और आठ नवंबर की रात अचानक पांच सौ और हजार रुपए के पुराने नोट बंद कर दिए गए। कल्पना की जा सकती है कि आर्थिक अवरोध से जूझ रहे मणिपुर की इंफल घाटी के नागरिकों को किस तरह दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। मणिपुर तक जाने वाली सड़कों पर नगा दबाव समूहों का भौगोलिक रूप से नियंत्रण है। एशियन हाइवे 2 दीमापुर और मणिपुर को आपस में जोड़ता है। इसी तरह नेशनल हाइवे 37 असम और मणिपुर को आपस में जोड़ता है। ये दोनों सड़कें मणिपुर की जीवनरेखा मानी जाती हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों के दबाव समूह नियमित रूप से संबंधित राज्य सरकारों के अलग-अलग फैसलों के खिलाफ अपनी नाराजगी जताने के लिए रेल मार्ग और हाइवे जाम करते रहते हैं। इन समूहों को लगता है कि आम लोगों को परेशान करके ही सरकार पर दबाव डाला जा सकता है। कुछ दिन पहले अखिल बोडो छात्र संघ (आब्सू) ने अलग राज्य की मांग के समर्थन में रेल मार्ग अवरुद्ध कर दिया था। इस तरह रेल यात्रियों को बारह घंटे से अधिक समय तक रेलगाड़ी में ही रहना पड़ा था। इस तरह कानून हाथ में लेकर दबाव समूह निरीह जनता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते रहे हैं, जबकि केंद्र और राज्य की सरकारें मूक दर्शक बनी रही हैं।
मणिपुर के उलझे हालात को समझना आसान नहीं है। इस राज्य के इतिहास में समय-समय पर अलग-अलग समुदाय के बीच टकराव होता रहा है। वैसे टकराव के बावजूद इस इलाके में नगा, मईतै, कुकी-चीन समुदाय के लोग अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण तरीके से सदियों से साथ रहते रहे हैं। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के वजूद में आने से पहले जब समुदायों के अलग-अलग गृह राज्य बनाने की कल्पना भी नहीं की जाती थी, तब इन समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना देखी जा सकती थी। मगर पिछले कई दशक से मणिपुर में जातीय टकराव का माहौल बना रहा है। बहुसंख्यक मईतै समुदाय का राजनीति पर प्रभाव ज्यादा है और उसके जनप्रतिनिधियों की तादाद भी अधिक है। अल्पसंख्यक नगा और कुकी-चीन समुदाय भी राज्य का मूल समुदाय होने के नाते बराबरी के बर्ताव का तर्क पेश करते हैं और इसी बात को लेकर तनातनी का माहौल बना रहता है।
मणिपुर की राजनीति को इंफल घाटी में रहने वाले भले नियंत्रित करते हैं, लेकिन भौगोलिक रूप से देखा जाए तो देश के शेष हिस्सों से मणिपुर को जोड़ने वाले दो राष्ट्रीय राजमार्गों पर इंफल घाटी के लोगों का कोई नियंत्रण नहीं है, चूंकि ये राज्य के पर्वतीय हिस्सों से होकर गुजरते हैं, जहां नगा और कुकी-चीन समूहों का वर्चस्व बना हुआ है। राज्य की साठ फीसद आबादी मईतै लोगों की है, जो इंफल घाटी में रहते हैं।
असल में मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने मणिपुर के कुकी-नगा बहुल इलाके सदर हिल्स और सेनापति में नए जिले बनाने की घोषणा कर राज्य की यूनाइटेड नगा कॉउंसिल (यूएनसी) के पैरों के नीचे की जमीन खिसका दी। इन इलाकों पर नगा उग्रवादी संगठन नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल आॅफ नगालैंड (आईएम) का गहरा प्रभाव है। यही कारण है कि पिछले एक नवंबर से यूएनसी ने राष्ट्रीय राजमार्गों को अवरुद्ध कर रखा है।
नगा संगठनों के विरोध के बावजूद मुख्यमंत्री इबोबी सिंह ने बीते आठ दिसंबर की रात सदर हिल्स समेत सात नए जिले बनाने की औपचारिक घोषणा कर दी। सदर हिल्स का नाम कांगपोकपकी जिला रखा गया। अन्य जिलों के नाम हैं कामजोंग (उखरुल), टेंगनौपाल (चंदेल), नूनी (तामेंगलांग), फेरजौल (चुराचांदपुर), काकेचिंग (थौबल) और जिरीबाम (इंफल ईस्ट)। नए जिलों के नामों साथ ही इनके उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों के नामों की भी घोषणा भी कर दी गई।
इस मास्टर स्ट्रोक के जरिए मुख्यमंत्री ने उखरुल, चंदेल और तामेंगलांग के नगा लोगों और काकेचिंग तथा जिरीबाम के मैताई लोगों की आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति करने का संकेत दिया। मैताई बहुल इलाकों के लोगों ने नए जिले बनाने का स्वागत किया, लेकिन यूएनसी ने तीव्र विरोध जताया। भले अपने विरोध को उचित ठहराने के लिए उसके पास ठोस तर्क नहीं है। उसके अध्यक्ष जी. कामी और प्रचार सचिव एसके स्टीफन को हिंसा फैलाने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार कर रखा है।
इससे पहले मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई और उसे निर्देश दिया कि वह नगालैंड-मणिपुर सीमा और असम-मणिपुर सीमा पर फंसे अत्यावश्यक सामग्री से लदे ट्रकों को सुरक्षित राज्य के अंदर लाने के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करे। इबोबी सिंह ने हालात को नियंत्रित करने के लिए सबसे पहले सेनापति जिले के उपायुक्त को राष्ट्रीय राजमार्ग 39 पर निषेधाज्ञा और कर्फ्यू लगाने का आदेश दिया और हर हाल में अवरोध खत्म करने के लिए कहा। इससे पहले मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिख कर बताया कि यूएनसी असल में नगा उग्रवादी संगठन एनएससीएन (आइएम) का ही सहयोगी संगठन है, और केंद्र सरकार के साथ नगा संगठन की वार्ता प्रक्रिया चल रही है। इस तरह केंद्र सरकार उसे अवरोध समाप्त करने के लिए तैयार कर सकती है। केंद्र की तरफ से इस पत्र का कोई जवाब नहीं दिया गया।
पहले भी छोटी-छोटी बातों का बहाना बना कर नगा उग्रवादी संगठन राष्ट्रीय राजमार्गों को अवरुद्ध करते रहे हैं। एक तरह से यह एक सालाना कार्यक्रम बन चुका है। जब यूएनसी ने नगालैंड-मणिपुर सीमा को अवरुद्ध किया तो शुरू में टकराव का रुख नहीं अपनाते हुए विकल्प के तौर पर असम-मणिपुर सीमा के रास्ते अत्यावश्यक सामग्री से भरे ट्रकों को राज्य में लाने का फैसला किया। इस बात की भनक लगते ही यूएनसी के सदस्यों ने राजमार्ग को खोद कर यातायात रोक दिया। तब सुरक्षा बल की मदद से किसी तरह कुछ ट्रकों को राज्य के अंदर लाया गया।
जब यूएनसी के अध्यक्ष कामी से अनुरोध किया गया कि आम लोगों की परेशानी को देखते हुए आर्थिक अवरोध को समाप्त कर दें तो उन्होंने अपने समर्थकों से मशविरा करने के बाद जवाब देने की बात कही। फिर इंफल घाटी के मैताई लोगों के प्रतिनिधि संगठन यूनाइटेड कमेटी मणिपुर ने यूएनसी को बहत्तर घंटे की मोहलत देते हुए जवाबी अवरोध शुरू करने की चेतावनी दी। अतीत में भी नगा समुदाय के लोग अपनी मांगों के लिए अपने इलाके से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों को अवरुद्ध करते रहे हैं, जिसके चलते इंफल घाटी में रोजमर्रा की जरूरत की चीजें नहीं पहुंचती रही हैं। माना जा रहा है कि नौ नए जिलों के गठन का फैसला इबोबी सिंह ने अगले साल की शुरुआत में होने वाले मणिपुर विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए किया है। चंदेल और तामेंगलांग जिलों को विभाजित कर नए जिले बनाने के फैसले का विरोध जता कर एनएससीएन उन इलाकों के नगा लोगों का समर्थन खो सकता है और अगर वह इस फैसले का समर्थन करता है तो इसका मतलब अपने घोषित शत्रु इबोबी सिंह का समर्थन करना होगा।