बीते सोलह नवंबर को बंगलुरु के परपाना अग्रहारा थाना अंतर्गत स्थित एक निजी स्कूल की चार वर्षीय छात्रा के साथ शारीरिक शिक्षा के उसके शिक्षक के दुष्कर्म का मामला प्रकाश में आया। पुलिस ने मणिपुर के मूल निवासी उक्त आरोपी शिक्षक को गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले इकतीस अक्तूबर को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की भलस्वा डेरी थाना पुलिस ने स्वरूप नगर एक्सटेंशन इलाके से एक ऐसे ट्यूटर को गिरफ्तार किया, जो सात-आठ वर्षीय दो बच्चियों को पिछले कई दिनों से अपनी हवस का शिकार बना रहा था।

मामले का खुलासा तब हुआ, जब एक बच्ची ने पेट दर्द की शिकायत करते हुए ट्यूशन जाने से इनकार कर दिया। बारह अक्टूबर को आंध्र प्रदेश के इलुरु जिले के वेंकटपुरम गांव स्थित विद्यालय में एक पांच वर्षीय छात्रा को उसकी शिक्षिका ने गर्म तख्ती पर बैठा दिया, जिससे उसकी पीठ और शरीर का निचला हिस्सा जल गया। उक्त मासूम का कसूर मात्र इतना था कि वह गंदे कपड़े पहन कर विद्यालय आ गई थी। पहली अक्तूबर को राजस्थान के जोधपुर में चौथी कक्षा के दलित जाति के एक छात्र को उसके शिक्षक ने इसलिए बुरी तरह पीटा, क्योंकि उसने स्कूल में मिड-डे मील के दौरान अन्य जातियों के छात्रों की थाली को हाथ लगा दिया था। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कानपुर के श्री ओमर वैश्य विद्यापीठ मनबोधन प्रसाद पब्लिक स्कूल में श्रमदान के नाम पर छात्रों से विद्यालय के निर्माण-कार्य में बेगार कराई गई।

आज से छह वर्ष पहले 15 नवंबर, 2009 को जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक अदालत ने एक शिक्षक को एक लाख रुपए मुआवजे की सजा सुनाई, जिसने फैसले से ठीक बारह वर्ष पहले अपने छात्र को पूरे दिन निर्वस्त्र खड़ा रखा था, तब एक उम्मीद बंधी थी कि सम्मानीय शिक्षक समाज के वे सदस्य, जो परिस्थितियोंवश अपने आचरण के विपरीत कदम उठा लेते हैं, कोई सबक लेंगे। उस समय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रतिभा रानी ने अपने फैसले में उक्त शिक्षक को निर्देश दिया था कि वह बतौर मुआवजा एक लाख रुपए पीड़ित छात्र को अदा करे। 25 मई, 1997 को दिल्ली के एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक ने उस तेरह वर्षीय छात्र को विद्यालय के तालाब में नहाते हुए पकड़ा।

उन्होंने पहले उसे जमकर पीटा, फिर पूरे समय तक विद्यालय में निर्वस्त्र खड़ा रखा। अभिभावकों ने उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, मुकदमा चला और 19 मार्च, 2007 को निचली अदालत ने शिक्षक को एक वर्ष की कैद और ढाई हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। शिक्षक ने निचली अदालत के उसी फैसले को चुनौती दी थी। गुरु देवो भव: जैसी मान्यता वाले हमारे देश के शिक्षकों-शिक्षिकाओं को आखिर क्या होता जा रहा है कि वे आए दिन अपने कारनामों से अभिभावकों का विश्वास तार-तार कर रहे हैं। कहीं छात्र-छात्राओं की पिटाई हो रही है, तो कहीं यौन उत्पीड़न।

बीते अगस्त माह में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पुलिस द्वारा चलाए गए आॅपरेशन सखी के तहत उत्तर-पूर्वी जिले के खजूरी थाना अंतर्गत एक सरकारी विद्यालय की छात्राओं की काउंसलिंग के दौरान शिकायत मिली कि गणित पढ़ाने वाला शिक्षक आते-जाते समय और कक्षा में उन्हें गलत तरीके से छूता है। जांच में शिकायत सही मिली और उक्त शिक्षक को ‘पॉस्को’ के तहत गिरफ्तार किया गया। इससे पहले पांच अगस्त को दिल्ली पुलिस ने शालीमार बाग के बीटी ब्लॉक स्थित सरकारी विद्यालय के एक शिक्षक के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। उक्त शिक्षक ने अपने आठ वर्षीय छात्र को इसलिए उठा कर पटक दिया, क्योंकि उसने घर जाकर यह राज जाहिर कर दिया था कि उक्त शिक्षक उससे और दूसरे छात्रों से पैर दबवाता है, मालिश कराता है। कानपुर में नौबस्ता स्थित एक विद्यालय में पहली कक्षा की छह वर्षीय छात्रा अविका अपने सहपाठियों से बातचीत कर रही थी। यह देख कर उसकी शिक्षिका ने उसके गाल पर तड़ातड़ कई तमाचे जड़ दिए। कानपुर के ही साकेत नगर स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल इंटर कॉलेज में बारहवीं कक्षा के छात्र उत्कर्ष को उसके शिक्षक ने इसलिए बेरहमी से पीटा, क्योंकि गलती से उसका पैर पड़ जाने से सहपाठी का जूता निकल गया।

अप्रैल माह में अकोला (महाराष्ट्र) के जवाहर नवोदय विद्यालय में उनचास छात्राओं के यौन शोषण के आरोप में तीन शिक्षक गिरफ्तार हुए। आरोपी शिक्षक छात्राओं से अश्लील बातें करते और उन्हें जबरन आलिंगन में लेते थे। कांचीपुरम (तमिलनाडु) स्थित एक सरकारी विद्यालय की सातवीं कक्षा की तेरह वर्षीय छात्रा के साथ दुष्कर्म करने वाले शिक्षक को पुलिस ने धर दबोचा। उक्त शिक्षक ने अपनी छात्रा के साथ कई बार दुष्कर्म किया, नतीजतन वह गर्भवती हो गई। सलेम (तमिलनाडु) में एक सहायक प्रोफेसर अपनी छात्रा को घर पर बुला कर उसका यौन उत्पीड़न करने के आरोप में गिरफ्तार हुआ।

उसने अध्ययन संबंधी दिक्कतें दूर करने के नाम पर उसकी अस्मत लूटी थी। मुजफ्फरनगर के थाना मंसूरपुर अंतर्गत ग्राम खुब्बापुर के प्राइमरी स्कूल में पांचवीं कक्षा की छात्रा के साथ एक शिक्षक ने छेड़छाड़ सहित अश्लील हरकतें कीं। छात्रा की मां ने जब स्कूल के दूसरे शिक्षकों को इस बारे में बताया, तो आरोपी शिक्षक ने अगले दिन छात्रा को जमकर पीटा। उक्त सभी घटनाएं देश भर के अभिभावकों के लिए किसी सदमे से कम नहीं हैं, जो अपने बेटे-बेटियों का भविष्य उज्ज्वल बनाने की खातिर उन्हें स्कूल-कॉलेज भेजते हैं, उनके भविष्य और सुरक्षा के प्रति निश्चिंत रहते हैं।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में आए दिन ऐसी घटनाएं सुनने-पढ़ने को मिलती रहती हैं। इससे अभिभावकों के दिल हमेशा आशंकित रहते हैं कि कब कौन-सा शिक्षक या शिक्षिका उनके बच्चे के साथ बदसलूकी कर गुजरे। कई बार तो मामूली-सी गलती पर बच्चे को ऐसी सजा दे दी गई कि अभिभावक ने भयवश उसे स्कूल से निकाल लिया। आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के एक कानवेंट स्कूल की शिक्षिका ने एलकेजी में पढ़ने वाले छात्र को मूत्र पीने के लिए मजबूर कर दिया। उसका कसूर यह था कि उसने अपनी प्लास्टिक की बोतल में पेशाब कर दिया था। पश्चिम बंगाल के उत्तर चौबीस परगना जिले के गोपाल नगर स्थित एक स्कूल की शिक्षिका ने कथित रूप से पैसे चोरी करने के आरोप में आठवीं कक्षा की छात्रा के कपड़े उतरवा कर सहपाठियों के सामने उसकी तलाशी ली।

मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के नौगांव स्थित एक विद्यालय की शिक्षिका ने दो चोटियां बांध कर न आने के अपराध में दसवीं कक्षा की तीन छात्राओं के बाल काट दिए। मध्य मुंबई स्थित एक स्कूल की प्रिंसिपल एवं सहायक शिक्षिका ने तीन छात्रों को न केवल चेन से बांध कर उनकी परेड कराई, बल्कि उन्हें शौचालय साफ करने को मजबूर किया। सूरत (गुजरात) के अडाजण थाना अंतर्गत एलएनबी स्कूल की नौंवीं कक्षा के छात्र हर्ष ने फांसी लगा कर जान देने से पहले अपने सुसाइड नोट में लिखा, पापा, मेरी आखिरी इच्छा है कि आप पीटी वाले सर के गाल पर दस-बीस थप्पड़ मारना। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के संतोषगढ़ स्थित एक निजी स्कूल में पाठ याद न करने की सजा के बतौर छात्रों की टाई और छात्राओं की चोटियों में जूते बांध दिए गए।

कुछ दिन पहले की बात है, एक छात्र अपने शिक्षक द्वारा यह कहे जाने पर कि तुम चपरासी भी नहीं बन पाओगे, अपनी जान देने पर आमादा हो गया, बिना यह सोचे कि उसे आगे चल कर अपने माता-पिता, भाई-बहन का सहारा बनना है। कोई शिष्या महज इसलिए फांसी का फंदा अपने गले में डाल कर आत्मा का परमात्मा से मिलन करा देती है, क्योंकि पूरी कक्षा के सामने हुआ अपमान उसे बर्दाश्त नहीं हो पाता। होमवर्क पूरा न होने, पास में मोबाइल मिलने अथवा अनजाने में विद्यालय का कोई नुकसान हो जाने पर जब पूरी कक्षा के सामने किसी छात्र-छात्रा को अपने शिक्षक यानी गुरु के हाथों सजा मिले, तो वह कैसे अपने लक्ष्य यानी चिड़िया की आंख भेदेगा अथवा भेदेगी? सवाल अटपटा है, लेकिन समय रहते इसका जवाब ढूंढ़ना बहुत जरूरी है।

माना कि गली-मुहल्लों में स्थित कथित मांटेसरी-पब्लिक स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक-शिक्षिकाएं अपनी अल्प आमदनी के चलते अक्सर अनेक दिक्कतों से दो-चार रहते हैं। उन्हें अपनी काबिलियत का सही मूल्य न मिल पाने की कुंठा वक्त-बेवक्त सताती रहती है। लेकिन इसका मतलब यह तो कतई नहीं है कि नियोक्ता के प्रति उपजा गुस्सा किसी मासूम पर उतारा जाए। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को तो पर्याप्त वेतन और सुविधाएं हासिल हैं, बावजूद इसके वे संवेदनशून्य होते जा रहे हैं। असल चिंता यह है कि शिक्षकों में हिंसा कैसे और क्यों घुसपैठ करती जा रही है? कहीं उनके प्रशिक्षण में तो कोई कमी नहीं रह जाती अथवा बाल मनोविज्ञान न समझ पाने की खीझ उन्हें हिंसक और अमानवीय बनने को मजबूर कर रही है? वजह चाहे जो भी हो, हालात बहुत गंभीर हैं। बच्चों के मन में स्कूल और शिक्षकों के प्रति जो भय घर करता जा रहा है, वह बहुत चिंतनीय है। आज शिक्षकों और शिक्षा के मंदिरों की गरिमा तथा अभिभावकों का विश्वास तार-तार होने से बचाने की सख्त जरूरत है।