अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को यकीन ही नहीं होगा कि गांधी जैसा हाड़-मांस का यह व्यक्ति कभी पृथ्वी पर चला भी होगा। गांधी तो छोड़िए आज यह भी भरोसा नहीं होता कि इसी देश में लालबहादुर शास्त्री हुए थे जिन्होंने रेल हादसे की जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ा था। शास्त्री जी की आगे की पीढ़ी कहती है कि अगस्त में बच्चे मरते ही हैं और उत्तर प्रदेश के भगवाधारी मुखिया को दिमागी बुखार से मर रहे बच्चों की शवयात्राओं के बजाए इस बात की चिंता ज्यादा दिखती है कि कांवड़ यात्रा में धूम-धाम से गाना-बजाना होता रहे ताकि वह शवयात्रा न दिखे। देश के नीति-नियंताओं की बदली प्राथमिकताओं को देखकर लग रहा है कि देश बदल रहा है। ऐसा बदल रहा है जहां गांधी और शास्त्री के लिए जगह नहीं। इस बदलते माहौल पर इस बार का बेबाक बोल।

देश बदल रहा है…। इतनी तेजी से बदलेगा सोचा न था। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद एक सांसद के रूप में लोकसभा में आखिरी बार बोलते हुए योगी ने बहुत भावुक होकर मोदीमय होते हुए गोरखपुर का जिक्र किया। उन्होंने कहा था, ‘गोरखपुर में दिमागी बुखार की चपेट में आकर मरने वाले नब्बे फीसद बच्चे दलित और मुसलिम समुदाय के होते हैं। लेकिन पिछली सरकारों ने उनके लिए क्या किया? ढाई साल पहले मोदी जी आए, एम्स लाए और दवा दी’। इसके लगभग पांच महीने बाद योगी का प्रदेश बहुत तेजी से बदल गया। गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में महज 48 घंटे में 30 से ज्यादा बच्चों की मौत के बाद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह कहते हैं, ‘अगस्त में बच्चे मरते ही हैं’। ये सिद्धार्थनाथ सिंह उन्हीं लालबहादुर शास्त्री के नाती हैं जिन्होंने रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन स्वास्थ्य मंत्री ने जिम्मेदारी लेना तो दूर माह-ए-अगस्त को बच्चों की मौत से जोड़ दिया।

‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ के अगुआओं को तो मानो एक अलग छवि बनाने का, असंवेदनशीलता का विश्व रेकार्ड बनाना था। अभी-अभी गुजरात में चुनावी प्रबंधन से नाकाम होकर लौटे बादशाह संख्या दो ने शाहरुख खान की फिल्म सरीखा जुमला दे डाला कि इतने बड़े देश में ऐसे हादसे होते रहते हैं। उत्तर प्रदेश को कृष्ण की नगरी भी कहा जाता है। कृष्ण का जन्मोत्सव यानी हर घर में जीवन का उत्सव। बाल-गोपाल पूजकों के इस प्रदेश के भगवावस्त्रधारी मुखिया ने उत्सवधर्मिता से अपना मोह दिखाते हुए धूमधाम से जन्माष्टमी मनाने का आदेश दे दिया। सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी भी बरत सकती थी। लेकिन कृष्ण की धरती पर इतने बड़े बालसंहार के बाद धूमधाम से जन्माष्टमी मनाने का आदेश बस हमें कृष्ण-कथा से जुड़े कंस की याद दिला गया। दही-हांडी के लिए दोस्तों के कंधों पर चढ़ने वाले बाल-गोपाल का जनाजा बाप की गोद में निकल रहा हो, अपने बाल कान्हा को मोरपंख से सजाने का अरमान रखने वाली मां चिलचिलाती गर्मी में अपने सपने का शव लेकर अंत्यपरीक्षण कक्ष के बाहर खड़ी हो। दूध-भात खाने के लिए मचलने वाले कान्हा की सांसें इसलिए बंद हो गर्इं कि आॅक्सीजन खत्म हो गया। और धर्म के नाम पर आई सरकार नन्हे भगवानों की मौत को बड़े देश में होनेवाले हादसे बता जन्माष्टमी के जश्न में डूब जाती है।

एक बच्चा जब मरता है तो उसके साथ उसके मां-बाप भी मरते हैं, वह पूरा परिवार मरता है जिनकी गोद में वह सांसें लेना, जिंदगी जीना सीख रहा होता है। किसी भी समाज में मातृत्व की अवधारणा सबसे प्रिय और सबसे पवित्र होती है। मां और बच्चा समाज और राष्ट्र की नींव हैं। लेकिन जब धर्म के नाम पर आई सरकार मां के आंसुओं और उसकी गोद की मौतों का अपमान करे और विपक्ष विरोध की रस्म अदायगी के बाद चुप हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि देश बदल रहा है। देश भी बदल गया है और अगस्त का महीना भी। जब गोरखपुर में बच्चे आॅक्सीजन की कमी से तड़प रहे थे तब हमारी संसद भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं सालगिरह मना रही थी। उस दिन संसद में अगस्त उगता हुआ सूरज था, अहिंसा और क्रांति की प्रसव पीड़ा के बाद भारत मां ने एक आजाद बच्चे को जन्म दिया था। लेकिन आजादी के 70 साल बाद लाल किले से दिए भाषण में आप गोरखपुर हादसे का जिक्र भर करके निकल जाते हैं। जलवायु संकट, प्राकृतिक आपदा और बच्चों की मौत को जिस तरह एक साथ निपटा दिया उससे लगा कि देश के साथ आप भी बदल गए हैं। हां आपने ‘न्यू इंडिया’ बोला था। लेकिन यह कैसा नया भारत है जहां अगस्त में बच्चे मरते हैं।

हमें याद है कि आपने उत्तर प्रदेश के चुनावों के वक्त अस्पताल बनाने का तो नहीं लेकिन कब्रिस्तान के बराबर श्मशान बनाने का वादा जरूर किया था। मासूम जनता आपकी बातों में आ गई कि आप द्वारका से आए कृष्ण हो और आपको वोट दे बैठी। जनता को लगा कि जैसे अस्पताल के वादे पूरे नहीं होते हैं वैसे ही यह भी वादा पूरा नहीं होगा। लेकिन श्मशान वाला वादा तो शब्दश: पूरा हुआ। और, योगी सरकार इसी तरह अस्पतालों को संसाधनविहीन करती रही तो पता नहीं कितने श्मशानों की जरूरत होगी। श्मशान के बरक्स अगर हम आपकी नीतियों को देखें तो शिक्षा और स्वास्थ्य जिन पर बच्चों का भविष्य टिका होता है उसे आपने सबसे ज्यादा उपेक्षित किया। उत्तर प्रदेश जैसे सूबे में योगी सरकार जब मेडिकल शिक्षा बजट में 50 फीसद तक की कटौती करती है तो इसका असर कैसा पड़ेगा यह समझा जा सकता है। लेकिन इस पर आपकी चुप्पी बता गई कि आपकी प्राथमिकता क्या है। आपने भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे ज्यादा बोला। जब आपने हर्षवर्धन को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनाया तो आपसे कुछ उम्मीद जगी क्योंकि आपने स्वास्थ्य जैसे महकमे की कमान एक योग्य और ईमानदार छवि के व्यक्ति को सौंपी थी। और उन्होंने दिमागी बुखार के खिलाफ युद्धस्तर पर काम भी शुरू किया, प्रभावित इलाकों में शिविर लगाकर खुद रहनेवाले वे चंद लुप्तप्राय मंत्रियों में से थे। लेकिन ईमानदारी की बात करने वाली मोदी सरकार अपने मंत्रिमंडल के सबसे ईमानदार चेहरे को अचानक हटा देती है।

रेलवे और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों को निजीकरण की राह पर धकेलने वाले नीति आयोग के पहले मुखिया तो खुद की सुरक्षित नौकरी की चाह में कोलंबिया भाग गए। वहीं नीति आयोग के एक अन्य सदस्य जोर-शोर से पैरोकारी कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा सरकारी अस्पतालों को निजी हाथों में सौंप दिया जाए। और, गोरखपुर कांड के जिम्मेदारों पर कार्रवाई करने के बजाए सरकार के नियामक तंत्र बेशर्मी से सरकारी अस्पतालों के निजीकरण की बात कर रहे हैं। तो निजीकरण का हश्र यह देखिए कि अगर किसी निजी कंपनी का भुगतान नहीं हुआ है तो वह बच्चों की सांसों की डोर तोड़ सकती है, आक्सीजन की आपूर्ति रोक सकती है। भुगतान में देरी चाहे जिसकी वजह से हो, भुगतान नहीं तो जिंदगी नहीं।
लेकिन इतनी बड़ी लापरवाही के बाद जांच के पहले ही सरकारी तंत्र ने कह दिया कि बच्चों की मौत आॅक्सीजन आपूर्ति रुकने से नहीं हुई थी। बिना जांच हुए सरकार ने आॅक्सीजन की कमी को नकार कर एक डॉक्टर कफील को खड़ा कर दिया। सरकार इस प्रबंधन में जुट गई कि हाल के दिनों में जो सौ बच्चों की मौत हुई है, उसका जिम्मेदार यही है। ‘गोरखपुर में रहना होगा तो योगी योगी कहना होगा’ वाले इलाके में योगी को ‘सच’ का पता ही नहीं था, और उनसे आॅक्सीजन की कमी का ‘सच’ छुपाया गया था। जिन बच्चों को मोदी जी ने दवा दी थी उन बच्चों का हत्यारा एक कफील को बनाने की कोशिश की गई। खबरें तो ये भी आर्इं कि स्थानीय पुलिस तक अस्पताल प्रशासन से मिली हुई थी और जिन बच्चों की मौते हो रही थी उनके अभिभावकों को जबरन रेलवे स्टेशन पहुंचा दिया जा रहा था ताकि वे मीडिया से बात न कर सकें।

लालू से गठबंधन टूटते ही सवा अरब जनता की तरफ से बिहार में भ्रष्टाचार खत्म होने की खुशी वाला ट्वीट करने वाले प्रधानमंत्री क्या बता सकते हैं कि स्वास्थ्य से जुड़े व्यापमं घोटाले का क्या हुआ? पनामा कांड में भारत में क्या कार्रवाई हो रही है। और, तीन अगस्त को सीबीआइ ने स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों से मिलकर निम्नस्तरीय मेडिकल कॉलेज की मान्यता दिलवाने की कोशिश का जो मामला दर्ज किया है, उसका किस तरह के मेडिकल घोटाले से रिश्ता है? और चर्चा यह भी है कि इस मेडिकल घोटाले का रिश्ता आपकी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से जुड़ा हुआ है।

आज जिस तरह से निजीकरण का राग अलापा जा रहा है और निजी क्षेत्रों के भ्रष्टाचार की तस्वीरें सामने आ रही हैं, गोरखपुर ने उसकी खतरे की घंटी बजा दी है। रेलवे से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रक्षा क्षेत्र तक को जिस तरह निजीकरण की राह पर दौड़ाया जा रहा है उसका अंजाम क्या होगा। रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में जब भुगतान के अभाव में सेवा रोक दी जाएगी तो देश के सामने लाचारगी का कैसा दृश्य पैदा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। गोरखपुर से दिखी जनता की बेचारगी और सरकार की बेपरवाही तो निजीकरण की फिल्म का ट्रेलर भर है। पिछले दिनों बिकते सांसदों और खरीदती पार्टी के जो दृश्य दिखे हैं उससे लग रहा है कि इन्हें कारपोरेट पर इतना भरोसा हो गया है कि अब जनता के वोटों का डर भी नहीं। तो जनता से बेखौफ हुए निजाम का पूरा सिनेमा कैसा बनेगा इसकी कल्पना की जा सकती है।