अभिषेक कुमार सिंह

इसे जला कर बनाई जाने वाली बिजली कई मायनों में दूसरे विकल्पों से बेहतर मानी जाती है। भारत में भी एथेनाल से ऊर्जा हासिल करने का चलन शुरू हो चुका है। कुछ राज्यों में प्रायोगिक तौर पर बसें और ट्रेनें तक एथेनाल से चलाई जा रही हैं। साफ बिजली यानी स्वच्छ ऊर्जा का एक प्रारूप हमें सूरज से मिलने वाली ऊर्जा की तरफ ले जाता है।

भारत में फिलहाल बिजली का बहुत बड़ा संकट नहीं है, मगर भविष्य की जरूरतों और स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने के संकल्पों के तहत हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी है। गौरतलब है कि इस मिशन के तहत भारत को ऊर्जा-स्वतंत्र बनाने, अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों को कार्बन मुक्त करने और वैकल्पिक ईंधन के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के एक वैश्विक केंद्र में बदलने की योजना है। उम्मीद है कि इस मिशन के तहत भारत 2030 तक पचास लाख टन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता का लक्ष्य हासिल कर लेगा।

इसमें संदेह नहीं कि विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ने की कोशिश करते भारत जैसे देशों के लिए ऊर्जा में स्वालंबन हासिल करना सबसे बड़ी जरूरत है। हमें कारखाने लगाने, उत्पादन बढ़ाना, लाखों-करोड़ों युवाओं के लिए रोजगार पैदा करना है। इसके लिए स्वच्छ ऊर्जा की दरकार है। आज सच्चाई यह है कि भारत ऊर्जा के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं है।

जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल-डीजल) के रूप में अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए ही हमें हर साल करीब बारह लाख करोड़ रुपए आयात में झोंकने पड़ते हैं। इसके बावजूद जनता को वाजिब कीमत पर पेट्रोल-डीजल उपलब्ध कराने में कठिनाई होती है। हाल के कुछ वर्षों में जिस सौर ऊर्जा की बातें जोरशोर से हुई हैं, उसका एक पहलू यह है कि सौर पैनल और संबंधित नई तकनीक के लिए हम विदेशों पर निर्भर हैं।

हालांकि तब भी जनता को राहत दिलाते हुए ऊर्जा स्वावलंबन हासिल किया जा सकता है, बशर्ते कुछ ठोस योजनाओं पर सतर्कता से अमल किया जाए। खासकर यह देखते हुए कि हाइड्रोजन स्वच्छ ईंधन है और एक बार दक्षता हासिल होने के बाद इससे अनंत काल तक असीमित ऊर्जा पाई जा सकती है। मगर इसमें कुछ समस्याएं भी हैं। जैसे एक प्रमुख अड़चन दबाव डाल कर इसके भंडारण की है, क्योंकि यह अत्यंत विस्फोटक होने के कारण दुर्घटना का कारण बन सकती है।

उम्मीद है कि राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन में इससे जुड़ी सभी समस्याओं का समाधान निकाल लिया जाएगा। मसलन, हाइड्रोजन ईंधन को सस्ता करना। कोयले से मिलने वाली बिजली सस्ती है और कोयले की उपलब्धतता का भी फिलहाल कोई संकट नहीं है। मगर ऊर्जा की बढ़ती मांग कोयले के भविष्य को धुंधला कर देती है। ऐसे में बेहतर होगा कि या तो परमाणु बिजली की तरफ बढ़ा जाए या फिर हाइड्रोजन र्इंधन समेत स्वच्छ ऊर्जा के अन्य विकल्प आजमाए जाएं।

हाइड्रोजन का विकल्प मिलने पर हमारे देश में जीवाश्म ईंधन, जैसे कच्चा तेल, कोयला आदि के आयात में एक लाख करोड़ रुपए तक की कमी आ सकती है। परोक्ष लाभ यह है कि इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में पांच करोड़ टन की कमी आ सकती है। राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का एक अहम उद्देश्य पेट्रोल-डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता खत्म करते हुए देश को स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन का केंद्र बनाना है।

यह सही है कि इस समय हाइड्रोजन हमारी धरती पर उपलब्ध सबसे स्वच्छ ईंधन है। मगर दिक्कत यह है कि पृथ्वी पर मौजूद समस्त हाइड्रोजन किसी दूसरे तत्त्व (जैसे कि पानी और अन्य हाइड्रोकार्बन) के साथ गुंथा हुआ है। ऐसे में इसे विलगाने की प्रक्रिया में प्रदूषण होता है। इसलिए उसे स्वच्छ या ग्रीन हाइड्रोजन नहीं कह सकते। ऐसी समस्याओं का इलाज है राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन।

उल्लेखनीय है कि इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया से ईंधन तैयार होने की प्रक्रिया पूरी तरह कार्बन उत्सर्जन से मुक्त होती है। हाइड्रोजन र्इंधन तैयार करने के फिलहाल दो तरीके हैं। पहला तरीका इलेक्ट्रोलिसिस यानी पानी में से बिजली को गुजार कर हाइड्रोजन ईंधन प्राप्त करने वाला है। दूसरा तरीका प्राकृतिक गैस से हाइड्रोजन और कार्बन को तोड़ कर ईंधन तैयार करने का है। इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया से तैयार होने वाले हाइड्रोजन ईंधन में स्वच्छ ऊर्जा इस्तेमाल होती है।

सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा वाले बिजलीघरों से मिली बिजली के इस्तेमाल से पानी को इलेक्ट्रोलाइज कर हाइड्रोजन अलग की जाती है। ऐसे ईंधन को ‘ग्रीन’ हाइड्रोजन या जीएच-2 या फिर ग्रीन फ्यूल कहते हैं। इस तरह की ऊर्जा के बारे में दावा है कि इसका सबसे बड़ा लाभ तेल शोधन, खाद निर्माण, सीमेंट, स्टील और भारी उद्योगों को होगा, क्योंकि वहां हाइड्रोजन ईंधन को सीएनजी और पीएनजी के साथ मिलाकर प्रयोग करने पर ये भारी उद्योग कार्बन मुक्त हो सकेंगे।

अभी दुनिया में ग्रीन हाइड्रोजन की कीमतें कई कारकों पर निर्भर करती हैं। मसलन, इसका स्रोत क्या है, बाजार की स्थितियां क्या हैं और लेनदेन वाली मुद्रा की दरें क्या हैं। फिलहाल दुनिया में ग्रीन हाइड्रोजन तैयार करने की औसत लागत तीन सौ रुपए प्रति किलोग्राम आती है। हालांकि प्राकृतिक गैस से बनाने पर यह औसत 130 रुपए प्रति किलोग्राम तक था, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यह औसत भी ढाई सौ रुपए तक जा पहुंचा है। ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन इस स्वच्छ ईंधन की कीमतें कम करने में काफी मदद कर सकता है। भारत ही नहीं, दुनिया में इस वक्त पच्चीस देश ग्रीन हाइड्रोजन पैदा करने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं।

जहां तक स्वच्छ ईंधन की बात है, ग्रीन हाइड्रोजन के अलावा गन्ने के शीरे से निकाला गया एथेनाल भी एक स्वच्छ ईंधन है। इसे जला कर बनाई जाने वाली बिजली कई मायनों में दूसरे विकल्पों से बेहतर मानी जाती है। भारत में भी एथेनाल से ऊर्जा हासिल करने का चलन शुरू हो चुका है। कुछ राज्यों में प्रायोगिक तौर पर बसें और ट्रेनें तक एथेनाल से चलाई जा रही हैं।

साफ बिजली यानी स्वच्छ ऊर्जा का एक प्रारूप हमें सूरज से मिलने वाली ऊर्जा की तरफ ले जाता है। इस सिलसिले में भारत का महत्त्व उसके नेतृत्व में बनाए गए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन से स्पष्ट होता है। 2015 में पेरिस के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में उल्लेखनीय पहल करते हुए भारत ने सौ देशों का एक सौर गठबंधन (सोलर अलायंस) बनाने की घोषणा की थी। इस गठबंधन के तहत भारत का लक्ष्य 2030 तक साढ़े चार सौ गीगावाट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य हासिल करना है। इसमें सौ गीगावाट का लक्ष्य हासिल हो चुका है।

इसका मतलब है कि देश को शून्य कार्बन उत्सर्जक देश बनाने की राह ज्यादा मुश्किल नहीं है। सौर तकनीकों से 2050 तक इतनी बिजली मिल सकेगी, जिससे लगभग छह अरब टन कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन हर साल रोका जा सकेगा। उत्सर्जन की यह मात्रा मौजूदा समय में पूरे विश्व के परिवहन क्षेत्र द्वारा छोड़ी जा रही कार्बन डाईआक्साइड के बराबर है।

प्रदूषण से बचने के लिए परमाणु ऊर्जा एक अच्छा विकल्प है। पहले के मुकाबले अब परमाणु बिजली संयंत्रों को काफी सुरक्षित भी माना जाता है। मगर भारत फिलहाल दो से तीन फीसद परमाणु ऊर्जा ही अपने परमाणु बिजलीघरों में पैदा कर पाता है। फिर, परमाणु बिजलीघर लगाना काफी महंगा है और इसके मुख्य ईंधन यूरेनियम के आयात के लिए आस्ट्रेलिया आदि विकसित देशों पर निर्भरता एक अलग संकट है।

पर्यावरणीय कारणों से इन संयंत्रों को तीखा विरोध झेलना पड़ता है। इसके अलावा पेन्सिलवेनिया (अमेरिका) में थ्री माइल द्वीप, चेरनोबिल (रूस) और फुकुशिमा रिएक्टर से रिसाव की घटनाएं, पुराने और जर्जर होते परमाणु संयंत्र, रेडियोएक्टिव कचरे के निष्पादन और यूरेनियम की कमी जैसी समस्याएं परमाणु ऊर्जा के रास्ते में बाधा डाल रही हैं। सौर और पवन ऊर्जा स्वच्छ ईंधन के अच्छे विकल्प हैं, लेकिन सौर पैनलों का रखरखाव काफी झंझट भरा है और पवन ऊर्जा अनिश्चित, व्यापक रूप से फैली हुई तथा मुश्किल से पकड़ में आने वाली ऊर्जा है।