जयंतीलाल भंडारी

बढ़ते व्यापार घाटे को कम करने के लिए एक ओर हमें आयात कम करना होगा और दूसरी ओर बराबर से निर्यात बढ़ाने पर जोर देना होगा। इसमें कोई दो मत नहीं कि हम रणनीतिक रूप से आगे बढ़ कर चीन से बढ़ते आयात और बढ़ते व्यापार घाटे के परिदृश्य को बहुत कुछ बदल सकते हैं।

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश का व्यापार घाटा बढ़ कर एक सौ बानवे अरब डालर हो गया। इधर, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल के वैश्विक दामों में वृद्धि से पेट्रोलियम आयात भी काफी महंगा हो गया। कच्चे तेल के आयात की लागत एक साल पहले की तुलना में करीब दोगुना हो गई है। गौरतलब है कि भारत अपनी कुल जरूरत का पिच्यासी फीसद कच्चा तेल आयात करता है।

ऐसे में अगर इसके दाम बढ़ेंगे, तो व्यापार घाटा बढ़ेगा ही। वित्त वर्ष 2021-22 में देश के कुल आयात मूल्य में पेट्रोलियम आयात का हिस्सा छब्बीस फीसद था। पेट्रोलियम उत्पादों के अलावा इलेक्ट्रानिक वस्तुओं और सोने का आयात एक-तिहाई तक बढ़ा और इस कारण भी व्यापार घाटा बढ़ा। भारत का उत्पाद आयात वित्त वर्ष 2021-22 में पूर्ववर्ती वित्त वर्ष 2020-21 के 394.44 अरब डालर की तुलना में 54.71 फीसद बढ़ा है। नतीजतन उत्पाद व्यापार घाटा पहली बार सौ अरब डालर का स्तर पार कर गया है।

यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि वित्त वर्ष 2021-22 में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के अलावा व्यापार घाटा बढ़ने का एक बड़ा कारण चीन से आयात बढ़ना भी रहा। इस समय विदेश व्यापार घाटा बढ़ना चिंताजनक इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि पिछले छह-सात वर्षों से व्यापार घाटा कम करने की कवायद चल रही है। आत्मनिर्भर भारत अभियान और स्थानीय स्तर पर उत्पादन व बिक्री के माध्यम से स्थानीय उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने के प्रयास चल रहे हैं। हाल के वर्षों में चीन को आर्थिक चुनौती देने के लिए सरकार ने टिक-टाक सहित विभिन्न चीनी ऐप पर प्रतिबंध, चीनी सामान के आयात पर नियंत्रण, कई चीनी उत्पादों पर शुल्कों में वृद्धि और सरकारी विभागों में स्थानीय उत्पादों के उपयोग की प्रवृत्ति जैसे विभिन्न प्रयास हो रहे हैं।

वर्ष 2019 और 2020 में चीन से तनाव के कारण देशभर में चीनी उत्पादों का जोरदार बहिष्कार दिखाई दिया था। इससे भारत में चीन से होने वाले आयात में गिरावट आने लगी थी और व्यापार घाटा कम होता दिख रहा था। लेकिन वर्ष 2021-22 में विदेश व्यापार घाटा बढ़ना विचारणीय प्रश्न है।
ऐसे समय में जब 2021-22 में भारत का उत्पाद निर्यात चार सौ अरब डालर के लक्ष्य को पार करते हुए चार सौ अठारह अरब डालर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है, तब व्यापार घाटा बढ़ना चुनौतीपूर्ण है। ज्ञातव्य है कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारत का निर्यात दो सौ बानवे अरब डालर रहा था।

निर्यात के मामले में भारत का पिछला सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2018-19 में तीन सौ तीस अरब डालर का रहा था। बढ़ता निर्यात बताता है कि भारतीय उत्पादों की मांग दुनियाभर में बढ़ रही है। यदि हम उत्पाद निर्यात के नए आंकड़ों का विश्लेषण करें, तो पाते हैं कि खासतौर पर पेट्रोलियम उत्पादों, इलेक्ट्रानिक उत्पाद, इंजीनियरिंग उत्पाद, चमड़ा, काफी, प्लास्टिक, सिलेसिलाए कपड़े, मांस और दूध से बने उत्पाद, समुद्री खाद्य और तंबाकू जैसे सामान की निर्यात वृद्धि में अहम भूमिका रही है। साथ ही इंजीनियरिंग सामान, कलपुर्जे, मशीनें, परिधान और वस्त्र निर्यात आदि से संकेत मिलते हैं कि यह धारणा धीरे-धीरे बदल रही है कि भारत प्राथमिक जिंसों का ही बड़ा निर्यातक है। अब भारत अधिक से अधिक मूल्यवर्धित और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का निर्यात भी बड़े पैमाने पर कर रहा है।

भारत से होने वाले निर्यात में तेजी के कई कारण हैं। देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच विनिर्माण क्षेत्र को प्रतिबंधों से बाहर रखने से उत्पादन में गतिरोध नहीं आया। इसके अलावा उद्योगों को गति देने के लिए कारपोरेट कर घटाया गया। कई अहम क्षेत्रों में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआइ) योजनाओं ने पहली बार कच्चे माल के बजाय उत्पादन को बढ़ावा दिया। एमएसएमई की परिभाषा को सुधारा गया, ताकि कई मध्यम आकार की इकाइयों को भी इसका लाभ मिले। इन कदमों से घरेलू उद्योग का आकार बढ़ाने में मदद मिली और विदेशी व्यापार व निर्यात में वृद्धि देखने को मिली। ढांचागत व्यवस्था में किए गए सुधार से भारत को वैश्विक मूल्य शृंखला से जुड़ने में मदद मिली और सस्ते श्रम की तलाश में निर्यातक देश के दूरदराज के हिस्सों तक पहुंचने लगे।

उल्लेखनीय है कि 2021-22 में कृषि उत्पादों और मसालों के अधिकतम निर्यात से उम्मीदें प्रबल हुर्इं। अरब-ब्राजील चैंबर आफ कामर्स की रिपोर्ट के मुताबिक पहली बार भारत बाईस अरब राष्ट्रों की लीग के लिए ब्राजील व अन्य देशों को पीछे छोड़ते हुए सबसे बड़ा कृषि निर्यातक देश बन गया। विश्व व्यापार संगठन की वैश्विक कृषि व्यापार रिपोर्ट-2021 बताती है कि दुनिया में कृषि निर्यात में भारत ने नौवां स्थान हासिल किया। कुल निर्यात में कृषि की हिस्सेदारी ग्यारह फीसद से अधिक हो गई।

बढ़ते व्यापार घाटे को कम करने के लिए एक ओर हमें आयात कम करना होगा और दूसरी ओर बराबर से निर्यात बढ़ाने पर जोर देना होगा। इसमें कोई दो मत नहीं कि हम रणनीतिक रूप से आगे बढ़ कर चीन से बढ़ते आयात और बढ़ते व्यापार घाटे के परिदृश्य को बहुत कुछ बदल सकते हैं। देश में अभी भी दवा उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग और बिजली सामान निर्माण जैसे कई उद्योग बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर आधारित हैं। यद्यपि चीन के कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले एक-डेढ़ वर्ष में सरकार ने पीएलआइ योजना के तहत तेरह उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। देश के कई उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं। अब इन क्षेत्रों में अतिरिक्त प्रयासों से चीन तथा अन्य देशों से आयात को कम किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022-23 के बजट में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) संबंधी नई अवधारणा के प्रावधानों के उपयुक्त क्रियान्वयन से सेज में उपलब्ध संसाधनों के पूरे उपयोग से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों के लिए कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण विनिर्माण किया जा सकेगा, परंतु ऐसे उत्पादों के निर्माण के साथ चीन सहित कई देशों से आयात भी कम करने के लिए रणनीतिक प्रयास करने होंगे।

इस समय आजादी के पचहत्तरवें साल में जब देश अमृत महोत्सव मना रहा है, तब एक बार फिर स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता और चीनी सामान के आयात को नियंत्रित करने के लिए शुरू किए गए अभियान को और तेज करने की जरूरत है। इसके अलावा बिम्सटेक देशों में निर्यात बढ़ाने की संभावनाएं तलाशनी होंगी। सरकार को अन्य देशों की गैर शुल्कीय बाधाएं, मुद्रा का उतार-चढ़ाव, सीमा शुल्क अधिकारियों से निपटने में मुश्किल और सेवा कर जैसे निर्यात को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा। तुलनात्मक रूप से कम उपयोगी आयात पर कुछ नियंत्रण करना होगा, वहीं निर्यात की नई संभावनाएं खोजनी होगी।

निसंदेह इस समय जब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया में वैश्विक मंदी का परिदृश्य उभर रहा है, तब भारत के विदेश व्यापार घाटे में कमी लाना कोई आसान काम नहीं है। बारह अप्रैल को विश्व व्यापार संगठन द्वारा वर्ष 2022-23 के वैश्विक व्यापार वृद्धि अनुमान से 4.7 फीसद से घटा कर तीन फीसद किए जाने के मद्देनजर भारत के तेजी से बढ़ते निर्यात पर भी असर होने के साथ-साथ व्यापार घाटा बढ़ने की आशंका भी बढ़ेगी। ऐसे में सरकार को रणनीतिक रूप से निर्यात बढ़ाने के उपाय करने होंगे और आयात नियंत्रण की रणनीति बनानी होगी। तभी हम व्यापार घाटे में कमी का लक्ष्य हासिल कर पाएंगे।