संजय वर्मा

नाभिकीय विखंडन से मिली ऊर्जा की अपनी समस्याएं हैं। इससे बड़ी मात्रा में परमाणु कचरा पैदा होता है, जिसका निपटारा मुश्किल और खतरनाक है। ऐसे में उस नाभिकीय संलयन को नई उम्मीद से देखा जाता रहा है, जिससे हमारा सूरज और दूसरे तारे प्रकाशमान हैं।

सौरमंडल के अपने जिस सूरज को हम सदियों से जानते हैं, उसके बारे में एक स्थापित प्रस्थापना यह है कि अगर वह न होता तो पृथ्वी पर जीवन न होता। सूरज से आने वाली बर्दाश्त करने लायक गर्मी और पृथ्वी पर मौजूद पानी की वजह से पैदा नमी ने वह माहौल बनाया जिससे धरती पर जीवन की शुरुआत हुई। लेकिन हमारा यह सूरज आज बिजली की जरूरतें पूरा करने का एक अहम जरिया भी बन गया है।

सौर ऊर्जा के अनेक प्रबंधों के बल पर दुनिया सहित भारत में भी बिजली की जरूरतों को कुछ हद तक पूरा किया जा रहा है। इन खूबियों ने इस प्राकृतिक सूरज को बेशक उपयोगी बनाया है, पर इसकी कुछ सीमाएं हैं। अगर बादल इसे कई दिनों तक ढक लें, तो बिजली बनना रुक जाता है। साथ ही, यह बिजली इतनी मात्रा में नहीं बन पाती, जिससे ऊर्जा की मौजूदा और भावी जरूरतों को पूरा किया जा सके। शायद यही वजह है कि दुनिया में नकली सूरज जैसे इंतजाम कर असीमित मात्रा में ऊर्जा पाने की कोशिशें की जा रही है।

हाल में दावा किया गया कि चीन ने अपने कृत्रिम सूर्य से एक हजार छप्पन सेकेंड तक अत्यधिक ऊंचा तापमान हासिल करने में विश्व कीर्तिमान बनाने में कामयाबी हासिल कर ली। दक्षिण-पश्चिम चीन के सिचुआन प्रांत में स्थित एक्सपेरिमेंटल एडवांस्ड सुपरकंडकक्टिंग टोकामाक (ईस्ट) नामक यह नकली सूर्य असल में एक प्रकार का परमाणु निर्माण है, जो असली सूर्य की तरह परमाणु संलयन (फिशन) तकनीक पर काम करता है। पिछले साल मई में इससे एक सौ एक सेकेंड तक बारह करोड़ डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी पैदा की गई थी।

हाइड्रोजन और ड्यूटेरियम गैसों को र्इंधन की तरह इस्तेमाल कर असली सूर्य की तरह परमाणु संलयन तकनीक से ऊर्जा पैदा करने के इस प्रयास को एक बड़ी उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि आने वाले वक्त में जब बिजली पैदा करने के पारंपरिक साधन चुक जाएंगे या बेतहाशा बढ़ती जरूरतों को इन साधनों से पूरा करना मुमकिन नहीं होगा, ऐसे में यह नकली सूरज धरती को जगमग रखने में सहायता करेगा।

यही नहीं, शून्य रेडियो एक्टिव कचरे सहित किसी भी प्रकार का कचरा नहीं पैदा करने वाली यह तकनीक वैश्विक तापमान सहित तमाम समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत कर सकेगी। अभी तक इस परमाणु संयंत्र से दस लाख एंपीयर करंट एक हजार सेकेंड तक और दस करोड़ डिग्री सेल्सयिस तापमान पैदा करने का काम तीन अलग-अलग चरणों में किया गया है। अब अगला लक्ष्य इन तीनों प्रक्रियाओं को एक साथ अंजाम देने का है।

चीन को उम्मीद है कि अब से पांच साल बाद वह टोकामक से भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा करने वाला संलयन रिएक्टर बनाना शुरू कर देगा। इसके निर्माण में दस साल लगेंगे। इसके बाद वर्ष 2040 तक बिजली उत्पादन शुरू हो जाएगा। पहली बार वर्ष 2006 में धरती पर असली सूरज से दस गुना ज्यादा गर्मी देने वाला नकली सूरज बनाने का काम शुरू किया गया था।

इस मामले में चीन अकेला ऐसा देश नहीं है जो नकली सूरज से ऊर्जा बनाने पर काम कर रहा है। परमाणु संलयन तकनीक से चलने वाले रिएक्टरों के विकास की शुरुआत अमेरिका से की गई थी। इसका उद्देश्य ऐसे सुरक्षित परमाणु रिएक्टर बनाना था, जिनसे कोई ऐसा परमाणु कचरा न निकले जिसका निपटान मुश्किल हो।

इस दिशा में विशेष प्रगति तब हुई, जब वर्ष 2006 में रूस, जापान, अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ और भारत ने मिल कर इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपैरीमेंट रिएक्टर (आइटीईआर) नामक परियोजना पर सहमति जताई। इस परियोजना में संलयन तकनीक से चलने वाले परमाणु रिएक्टर का निर्माण करना है। आइटीईआर का निर्माण 2013 में फ्रांस के कराहाश में शुरू किया गया।

यह दुनिया की सबसे बड़ी फ्यूजन रिसर्च परियोजना है। इसमें भारत को रिएक्टर के सबसे बड़े, भारी और महत्त्वपूर्ण उपकरण के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। भारत ने आइटीईआर के लिए ‘क्रोस्टेट’ का निर्माण किया है। इसे रिएक्टर का दिल भी कहा जा रहा है। क्रोस्टेट सिलेंडर के आकार का उपकरण है जो रिएक्टर का तापमान नियंत्रित करता है। इसके अलावा रिएक्टर की एक और प्रणाली (वैक्यूम वैसेल सिस्टम) के विकास का काम भी भारत में हो रहा है। यह रिएक्टर 2025 तक तैयार हो जाने की उम्मीद है।

संलयन (फ्यूजन) से किस तरह ऊर्जा मिलेगी और यह नाभिकीय ऊर्जा की मौजूदा प्रक्रिया विखंडन (फिशन) से कैसे अलग है, यह समझना जरूरी है। असल में परमाणु ऊर्जा दो तरह से मिलती है- एक, नाभिकीय विखंडन (न्यूक्लियर फिशन) से और दूसरे, नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूजन) से। अभी तक दुनिया नाभिकीय विखंडन के तरीके से ही परमाणु ऊर्जा पैदा कर सकी है। नाभिकीय विखंडन से मिली ऊर्जा की अपनी समस्याएं हैं। इससे बड़ी मात्रा में परमाणु कचरा पैदा होता है, जिसका निपटारा मुश्किल और खतरनाक है।

ऐसे में उस नाभिकीय संलयन को नई उम्मीद से देखा जाता रहा है, जिससे हमारा सूरज और दूसरे तारे प्रकाशमान हैं। परमाणु संलयन की प्रक्रिया में दो या दो से अधिक नाभिक आपस में टकराकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं। यह परमाणु विखंडन के विपरीत है जिसमें भारी तत्व टूट जाते हैं और हल्के हो जाते हैं। दोनों ही प्रक्रियाओं में भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है। हालांकि विखंडन के मुकाबले नाभिकीय संलयन असीमित ऊर्जा दे सकता है। इससे परमाणु प्रदूषण का खतरा भी नहीं होता। पर सवाल यह है कि अभी तक दुनिया इस दिशा में क्यों नहीं बढ़ी।

इसका जवाब यह है कि नाभिकीय संलयन को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है। परमाणु संलयन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए बहुत अधिक तापमान की जरूरत होती है, जिसे नियंत्रित करना एक अलग समस्या है। यह ठीक उसी तरह है जैसे धरती पर असली सूर्य बना देना। संलयन प्रक्रिया को नियंत्रित करने के एक असरदार और व्यावहारिक तरीके की खोज प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने की।

उन्होंने नाभिकीय संलयन के लिए परमाणुओं को प्लाज्मा की स्थिति में पहुंचा कर ऐसा किया। ऐसा करने से प्लाज्मा एक बुलबुले या चुंबकीय द्वीप का आकार ले लेता है, जहां असीमित ऊर्जा निकलती है। यहीं से संलयन यानी एकीकरण की प्रक्रिया के अनियंत्रित होने का जोखिम पैदा होता है। शोधकर्ताओं ने रेडियो संकेतों से नाभिकीय अभिक्रिया नियंत्रित करने यानी चुंबकीय द्वीप (मैग्नेटिक आइलैंड) को काबू में करने का प्रयास किया, जो सफल रहा।

संलयन की प्रक्रिया के कुछ फायदे और हैं। इसमें ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता, इसलिए यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। आज दुनिया में जितने भी परमाणु रिएक्टर हैं, वे पहले तरीके यानी विखंडन से बिजली पैदा करते हैं। ऐसे रिएक्टरों से कभी भी परमाणु दुर्घटना होने का खतरा रहता है। वर्ष 1986 में यूक्रेन के चेरनोबिल और जापान के फुकुशिमा स्थित दाइची परमाणु बिजलीघर में मार्च 2011 में सुनामी के कारण हुई दुर्घटना इसके बड़े उदाहरण हैं। ऐसे रिएक्टरों से जो परमाणु कचरा निकलता है, वह सैकड़ों साल तक जहरीला विकिरण उगलता रहता है। आज भी दुनिया के किसी भी देश के पास परमाणु कचरे के ऐसे स्थायी निपटारे की कोई व्यवस्था नहीं है।

इसके अलावा इन परमाणु बिजलीघरों में अपनाई जा रही तकनीक के चोरी हो जाने और उसके आतंकियों के हाथ में पड़ जाने का खतरा भी है। इन रिएक्टरों में ऊर्जा पैदा करने के लिए जो यूरेनियम इस्तेमाल में लाया जाता है, वही परमाणु हथियारों में प्रयुक्त होता है। यह जोखिम संलयन वाले रिएक्टरों और उनके ईंधन के मामले में बिल्कुल खत्म हो जाता है।