स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि ब्रिटेन के हजारों लोग अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने मकानों को बैंकों के पास गिरवी रख रहे हैं और उनकी मृत्यु के बाद कर्जदाता ही मकान का मालिक बन जाएगा।

ब्र्रिटेन के शासक चार्ल्स तृतीय ने पिछले दिनों ब्रिटेन के सत्तावन वें प्रधानमंत्री के रूप में ऋषि सुनक को पद की शपथ दिलाई। सुनक कंजरवेटिव पार्टी के एक ही संसदीय कालखंड के तीसरे प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें न केवल अपने आपको सिद्ध करना है, बल्कि आगामी संसदीय चुनाव में कंजरवेटिव पार्टी को फिर से जीत दिलाने का दायित्व भी निभाना है।

पिछले चुनाव के बाद बोरिस जानसन प्रधानमंत्री चुने गए थे, लेकिन कोरोना काल में उनकी दावतों ने उन्हें ब्रिटिश समाज में खलनायक बना दिया था। ब्रिटिश अर्थव्यवस्था भी खस्ताहाल हो चुकी थी और इन सब कारणों की वजह से बोरिस जानसन को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा था। उनके बाद लिज ट्रस देश की प्रधानमंत्री चुनी गर्इं। जब उनका चयन हो रहा था, तब भी ऋषि सुनक प्रधानमंत्री पद की दौड़ में बराबरी से बने हुए थे। हालांकि वे उस समय पार्टी का बहुमत हासिल नहीं कर पाए थे।

लिज ट्रस के चयन के समय भी ब्रिटेन के समक्ष जो आर्थिक चुनौतियां थीं, वे गंभीर थीं। दुनिया के मीडिया में ये आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि ब्रिटेन के सम्मुख जो आर्थिक संकट है, उससे मुक्ति पाना कठिन होगा। ऐसे में ट्रस ज्यादा समय तक नहीं टिक सकतीं। वैश्विक मीडिया का आकलन सही निकला और मात्र सैंतालीस दिन में ही उन्हें पद छोड़ देना पड़ा। ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने का यह चुनौतीपूर्ण दायित्व अब ऋषि सुनक के कंधों पर है।

सुनक का परिवार पुराने भारत के गुजरांवाला का है। उनके दादा गुजरांवाला से अफ्रीका चले गए थे और बाद में ऋषि सुनक के पिता ब्रिटेन चले गए और वहीं बस गए। सुनक का जन्म ब्रिटेन में ही हुआ। सुनक के प्रधानमंत्री बनने से भारत के लोगों में खुशी होना स्वाभाविक भी है क्योंकि वे भारतीय मूल के हैं। भले अब वे ब्रिटिश के नागरिक हों, पर आम भारतीय जनमानस उन्हें भारत का ही मान रहा है। कुछ लोग इसलिए भी उत्साहित हैं कि वे भारतीय मूल के तो हैं ही, साथ ही हिंदू भी हैं, हिंदू रीति-रिवाजों को मानते हैं। भारतीय मीडिया के एक हिस्से ने सनातनी हिंदू लिख कर कुछ ऐसा उत्साह प्रकट कर दिया जैसे वे ब्रिटेन के हिंदू शासक बन गए हों।

हालांकि ऐसे लोग भूल जाते हैं कि ब्रिटेन में भारतीयों की स्वीकार्यता के पीछे कारण धर्म नहीं, बल्कि सबसे महत्त्वपूर्ण और एकमात्र कारण महात्मा गांधी हैं, जिन्होंने अपने अहिंसा और प्रेम से, अपने विचार और चिंतन से आम ब्रिटिशों को अपना मित्र बनाया था। ये लोग भूल जाते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जो आम चुनाव हुए थे, उनमें चर्चिल जिन्होंने महात्मा गांधी को नंगा फकीर कह कर अपमानित किया था।

चर्चिल भारतीयों को नेतृत्व लायक नहीं मानते थे। उनकी पार्टी चुनाव में हार गई थी और जिस पार्टी ने उपनिवेशों को आजाद करने की घोषणा की थी, वह चुन कर आई थी। इन चुनाव परिणामों का यही एक संदेश था कि आम नागरिक के मन में भारतीयों के लिए द्वेष नहीं रहा है। इसका बड़ा कारण गांधी की स्वीकार्यता थी जिन्होंने ब्रिटिश नागरिकों के मध्य विभिन्न मुद्दों को उठाया और उपनिवेशवाद की मानसिकता को बहुत हद तक बदला था।

ब्रिटेन में गांधी जी की स्वीकार्यता को इससे भी समझा जाना चाहिए कि कई वर्ष पूर्व ब्रिटेन की संसद के सामने महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाई गई और वह भी ठीक चर्चिल की प्रतिमा के पास में। इसका संदेश यही है कि ब्रिटिश समाज चर्चिल को द्वितीय विश्वयुद्ध का विजेता मानता है, पर साथ ही महात्मा गांधी को उनके अहिंसा, सादगी और मानवीय मूल्यों के कारण अपना आदर्श भी मानता है।

दुनिया के कई देशों में भारतीय मूल के लोग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे पदों पर पहुंचे हैं। फीजी में महेंद्र सिंह भारतीय मूल के प्रधानमंत्री चुने गए थे जो मूलत: हरियाणा के रहने वाले थे। लेकिन उन्हें इसलिए हटना पड़ा क्योंकि वे फीजी के मूल नागरिकों के साथ समरस नहीं हो सके थे। मारीशस जैसे देशों में तो अधिकांश मतदाता अब भारतीय मूल के ही हैं।

सिंगापुर की राष्ट्रपति हलीमा याकूब भी भारतीय मूल की हैं। उनके पिता भारतीय थे। पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो के पिता का जन्म गोवा में हुआ था। मारीशस के वर्तमान राष्ट्रपति भारतीय मूल के हैं। वहां के प्रधानमंत्री भी भारत से गए हुए हैं। सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी के दादा बिहार से वहां गए थे। गुयाना के उपराष्ट्रपति भरत जगदेव की जड़ें उत्तर प्रदेश में हैं। सेशल्स के राष्ट्रपति राम कलवान के पुरखे बिहार के थे।

अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भी भारतीय मूल की हैं। इन सबसे यही निष्कर्ष निकलता है कि जो भारतीय विदेशों में जाकर बसे हैं, वे उन देशों में वहां के मूल निवासियों के साथ इतने घुल मिल गए कि वहां के मूल निवासियों ने उन्हें स्वीकार कर लिया। भारतीय मीडिया या जो लोग ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने को इसलिए सुखद मान रहे हैं क्योंकि वे सनातनी हिंदू हैं, तो इसे उचित कहना अनुचित ही होगा। अगर यह मजहबी धारणा ब्रिटेन में फैलेगी तो क्या इन लोगों की सफलता के रास्ते में कांटे खड़े नहीं होंगे? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमने ब्रिटेन को जीता नहीं है, बल्कि ब्रिटिश नागरिकों ने जाति, जन्म या धर्म को देखे बगैर योग्यता को कसौटी मान कर ऋषि सुनक को बनाया है।

एक अखबार ने तो यहां तक छाप दिया कि ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल ने कहा था कि भारतीय नेतृत्व नहीं कर सकता। अगर भारत को स्वतंत्र भी कर दिया जाए तो भी वे शासन नहीं कर पाएंगे। लेकिन हकीकत यह है कि चर्चिल ने यह बात भारतीयों के लिए कही थी, न कि ब्रिटेन के लोगों के लिए। नेता तो जनता चुनती है। ऋषि सुनक की पार्टी को ब्रिटिश जनता ने चुना है।

सवाल तो इस बात का है कि क्या हम भारत में योग्यता की ऐसी कोई कसौटी मानते हैं? हमारे यहां तो टिकट देने से लेकर वोट देने तक जाति, धर्म, पैसा आदि कसौटियां होती हैं। पर ब्रिटेन ने सुनक को प्रधानमंत्री चुन कर यह साबित कर दिया कि ब्रिटिश समाज ऐसी बीमारियों से मुक्त है और इसलिए वे योग्यता के आधार पर चयन करते हैं। भारतीय समाज को ब्रिटिश समाज से यह सीखना चाहिए कि वह जन्मस्थान, धर्म, जाति आदि देखना छोड़े और योग्यता को कसौटी बनाए। ऋषि सुनक ब्रिटिश नागरिक हैं और ब्रिटेन का भाग्य विधाता भारतीय नहीं बल्कि ब्रिटिश नागरिक है।

सुनक के समक्ष आज कई बड़ी चुनौतियां हैं। महंगाई व घटती आय ने ब्रिटेन में आम नागरिकों को संकट में डाल दिया है। स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि ब्रिटेन के हजारों लोग अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने मकानों को बैंकों के पास गिरवी रख रहे हैं और उनकी मृत्यु के बाद कर्जदाता ही मकान का मालिक बन जाएगा। सुनक के सामने पार्टी की गुटबाजियों को खत्म करने, अप्रवासियों की समस्याओं, रूस-यूक्रेन युद्ध के असर और ऊर्जा संकट जैसे गंभीर विषय भी हैं, जिन्हें अभी हल करना है। भारत के साथ मुक्त व्यापार का भी मुद्दा लंबित है।

ब्रिटेन ने सदियों तक दुनिया के बड़े भू-भाग पर शासन किया है। वही उसकी संपन्नता का राज है। दूसरी तरफ इस संपन्नता के दौर में जो विलासता की जीवनशैली ब्रिटेन ने अपनाई और साम्राज्यवाद के जमाने की विलासी मानसिकता को नहीं छोड़ा, यही उसके वर्तमान संकट का कारण है। इन संकटों से उबरने के लिए ब्रिटेन को सुनक का सहारा है जो भारतीय मूल के भी हैं और दुनिया के आदर्श महात्मा गांधी भी भारतीय मूल के हैं।