दुनिया में दूध उत्पादन में अव्वल होने के साथ भारत दूध की सबसे ज्यादा खपत में भी पहले स्थान पर है। बावजूद इसके पशु पालकों की गिनती देश की आर्थिकी में नहीं की जाती है। इन्हें और मछुआरों को सामान्य किसानों में ही शामिल कर लिया जाता है। लेकिन हाल में केंद्र सरकार द्वारा घोषित किए गए बीस लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में दूध उत्पादकों और पशु पालकों भी सुध ली गई है। दो लाख करोड़ रुपए के कर्ज पशु पालकों को दिए जाएंगे।

हालांकि मवेशियों और इनके पालकों का अगर ठीक से सरंक्षण करना है तो वन सरंक्षण अधिनियम में सुधार कर पशुओं को आरक्षित वनों, राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्यों में घास चरने की अनुमति देनी होगी। इससे एक साथ दो फायदे होंगे, एक तो ये जंगली घास, फल-फूल और पत्तियां खाएंगे तो दूध का स्वाभाविक रूप में उत्पादन बढ़ेगा, नतीजतन देश की आबादी को पौष्टिक आहार मिलेगा। इससे बीमारियां भी कम होंगी। दूसरा लाभ यह कि जो पशुधन सड़कों पर दुर्घटनाओं में रोजाना बड़ी संख्या में मर रहा है, उसे जीवनदान मिल जाएगा।

देश के प्रत्येक नागरिक को औसतन दो सौ नब्बे ग्राम दूध रोजाना मिलता है। इस हिसाब से कुल खपत प्रतिदिन पैंतालीस करोड़ लीटर दूध की हो रही है। जबकि शुद्ध दूध का उत्पादन करीब पंद्रह करोड़ लीटर ही है। दूध की लगातार बढ़ रही मांग के कारण मिलावटी दूध का कारोबार गांव-गांव फैलता जा रहा है। दूध की कमी की पूर्ति सिंथेटिक दूध बना कर और पानी मिला कर की जाती है। यूरिया से भी दूध बनाया जा रहा है। बहरहाल, मिलावटी दूध के दुष्परिणाम जो भी हों, इस असली-नकली दूध का देश की अर्थव्यवस्था में योगदान एक लाख पंद्रह हजार नौ सौ सत्तर करोड़ रुपए का है।

दाल और चावल की खपत से कहीं ज्यादा दूध और उसके सह-उत्पादों की मांग लगातार बनी रहती है। साल 2018 में देश में दूध का उत्पादन 6.3 फीसद बढ़ा है, जबकि अंतरराष्ट्रीय वृद्धि दर 2.2 फीसद रही है। दूध की इस खपत के चलते दुनिया के देशों की निगाहें इस व्यापार को हड़पने में लगी हैं। दुनिया की सबसे बड़ी दूध का कारोबार करने वाली फ्रांस की कंपनी लैक्टेल है, जिसने भारत की सबसे बड़ी हैदराबाद की तिरुमाला दूध डेयरी को 1750 करोड़ रुपए में खरीद लिया है। इस डेयरी को चार किसानों ने मिल कर बनाया था। भारत की तेल कंपनी आॅयल इंडिया भी अब दूध कारोबार में प्रवेश कर रही है, क्योंकि दूध का कारोबार सोलह फीसद सालाना की दर से बढ़ रहा है।

बिना किसी सरकारी मदद के बूते देश में दूध का सत्तर फीसद कारोबार असंगठित क्षेत्र संभाल रहा है। इस कारोबार में ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं। लेकिन पारंपरिक ज्ञान से न केवल वे बड़ी मात्रा में दुग्ध उत्पादन में सफल हैं, बल्कि इसके सह-उत्पाद दही, छाछ, घी, मक्खन, पनीर, मावा आदि बनाने में भी मर्मज्ञ हैं। दूध का तीस फीसद कारोबार संगठित क्षेत्र जैसे डेयरियों के माध्यम से होता है। देश में दूध उत्पादन में छियानवे हजार सहकारी संस्थाएं जुड़ी हैं।

चौदह राज्यों की अपनी दूध सहकारी संस्थाएं हैं। देश में कुल कृषि खाद्य उत्पादों व दूध से जुड़ी प्रसंस्करण सुविधाएं महज दो फीसद हैं। इस कारोबार की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इससे सात करोड़ से भी ज्यादा लोगों की आजीविका जुड़ी है। रोजाना दो लाख से भी अधिक गांवों से दूध एकत्रित करके डेयरियों में पहुंचाया जाता है। बड़े पैमाने पर ग्रामीण सीधे शहरी और कस्बाई ग्राहकों तक भी दूध बेचने का काम करते हैं।

जीवनदायी दूध में मिलावट कोई नहीं बात नहीं है। हमारी ज्ञान परंपरा में शुद्ध दूध में थोड़ा बहुत पानी मिला कर ही पीने का प्रचलन है, जिससे दूध को पचाने में आसानी हो। लेकिन दूध में मिलाए जाने वाले जिन हानिकारक तत्वों की जानकारी सामने आई है, वह हैरान करने वाली है। बाजार में मिलने वाला अड़सठ फीसद दूध मिलावटी है जो यूरिया, कास्टिक सोडा, डिटर्जेंट पाउडर, कृत्रिम चिकनाई, सफेद रोगन और पेंट तक मिला कर बनाया जा रहा है। तय है, इस तरह की अखाद्य वस्तुएं जब जीवनदायी दूध में मिलाई जाएंगी तो देश का युवा होता बचपन स्वस्थ्य कैसे रहेगा? जब विषैले तत्वों को मिला कर दूध बेचा जाएगा, तब वह भयंकर बीमारियों का सबब तो बनेगा ही।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने 2011 में दूध की गुणवत्ता नापने के लिए एक व्यापक सर्वेक्षण किया था। इस मकसद की पूर्ति के लिए एक हजार सात सौ इनक्यानवे नमूने देशभर से इकट्ठे किए गए थे। इनमें सभी अट्ठाईस राज्य और पांचों केंद्रशासित प्रदेश शामिल थे। लद्दाख उस समय स्वतंत्र केंद्रशासित प्रदेश न होते हुए जम्मू-कशमीर का ही हिस्सा था। तब तेलंगाना अस्तित्व में नहीं आया था, इसलिए राज्यों की संख्या 28 ही थी। इन नमूनों में से अड़सठ फीसद नमूने एफएसएसआइ के मानकों पर खरे नहीं उतरे।

बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, झारखंड और दमन-द्वीप में हालात कुछ ज्यादा ही बदतर हैं। इस सर्वे से यह सच्चाई भी सामने आई है कि हम सबसे ज्यादा दूध इसलिए उत्पादित कर पा रहे हैं, क्योंकि उसमें मिलावटी दूध उत्पादन की मात्रा भी जुड़ी हुई है।

इस व्यवसाय पर अमेरिका समेत अन्य देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की निगाहें टिकी हैं। अमेरिका की इस मंशा को समझने के लिए भारत और अमेरिका के बीच होने वाले आयात-निर्यात को समझना होगा।

2018 में दोनों देशों के बीच एक सौ तियालीस अरब डॉलर यानी दस लाख करोड़ का व्यापार हुआ। इसमें अमेरिका को पच्चीस अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है। इसकी भरपाई वह दुग्ध और पोल्ट्री उत्पादों का भारत में निर्यात करके करना चाहता है। इस नाते उसकी कोशिश है कि इन वस्तुओं व अन्य कृषि उत्पादों पर भारत आयात शुल्क घटाने के साथ उन दुग्ध उत्पादों को बेचने की छूट भी दे, जो पशुओं को मांस खिला कर तैयार किए जाते हैं। दरअसल अमेरिका में इस समय दुग्ध-उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन उस अनुपात में कीमतें नहीं बढ़ रही हैं। इसके अलावा अमेरिकी लोगों में दूध की जगह अन्य तरल-पेय पीने का चलन बढ़ने से दूध की खपत घट गई है। इस कारण दूध किसान आर्थिक बदहाली के शिकार हो रहे हैं।

यह स्थिति तब है जब अमेरिका अपने किसानों को प्रति किसान साठ हजार डॉलर से ज्यादा (करीब चवालीस लाख रुपए) सालाना की सब्सिडी देता है। इसके उलट भारत में सब मदों में मिला कर किसान को बमुश्किल सोलह हजार रुपए की सालाना की मदद दी जाती है। ऐसे में यदि अमेरिकी हितों को ध्यान में रखते हुए डेयरी उत्पादों के निर्यात की छूट दे दी गई तो भारतीय डेयरी उत्पादक अमेरिकी किसानों से किसी भी स्थिति में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे। नतीजतन डेयरी उत्पाद से जुड़े जो बारह करोड़ लघु और सीमांत भारतीय किसान दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हो जाएंगे। आत्मनिर्भरता का पर्याय बना डेयरी उद्योग चौपट हो जाएगा।

फिलहाल भारतीय नियमों के अनुसार यदि भारत किसी देश से दुग्ध उत्पादों का आयात करता है तो उसके निमार्ता को यह प्रमाणित करना होगा कि जिन मवेशियों के उत्पाद भेजे जा रहे हैं, उन्हें किसी दूसरे जानवर के आंतरिक अंगों एवं मांस आदि तो नहीं खिलाए जाते हैं। यह नियम 2003 से लागू है। हालांकि भारत में ऑनलाइन व्यापार के जरिए मांस युक्त आहार बिकता है। हमारे यहां गाय-भैसें भले ही कूड़े-कचरे में मुंह मारती फिरती हों, लेकिन दुधारू पशुओं को मांस खिलाने की बात कोई सपने में भी नहीं सोच सकता। बहरहाल, दूध से जुड़ी अर्थव्यवस्था को यथास्थिति में बनाए रखना आवश्यक है।