दुनिया में जंगें अब सिर्फ देशों की सीमाओं पर नहीं लड़ी जातीं, आर्थिक मोर्चे पर भी होती हैं। अब जंग उच्च तकनीक के माध्यम से बाजार की ताकतों को अपने नियंत्रण में करने के लिए कौशल रूपी हथियार से लड़ी जा रही है। इस जंग में कई देश शामिल हैं, पर अमेरिका और चीन तकनीकी जंग के मोर्चे पर आमने-सामने खड़े हैं। यह जंग ‘सेमीकंडक्टर’ को लेकर है। यह एक चिप है, जो वास्तव में हमारे दैनिक जीवन की एक ताकत है।

सिलिकान का छोटा-सा टुकड़ा पांच सौ अरब डालर के उद्योग का केंद्र

सिलिकान का यह एक छोटा-सा टुकड़ा पांच सौ अरब डालर के उद्योग का केंद्र है, जिसकी कीमत 2030 तक दोगुनी होने का अनुमान है। इसकी आपूर्ति शृंखला को कौन नियंत्रित करेगा, इसको लेकर जंग जारी है। इन्हें बनाने वाली कंपनियों और देशों का एक पेचीदा संजाल है। इसकी आपूर्ति शृंखला का नियंत्रण ही वह कुंजी है, जो किसी को एक बेजोड़ महाशक्ति बना सकता है। चीन ये चिप बनाने की तकनीक चाहता है, पर अमेरिका, जो इस तकनीक का अधिकतर स्रोत अपने पास रखे हुए है, उसे पीछे धकेल रहा है।

एशिया प्रशांत क्षेत्र में हथियारों की दौड़ में शामिल हैं दोनों देश

दोनों देश साफतौर पर एशिया प्रशांत क्षेत्र में हथियारों की दौड़ में शामिल हैं। मगर वे कृत्रिम मेधा (एआइ) एल्गोरिदम की गुणवत्ता को बेहतर करने में भी लगे हैं, ताकि उन्हें सैन्य प्रणाली में लगाया जा सके। अभी अमेरिका जीतता हुआ दिख रहा है। मगर चीन के खिलाफ घोषित चिप युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था को नया रूप दे रहा है। ‘सेमीकंडक्टर’ बनाना जटिल काम है। इसमें विशेषज्ञता की जरूरत है। आइफोन की चिप अमेरिका में डिजाइन होती और ताइवान, जापान और दक्षिण कोरिया में बनती हैं और फिर चीन में उन्हें जोड़ा जाता है। भारत इस उद्योग में बहुत निवेश कर रहा है, जो आगे भविष्य में एक बड़े खिलाड़ी की भूमिका निभा सकता है।

‘सेमीकंडक्टर’ का आविष्कार अमेरिका में हुआ था, लेकिन समय के साथ-साथ पूर्वी एशिया इसके ‘उत्पादन केंद्र’ के तौर पर उभर कर सामने आया। इसके लिए वहां की सरकारों की प्रोत्साहन राशि और सबसिडी जिम्मेदार थी। अमेरिका ने भी इस क्षेत्र में व्यापार विकसित करने के लिए रणनीतिक साझेदारियां कीं, क्योंकि रूस के साथ शीत युद्ध के समय से उसके इस क्षेत्र से संबंध कमजोर थे। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे के बाद यह अब भी अमेरिका के लिए महत्त्वपूर्ण है। अब दौड़ इन चिपों को बड़े पैमाने पर अधिक छोटा और कुशल बनाने की है। अब चुनौती यह है कि एक छोटे से सिलिकान वेफर पर कितने ‘ट्रांजिस्टर’ फिट हो पाएंगे, जो अपने आप चालू और बंद हो सकें। खासकर समय के साथ ट्रांजिस्टर के घनत्व को दोगुना करना एक बहुत मुश्किल लक्ष्य है।

यह हमारे फोन को अधिक तेज बनाता, डिजिटल फोटो संग्रह को और बड़ा करता, ‘स्मार्ट होम डिवाइसेस’ को समय के साथ अधिक ‘स्मार्ट’ बनाता और सोशल मीडिया सामग्री का दायरा फैलाता है। 2022 के मध्य में सैमसंग ऐसी पहली कंपनी बनी, जो तीन नैनोमीटर की चिप बनाने में सफल हुई थी। इसी साल के आखिर में ताइवान ‘सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी’ (टीएसएमसी) भी यह करने में सफल रही। यह दुनिया की सबसे बड़ी चिप निर्माता कंपनी होने के साथ-साथ एप्पल की सबसे बड़ी आपूर्तिकर्ता है। यह चिप इंसानी बाल के किनारे से भी छोटी होती है, जो कि पचास से एक लाख नैनोमीटर बारीक होती है। यह छोटी ‘खास धार’ वाली चिप बेहद शक्तिशाली होती है।

इन चिपों का इस्तेमाल माइक्रोवेव, वाशिंग मशीन और रेफ्रिजरेटर में होता है। मगर भविष्य में इसकी मांग कम होने की संभावना है। दुनिया की अधिकतर चिप अभी ताइवान में बनती हैं। चीन भी राष्ट्रीय प्राथमिकता के आधार पर चिप का उत्पादन करता है और वह इन्हें तेजी से सुपरकंप्यूटर और कृत्रिम मेधा में इस्तेमाल कर रहा है। वह इस मामले में वैश्विक नेता बनने की दौड़ में कहीं भी नहीं है, लेकिन बीते दशक में उसने इस क्षेत्र में तेजी पकड़ी है।

जब भी कोई ताकतवर देश ‘एडवांस्ड कंप्यूटिंग’ तकनीक हासिल करता है, तो वह उसका प्रयोग ‘इंटेलिजेंस’ और सैन्य प्रणाली में करता है। ताइवान और दूसरे एशियाई देशों पर निर्भरता के कारण अमेरिका इसे बनाने में अब तेजी ला रहा है। बाइडन प्रशासन चिप बनाने की तकनीक में चीन के आगे रोड़ा अटकाने की कोशिश कर रहा है। उसने इसे नियंत्रित करने के लिए पिछले साल अक्तूबर में कुछ नियमों की घोषणा की थी, जिनमें चीन को चिप्स बेचने, चिप बनाने के उपकरण और अमेरिकी साफ्टवेयर बेचने पर रोक थी।

यह फैसला दुनिया की सभी कंपनियों पर लागू था। इसमें अमेरिकी नागरिकों और स्थायी निवासियों पर चीन की फैक्ट्रियों में चिप के उत्पादन या विकास करने पर प्रतिबंध लगाया था। इसलिए कि उसका नया चिप बनाने वाला उद्योग हार्डवेयर और नई तकनीक के आयात पर निर्भर है। नीदरलैंड की एएसएमएल कंपनी को एक चौथायी का घाटा उठाना पड़ा, क्योंकि उसकी यह कमाई चीन से होती थी। यह इकलौती कंपनी है, जिसके पास अत्याधुनिक लिथोग्राफिक मशीन है, जो बेहद बारीक चिप्स बनाती है।

चीन की सेमीकंडक्टर कंपनियों में अधिकतर अधिकारियों के पास अमेरिकी पासपोर्ट हैं। उन्होंने अमेरिका में प्रशिक्षण लिया है और उनके पास ग्रीन कार्ड है। इसी वजह से यह चीन के लिए बड़ी परेशानी है। अमेरिका भी बहुत सारी चिप बनाना चाहता है। ‘द चिप्स एंड साइंस एक्ट’ के तहत अमेरिका में सेमीकंडक्टर बनाने की कंपनियों को सबसिडी और अनुदान के रूप में तिरपन अरब डालर दिए जाते हैं। इस क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी इसका फायदा उठा रहे हैं। सुपरकंप्यूटर, सैन्य हार्डवेयर और प्रोसेसर वाले किसी भी उपकरण के लिए ‘मेमरी चिप’ जरूरी होती है। इसे बनाने वाली अमेरिका की सबसे बड़ी निर्माता कंपनी माइक्रोन ने घोषणा की है कि न्यूयार्क के बाहरी हिस्से में बनने वाले उसके कंप्यूटर चिप प्लांट में वह अगले बीस सालों में सौ अरब डालर का निवेश करेगी।

अमेरिका की पाबंदियां चीन को काफी नुकसान पहुंचा रही हैं। पाबंदियों के साए में ‘एप्पल’ ने चीन की सबसे सफल चिप कंपनी यांग्त्से मेमरी टेक्नोलाजी कार्प (YMTC) से मेमरी चिप खरीदने के सौदे को कथित तौर पर रद्द कर दिया। इसी वजह से वाशिंगटन के लिए एक चीनी तकनीकी कंपनी को पंगु बनाना आसान था। चीन के पास इसका जवाब देने के लिए वास्तव में कुछ भी नहीं है। पहले अमेरिका कुछ चीनी कंपनियों को निशाना बनाता था, लेकिन इस बार उसने पूरे देश तक इसे फैला दिया है।

चीन को समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करे। वस्तुओं या सेवाओं को रोक कर या निर्यात पर नियंत्रण करके वह खुद का नुकसान कर सकता है, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से सुस्त है। चीन ने विश्व व्यापार संगठन से शिकायत की है, लेकिन इसके समाधान में सालों लग सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन निवेश को दोगुना करेगा और अपने घरेलू चिप निर्माता उद्योग को समर्थन देगा।

भविष्य में अमेरिकी, ताइवानी, चीनी और दुनिया की बाकी कंपनियों के बीच काफी रस्साकशी चलने वाली है। यह सब अत्याधुनिक ‘लाजिक’ और ‘मेमरी चिप’ उत्पादन के क्षेत्र में देखने को मिलेगा। अमेरिका चीन को नई खोज के संजाल से दूर रखना चाहेगा। वहीं चीन उन जगहों पर अपनी आपूर्ति शृंखला बनाने की कोशिश करेगा, जो अमेरिकी दबाव से मुक्त हैं। इससे एक ऐसा वातावरण बन सकता है जिसमें एक ओर चीन होगा तो दूसरी ओर पूरी दुनिया होगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था का इस पर बहुत असर होगा। यह इस क्षेत्र के बड़े खिलाड़ियों को अपना पाला चुनने पर जोर डालेगा। कइयों को यह चीनी बाजार में जाने से रोकेगा।