शायद अब देश में सर्वाधिक उपेक्षा और अपमान के पात्र महात्मा गांधी बन रहे हैं। ऐसा नहीं कि गांधी के प्रति श्रद्धा रखने वालों की संख्या कम है, पर उनके अनुयायी और सर्मथकों की प्रतिक्रिया एकदम शांत या आपसी चर्चा और मन के अंदर घुटते रहने की होती है। इसलिए उसकी अभिव्यक्ति आम जन तक नहीं पहुंचती। अभी कुछ दिन पहले मीडिया में अमेजन कंपनी, जो आनलाइन बिक्री करती, ने चप्पलों पर महात्मा गांधी का चित्र छाप दिया। ऐसा नहीं कि कनाडा और अमेरिका में लोेग गांधी को नहीं जानते या उनके मानने वालों की संख्या कम है। अगर वे नहीं जानते होते, तो उनके चित्र को चप्पल पर क्यों छापते?
अमेजन के अधिकारियों में भारतीय हिस्से (इंडिया चैप्टर) के अधिकारी भारतीय मूल के भी हैं और वे गांधी से बखूबी वाकिफ हैं। हो सकता है कि उनके वैचारिक रिश्ते ऐसी जमातों के साथ हो, जो भिन्न-भिन्न कारणों से गांधी के प्रति घृणा और विषवमन करते हैं। देश में कुछ ऐसी संस्थाएं हैं, जो महात्मा गांधी को उनके विकास में बड़ी बाधा मानती हैं, और इसीलिए गांधी के विरुद्ध झूठा अपमान या निंदा अभियान का कोई अवसर नहीं छोड़तीं। भारत-पाक विभाजन के समय जिन लोगों को कष्ट उठाना पड़ा, जिन्हें संपत्ति या शारीरिक आघात सहने पड़े, वे महात्मा गांधी को बटंवारे का गुनहगार मानते हैं और कुछ संस्थाओं के लोग, जो भारत-पाक विभाजन से भीतर से खुश हैं (क्योंकि पाकिस्तान बनने से करीब अठारह करोड़ मुसलिम आबादी पाकिस्तान में चली गई) और इन संस्थाओं और लोगों के स्वभावगत विरोधियों की संख्या कम होे गई, जिससे उन्हें अपने धर्म के नाम की सत्ता पाने का मार्ग सरल और प्रशस्त हुआ, फिर भी बंटवारे के लिए गांधी को दोषी ठहराते हैं। हांलाकि बंटवारे के मात्र साढ़े चार माह के भीतर गांधीजी की हत्या कर दी गई।

हो सकता है कि अमेजन के भारतीय संचालकों के इनसे कोई वैचारिक या संपर्क इसके पीछे कारण हो, पर यह तो विवेचना का विषय है। पर महात्मा गांधी के चित्र को चप्पल पर छापना यह नस्लीय भेदभाव का अपराध है और भारत का अपमान भी है। क्या ये कंपनियां किसी जाति या धार्मिक नेता के चित्र को इस ढंग से छापने का साहस कर सकते हैं? अगर वे किसी ऐसे व्यक्ति का चित्र छापते, तो अभी तक देश में दंगा-फसाद शुरू हो जाते, पर गांधी तो सबके हैं और गांधी किसी के भी नही हैं। इराक में सद्दाम हुसैन के कार्यकाल में एक होटल के बाहर प्रवेश द्वार पर बुश का चित्र बनाया था, जिसका एक परिणाम अमेरिका द्वारा सद्दाम और इराक को मिटाने को छेड़ा गया युद्ध हुआ। अमेजन कंपनी की घटना के बाद यद्यपि भारत सरकार ने कंपनी के समक्ष विरोध दर्ज कराया है, पर यह अपर्याप्त है। भारत सरकार को अमेजन कंपनी के संचालकों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमे दर्ज कराना चाहिए, और कंपनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति भी रद्द करनी चाहिए।

अभी कुछ दिन पहले खादी ग्रामोद्योेग बोर्ड ने जो कैलेंडर और डायरी प्रकाशित की, उसमें महात्मा गांधी का चित्र नहीं था। प्रधानमंत्री का चित्र छापा गया, जिसमें वे चरखा चलाते दिखाई दे रहे थे। इस घटना पर देश में प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक थी। पिछले लगभग अस्सी वर्षों से देश और दुनिया में महात्मा गांधी को आजादी का पर्याय माना जाता रहा है। जब मीडिया और सोशल मीडिया में भी इनकी अलोचना शुरू हुई तो कुछ लोगों ने इसका बचाव किया और कई प्रकार के कुतर्कांे को तर्क बना कर पेश करने का प्रयास किया। कुछ लोगों ने यह भी तर्क चलाया कि ‘खादी का अविष्कार महात्मा गांधी ने नहीं किया था।’ उनकी बात सही है, पर यह अधूरा सत्य है। खादी और चरखे से सूत का काता जाना गांधीजी के चरखे और खादी के प्रयोेग के पहले भी बुनकरों का व्यवसाय था, जो मशीनी उत्पादन के अभाव में या पूर्व में ग्रामीण अंचलों में प्रयोग होता था। पर जब महात्मा गांधी ने चरखा और खादी को स्वदेशी की दिशा दी और उसे आजादी के आंदोलन का नारा बना दिया और लाखों-करोड़ों लोगों को उसके प्रयोेग के लिए तैयार किया था, तब न केवल चरखा और खादी की पुन: स्थापना हुई, बल्कि ब्रिटेन के लंका शायर के कारखाने, जो भारतीय कपास से कपड़ा तैयार करते थे और भारत को बेचते थे, लगभग बंद हो गए।

जब महात्मा गांधी गोलमेज सम्मेलन में लंदन गए थे, तब वहां के कपड़ा मिलों के मजदूरों ने महात्मा गांधी का तीखा विरोध किया था। उनको लगता था कि खादी ने स्वदेशी के प्रयोग से उनका रोजगार और संपन्नता छीन ली है। इन तर्क देने वालों से कहना चाहंूगा कि योग की शुरुआत पंतजलि ने की थी, पर आजकल योग बाबा रामदेव के नाम का पर्याय बन गया है, जबकि बाबा रामदेव ने कोई योेग की खोज नहीं की, बल्कि योग का पुन:प्रयोग कर, उसे बेचा है।
महात्मा गांधी ने अपना सूत कात कर खादी पहनने का कार्यक्रम दिया था। वे स्वत: नियमित चरखा चलाते थे। उनके लिए खादी वस्त्र नहीं, बल्कि विचार था और इसलिए देश में गांधी और खादी परस्पर एकाकार हैं।  मैं जानता हंू कि भारत सरकार के इतने विशाल तंत्र में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड बहुत छोटे पायदान की संस्था हो सकती है। हो सकता है कि, प्रधानमंत्री को इसकी जानकारी ही न हो या इसकी अनुमति नहीं ली गई हो, पर प्रधानमंत्री को स्वत: इसे रोकना चाहिए। अगर वे ऐसा करेंगे, तो नौकरशाही और राजनीति के चाटुकार तंत्र को संदेश मिल जाएगा। प्रधानमंत्री की अप्रसन्नता के समाचार, समाचारपत्रों में छपे, पर और अच्छा होता अगर वे स्पष्ट निर्देश देते कि डायरी आदि का पुन: प्रकाशन किया जाए और गांधीजी के चित्र को यथावत छापा जाए। बतौर प्रधानमंत्री या खादी की बिक्री को प्रोत्साहनकर्ता के रूप में अगर उनका चित्र महात्मा गांधी के बाद अगले पेज पर लगता, तो कोई अपत्ति नहीं होती।

महात्मा गांधी के विरुद्ध एक सुनोयोजित अभियान देश और दुनिया में चल रहा है। कुछ अति वामपंथी भी अपनी हिंसा की विचारधारा को तर्कसंगत सिद्ध करने और महात्मा गांधी कोे लांछित करने तथा उन्हें गलत ढंग से प्रस्तुत करते हैं। पिछले दिनों भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी अफ्रीकी देश घाना गए थे और वहां विश्वविद्यालय प्रांगण में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित करके आए थे। पर उनके लौटने कुछ दिनों बाद ही महात्मा गांधी की प्रतिमा को विश्वविद्यालय प्रांगण से हटाने का अभियान चलाया गया। इसके लिए जो आधार पत्र जारी किया गया, उसमें गांधीजी को गलत ढंग से उद्धृत किया गया और गांधी की प्रतिमा को हटाने का एक आधार बनाया गया। इस आधारपत्र में, भारत में जन्मी अरुंधति राय के लेख का संदर्भ लिया गया है, जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी को रंगभेद का पक्षधर सिद्ध करने का प्रयास किया था। हैदराबाद के मुसलिम नेता ओवैसी ने भी गांधीजी को कमतर सिद्ध करने वाले बयान दिए हैं। मगर अतंत: गांधी सही सिद्ध होंगे और उनका व्यक्तित्व और विशाल बन कर उभरेगा। उनके सत्य की विजय होेगी। गांधी को नकारने और उन पर आरोप लगाने वाले अब बहुत-से लोग गांधी को स्वीकार करने लगे हैं, भले ही आंशिक रूप में। उम्मीद है कि, कालांतर में, इस तरह गांधी का विरोध करने वाली ताकतें भी निस्तेज हो जाएंगी। परु हमें राष्ट्रपिता के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करना होगा। हम केवल नियति और अति विश्वास के आधार पर निष्क्रिय समर्थक बन कर अपना दायित्व निर्वाह नहीं कर सकते।