विश्व युद्ध नहीं हुआ तो भी आज दुनिया के सामने पांच ऐसे बड़े खतरे पैदा हो गए हैं जो धरती को विनाश की ओर ले धकेल रहे हैं। गर्म होती दुनिया में बाढ़, भूस्खलन, आग, संक्रमण और परजीवियों से होने वाली बीमारियों का ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। इन खतरों का असर अब कोरोना वायरस महामारी के रूप में दुनिया देख रही है।
हालांकि कई देश इसे चीन का जैविक हथियार बताते है, पर तापमान बढ़ने से बाढ़, भूस्खलन, आग, तेजी से घटती खाद्य आपूर्ति और बिगड़ती जैव विविधता के कारण वैश्विक प्रणाली पतन की ओर जा सकती है। पिछले दिनों कनाडा में साबुत बची आखिरी हिम चट्टान का ज्यादातर हिस्सा गर्म मौसम के चलते टूट कर विशाल हिम द्वीपों में बिखर गया। ये हिम चट्टानें बर्फ का एक तैरता हुआ विशालकाय पिंड होती हैं जो किसी ग्लेशियर के जमीन से समुद्र की सतह पर बह जाने से बनता है।
एक नए अध्ययन के अनुसार साल 2070 तक तीन अरब से भी ज्यादा लोग उन जगहों पर रह रहे होंगे, जहां तापमान सहने लायक नहीं होगा। जब तक कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं आएगी और बड़ी संख्या में लोग ये महसूस करेंगे कि औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा हो गया है। पर्यावरण की यह स्थिति उस माहौल से बाहर होगी, जिस माहौल में पिछले छह हजार सालों से इंसान फल-फूल रहे हैं।
इस अध्ययन के सह-लेखक टिम लेंटन के अनुसार यह शोध जलवायु परिवर्तन को ज्यादा मानवीय संदर्भों में देखता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक भले ही पेरिस जलवायु समझौते पर अमल की कोशिशें की जा रही हों, लेकिन दुनिया तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की तरफ बढ़ रही है। इंसानी आबादी छोटे-छोटे जलवायु क्षेत्रों में सघन रूप से बस गई है। ज्यादातर लोग उन जगहों पर रह रहे हैं जहां औसत तापमान 11 से 15 डिग्री के बीच है। आबादी का छोटा हिस्सा उन इलाकों में रह रहा है, जहां औसत तापमान 20 से 25 सेल्सियस के बीच है। इन परिस्थितियों में ये लोग हजारों सालों से रह रहे हैं।
हालांकि जलवायु संकट की वजह से अगर दुनिया का औसत तापमान तीन डिग्री बढ़ गया तो एक बड़ी आबादी को इतनी गर्मी में रहना होगा कि वह जलवायु की सहज स्थिति के बाहर हो जाएंगे। समंदर की तुलना में जमीन ज्यादा तेजी से गर्म होगी। इसलिए जमीन का तापमान तीन डिग्री ज्यादा रहेगा। पहले से गर्म जगहों पर आबादी के बढ़ने की भी संभावना है। इनमें सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में पड़ने वाले अफ्रीका महाद्वीप के ज्यादातर इलाके होंगे, जहां व्यक्ति को ज्यादा गर्म माहौल में रहना होगा। गर्म जगहों पर ज्यादा सघन आबादी देखने को मिल रही है। इससे उन गर्म जगहों पर गर्मी और बढ़ रही है।
इसी वजह से तीन डिग्री ज्यादा गर्म दुनिया में औसत आदमी को सात डिग्री अधिक गर्म परिस्थितियों में जीना पड़ रहा है। जिन इलाकों के इस बदलाव से प्रभावित होने की संभावना जाहिर की गई है, उनमें आस्ट्रेलिया, भारत, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और मध्य पूर्व के कुछ हिस्से शामिल हैं। अध्ययन में इस बात को लेकर भी चिंता जताई गई है कि गरीब इलाकों में रहने वाले लोग इतनी तेज गर्मी से खुद का बचाव करने में सक्षम नहीं होंगे। आज जो तापमान है, उसमें होने वाली एक डिग्री की वृद्धि से भी करीब एक अरब लोग प्रभावित होते हैं। इसलिए तापमान में होने वाली वृद्धि की हरेक डिग्री से हम लोगों की रोजी-रोटी में होने वाले बदलाव को काफी हद तक बचा सकते हैं।
दुनिया के दो सौ वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के संकट को लेकर आगाह किया है। इक्कीसवीं सदी में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का खत्म होना, ताजे पानी और भोजन के घटते स्रोत और तूफान से गर्म हवा चलने तक के चरम मौसम की घटनाएं मानवता के लिए बड़ी चुनौती होंगी। फ्यूचर अर्थ के शोध के अनुसार वैश्विक स्तर के तीस जोखिमों में से इन पांचों की संभावना और प्रभाव दोनों ही इस मामले में सूची में सबसे ऊपर रहेंगे। इन जोखिमों को परस्पर जुड़ा हुआ माना गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि मानवता टिकाऊ ग्रह और समाज के लिए संक्रमण के महत्वपूर्ण चरण में है। अगले दशक में हमारे कार्य पृथ्वी पर हमारे भविष्य का निर्धारण करेंगे।
जैव विविधता के खात्मे का अर्थ प्राकृतिक और कृषि प्रणालियों की क्षमता का कमजोर होना है और यह खाद्य आपूर्ति को भी जोखिम में डालती है। कुछ वैज्ञानिकों ने पिछले एक साल में पर्यावरणीय संकटों की संभावना और प्रभावों को देखना शुरू कर दिया है, जिसमें आस्ट्रेलियाई जंगलों में आग, फिलीपींस की बाढ़ और अफ्रीका के चक्रवात शामिल हैं। दुनिया के कुछ हिस्से जल्द ही एक साथ छह चरम मौसम की घटनाओं का सामना कर सकते हैं।
लू और जंगल की आग से लेकर बाढ़ और घातक तूफान तक इसमें शामिल हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि गरमाती धरती के चलते हमारे ग्रह धरती पर भयावह बदलाव दिखाई देने लगे हैं, जो न तो इंसानियत, और न ही हमारे ग्रह के लिए शुभ संकेत है। इंसानी गतिविधियों के चलते बढ़ते कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन ने धरती का तापमान बढ़ा दिया है। इससे मौसम चक्र गड़बड़ा गया है। अति मौसमी दशाओं की प्रवृत्ति और आवृत्ति में इजाफा हुआ है।
जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ दशक बाद पैंतीस डिग्री से अधिक तापमान वाले बेहद गर्म दिनों की औसत संख्या आठ गुना बढ़ कर करीब तियालीस प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। वर्ष 2010 में ऐसे बेहद गर्म दिनों की संख्या मात्र पांच प्रतिशत थी। देश के सबसे गर्म राज्य पंजाब का औसत तापमान वर्ष 2100 तक 36 डिग्री पर पहुंच जाएगा। तब देश के सोलह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का औसत तापमान 32 डिग्री से अधिक होगा।
ओड़ीशा इस सूची में शीर्ष पायदान पर रहेगा, जहां बेहद गर्म दिनों की बढ़ती संख्या का असर मृत्यु दर पर पड़ता है। इसके कारण कुछ दशक बाद देश में सालाना 15 लाख से अधिक लोगों की मौत हो सकती है। गर्मी और प्रदूषण से होने वाली मौतों में चौंसठ प्रतिशत मौतें छह राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में होंगी।
प्रदूषण भी वैश्विक स्तर पर एक विकराल समस्या का रूप ले चुका है। हाल में आई एक रिपोर्ट देश के लिए चिंता बढ़ाने वाली है। इसमें बताया गया है कि वर्ष 2017 में प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा लोगों की जान भारत में गई है। ग्लोबल एलायंस ऑन हेल्थ एंड पॉल्यूशन (जीएएचपी) की इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण के कारण सबसे अधिक जिन दस देशों में सबसे अधिक जानें गई हैं, उनमें दुनिया के बड़े और अमीर देश भी हैं।
इस सूची में भारत शीर्ष पर है, जहां प्रदूषण के कारण तेईस लाख से ज्यादा लोगों को समय पूर्व जान गंवानी पड़ी। इसके बाद चीन का नंबर आता है, जहां वर्ष 2017 में 18 लाख से अधिक लोगों की प्रदूषण के कारण जान गई। शीर्ष दस की सूची में अमेरिका भी शामिल है, जहां करीब 1.97 लाख लोगों की मौत प्रदूषण से हुई। सूची में अमेरिका सातवें स्थान पर है। वहीं, अगर एक लाख लोगों पर प्रदूषण के कारण जान गंवाने वालों की बात की जाए तो इस सूची में अमेरिका 132वें पायदान पर रहा। हांलाकि कोरोना से मरने वालों की सबसे अधिक संख्या में अमेरिका में रही।