हमारा ब्रह्मांड कब और कैसे बना, जैसे प्रश्न जहां साधारण व्यक्ति के लिए विस्मय और कौतूहल का विषय रहे हैं, वहीं यह वैज्ञानिकों के लिए भी खोज और अनुसंधान का विषय बने हुए हैं। लेकिन अब वैज्ञानिक इस बात पर सहमत होने लगे हैं कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति लगभग चौदह अरब वर्ष पहले एक महाविस्फोट से हुई थी। इस महाविस्फोट के बाद से ही इसका लगातार विस्तार हो रहा है।
इसमें मौजूद आकाशगंगाओं की एक दूसरे से दूरी बढ़ती जा रही है। इसके पहले ब्रह्मांड के विस्तार की गति के आधार पर इसकी उत्पत्ति एक हजार करोड़ वर्ष पहले मानी गई थी। यहां ब्रह्मांड की आयु की गणना यह मान कर की गई थी कि इसके विस्तार की गति अपरिवर्तित नहीं है, जबकि यह बात अभी तक सुनिश्चित नहीं है।
अधिकांश अंतरिक्ष वैज्ञानिक यह मानते हैं कि एक हजार करोड़ वर्ष पूर्व एक अत्यंत नाटकीय घटना के फलस्वरूप यह ब्रह्मांड अस्तित्व में आया, जब एक आदिम लघु अग्निपिंड से उसके संपूर्ण पदार्थ की मात्रा विस्फोटित होकर प्रसारित हो गई। ब्रह्मांड का वर्तमान विस्तार उसी महाविस्फोट से शेष रहे दबाव का परिणाम है। बिगबैंग माडल के अनुसार बिगबैंग का क्षण ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति और आकाश व काल (स्पेस एंड टाइम) का भी प्रारंभ बिंदु है।
जहां तक प्रसार करते ब्रह्मांड के भविष्य का प्रश्न है, तो आइंसटीन के समीकरण कोई एक समाधान प्रस्तुत नहीं करते हैं। वे भिन्न-भिन्न ब्रह्मांडीय मॉडलों के भिन्न-भिन्न समाधान प्रस्तुत करते हैं। कुछ मॉडलों के अनुसार यह प्रसार निरंतर होता रहेगा, जबकि कुछ के अनुसार यह धीमा होता जा रहा है जो अंतत: संकुचन में परिवर्तित हो जाएगा। यह दूसरा मॉडल एक दोलनकारी ब्रह्मांड का वर्णन करता है, जिसमें करोड़ो वर्षों के प्रसार के उपरांत संकुचन की प्रक्रिया तब तक निरंतर रहेगी जब तक कि संपूर्ण पदार्थ की मात्रा एक छोटी-सी गेंद में संघनित नहीं हो जाती। तब यह पुन: प्रसारित होगी और यह क्रम अनवरत रहेगा।
ब्रह्मांड के प्रसार और संकुचन की धारणा, जिसमें अति विशाल स्तर पर काल और आकाश सम्मिलित हैं, केवल आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान में ही उपजी हो, ऐसा नहीं है, बल्कि यह प्राचीन भारतीय पौराणिक धारणा भी है। ब्रह्मांड को एक जीवंत, लयबद्ध गतिशील अंतरिक्ष के रूप में अनुभव करते हुए ब्रह्मांड की उत्पत्ति के ऐसे सिद्धांत विकसित किए गए जो हमारे आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांतों के काफी करीब हैं।
ब्रह्मांड उत्पत्ति का एक ऐसा ही सिद्धांत हिंदू मिथक ह्यलीलाह्ण पर आधारित है। ह्यलीलाह्ण अर्थात् दिव्य क्रीड़ा जिसमें ब्रह्मा स्वयं को विश्व में रूपांतरित करते हैं। एक से अनेक और अनेक से एक में रूपांतरण की लीला की लयात्मक क्रीड़ा अंतहीन चक्रों में निरंतर चलती रहती है। भगवत गीता में भगवान कृष्ण इस लयात्मक क्रीड़ा का वर्णन इन शब्दों में करते हैं- ‘कल्पों के अंत में सारा भूत जगत मेरी प्रकृति में लीन हो जाता है और कल्पों के आदि में मैं पुन: उनकी रचना करता हूं।
मुझ अधिष्ठाता की सत्ता-स्फूर्ति, प्रकृति चराचर सहित सर्वजगत को रचती है और इस हेतु से जगत का विविध प्रकार से परिवर्तन चक्र घूम रहा है।’ हिंदू ऋषियों को संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति को दिव्य लीला के रूप में स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं था। उन्होंने ब्रह्मांड को आवर्ती रूप से प्रसारित कर संकुचित होते हुए चित्रित किया और इस सृष्टि के उद्भव और अंत के मध्य की अकल्पनीय कालावधि को ‘कल्प’ संज्ञा प्रदान की।
इस प्राचीन मिथक ‘कल्प’ का पैमाना वास्तव में अचंभित करने वाला है। एक कल्प की कालावधि आठ सौ चौंसठ करोड़ वर्ष है, जो आधुनिक भौतिकी द्वारा पहले आंकी गई ब्रह्मांड की एक हजार करोड़ वर्ष की आयु के लगभग बराबर है। कालावधि की इस अवधारणा पर पुन: पहुंचने में मानव मास्तिष्क को हजारों वर्षों का समय लगा।
बहरहाल ब्रह्मांड कितना पुराना है, इस बात का पता हमारे खगोलविद सबसे पुरानी प्रकाशीय और अन्य तरंगों से लगाते हैं। खगोलविद लंबे समय से ब्रह्मांड की उम्र पर एकमत नहीं हो पा रहे थे। लेकिन अब खगोलविदों ने इन तरंगों का फिर से अध्ययन किया है और ताजा शोध ने ब्रह्मांड की उम्र को लेकर इस विवाद को नई दिशा दी है, जिससे ब्रह्मांड की उम्र 13.77 अरब साल होने पर सहमति हो सकती है।
जर्नल आॅफ कॉस्मोलॉजी एंड एस्ट्रोपार्टिकल फिजिक्स में प्रकाशित एक शोध के वैज्ञानिक दल ने अपने अवलोकन के लिए चिली के आटाकाम पर्वतों के रेगिस्तान में नेशनल साइंस फाउंडेशन के आटाकामा कॉस्मोलॉजी टेलीस्कोप का उपयोग किया था। उन्होंने गणना की नई सटीकता को छूते हुए पाया कि ब्रह्मांड 13.77 अरब साल पुराना है। यह गणना ब्रह्मांड के मानक मॉडल से मेल खाती है।
इसी प्रकाश के मापन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के प्लैंक सैटेलाइट ने भी दिए थे। साल 2019 में आकाशगंगा की गतिविधियों के आधार ब्रह्मांड की उम्र का अनुमान लगाया गया था। तब शोधकतार्ओं ने बताया था कि ब्रह्मांड की उम्र का जितना अनुमान प्लैंक ने लगाया था, वह उससे करोड़ों साल कम हो सकती है। फिलहाल ज्यादातर खगोलविदों के अनुसार ब्रह्मांड की उम्र 13.77 अरब साल की बताई जा रही है। ब्रह्मांड की उम्र यह भी बताती है कि ब्रह्मांड कितनी तेजी से बढ़ रहा है। इसकी गणना हबल स्थिरांक से की जाती है। बहरहाल, भविष्य में बेहतर मापन हमें ब्रह्मांड की ज्यादा साफ तस्वीर दिखा सकेंगे।
खगोलविदों को लंबे समय से यह पहेली परेशान किए हुए है कि जब खुद ब्रह्मांड की उम्र 13.9 अरब साल है तो एक तारा उससे दो अरब साल से ज्यादा कैसे बड़ा हो सकता है। खगोलविद सौ साल से इस तारे का अवलोकन कर रहे थे। यह तारा हमारी पृथ्वी से एक सौ नब्बे प्रकाशवर्ष दूर है। इसका नाम एचडी 140283 या मेथुसेलाह है।
पर जैसे जैसे हमारे वैज्ञानिकों को नए अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए उन्नत उपकरण मिलते जा रहे हैं, वैसे-वैसे कई रहस्य सुलझ रहे हैं और कई रहस्यों को सुलझाने की कोशिश की जा रही है। पर इस तारे की उम्र से खगोलविदों को हैरानी हुई है, क्योंकि खुद ब्रह्मांड की उम्र वैज्ञानिकों ने कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड के आधार पर 13.8 अरब साल निकाली है।
इस गणना को देखते हुए मेथुसेलाह की उम्र ने एक समस्या खड़ी कर दी, क्योंकि इससे तारा ब्रह्मांड से भी पुराना साबित हो रहा था। यह बहुत उलझाने वाली बात थी, क्योंकि यह नामुमकिन है कि एक तारे की उम्र खुद ब्रह्मांड से दो अरब साल से ज्यादा हो। बर्मिंघम की एस्टन यूनिवर्सिटी के भौतिकविद रॉबर्ट मैथ्यूज का कहना है कि इस तरह के सभी आकलनों में भारी त्रुटियों की संभावना होती है। इस अंतर को देखते हुए इस विवाद का समाधान अंतर की सीमाओं में ही हो सकता है। इसके बाद भी मैथ्यूज सहित कई वैज्ञानिकों का मानना है कि उम्र चाहे ब्रह्मांड की हो या तारों की यह आज भी एक अनसुलझा मामला है।
भौतिकी में पिछले साल का नोबेल पुरस्कार ब्रह्मांड की संरचना और इतिहास की नई समझ और हमारे सौर मंडल के बाहर सौर जैसे तारे की परिक्रमा करने वाले ग्रह की खोज करने वाले तीन वैज्ञानिकों- जेम्स पीबल्स, मिशल मेयर और डिडिर क्वेलोज को संयुक्त रूप से मिला था। जेम्स पीबल्स की भौतिक ब्रह्मांड विज्ञान में अंतर्दृष्टि ने अनुसंधान के पूरे क्षेत्र को समृद्ध किया है और पिछले पचास वर्षो में ब्रह्मांड विज्ञान के परिवर्तन की नींव रखी है। उनकी खोज के परिणामों ने हमें एक ऐसा ब्रह्मांड दिखाया, जिसमें इसकी सामग्री का केवल पांच प्रतिशत ही अभी तक ज्ञात है। वह हमारे सितारों, ग्रहों, पेड़ों, मनुष्यों की संरचना पर प्रकाश डालता है। बाकी पनचानवे फीसद अज्ञात पदार्थ और ऊर्जा यानी डार्क मैटर और डार्क एनर्जी है। यह एक रहस्य है और आधुनिक भौतिकी के लिए एक चुनौती भी।