हर तरह की मिलावटों के खिलाफ कानून बनाए गए हैं, लेकिन उनका असर न के बराबर है। खाद्यान्न के अलावा पेय पदार्थों, तेलों, शहद और दूध में मिलावट बहुत बड़े पैमाने पर होती है। नियम के मुताबिक मिलावट रोकने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, मगर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं होती, जो मिलावटखोरों के लिए सबक बने।
विज्ञान ने जिस दूध को पूर्ण आहार और आयुर्वेद ने अमृत कहा है, उस दूध से मुनाफा कमाने के लालच में मिलावट कर लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसकी वजह कानून का लचीलापन और अकूत मुनाफा कमाने की मानसिकता है। अब मिलावट ऐसी लाइलाज बीमारी बन गई है, जिसे ठीक करना लगभग असंभव मान लिया गया है। इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है। पानी मिलाते-मिलाते दूध में जब जहरीले रसायनों की मिलावट होने लगे, तो इसे सामान्य कह कर नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने दिसंबर 2011, दिसंबर 2014 और अगस्त 2016 में केंद्र और राज्य सरकारों को मिलावटखोरी के खिलाफ सख्त कानून बनाने की सलाह दी थी। गौरतलब है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित देश के विभिन्न होस्सों में दूध में मिलावट को लेकर 2011, 2016 और 2018 में सर्वेक्षण कराए गए थे। जगजाहिर है कि नेशनल सर्वे रिपोर्ट से यह जाहिर हो चुका है कि दूध में खतरनाक एल्फोटोक्सिन और एंटीबायोटिक्स मिलाया जाता है, जिससे हमारा लीवर हमेशा के लिए खराब हो सकता है या हम कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। आंख, आंत, गुर्दे हमेशा के लिए हमारा साथ छोड़ सकते हैं। मिलावटी दूध पीने से बच्चों की ही नहीं, बल्कि बड़ों की हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं।
मिलावट की वजह से श्वेत-क्रांति का कारवां रुकता नजर आ रहा है। गौरतलब है कि दूध में हो रही बड़े पैमाने पर मिलावट और बढ़ते पशु-वध की वजह से श्वेत-क्रांति के कदम डगमगा रहे हैं। यह मिलावट दूध उत्पादक सहकारी संघों और निजी उत्पादकों के अलावा बिक्री करने वाले अनपढ़ दूधिए भी करते हैं। इसलिए दूध में मिलावट के खिलाफ सरकारी और गैरसरकारी अभियान साल के बारहों महीने चलाने की जरूरत महसूस होने लगी है। दूध में मिलावट का मतलब दूध से बनने वाले सभी उत्पादों में मिलावट होना।
हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडीशा, उत्तराखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ सहित देश के तमाम राज्यों से दूध में मिलावट की खबरें आती रही हैं। पिछले दिनों उत्तराखंड के दूध उत्पादक सहकारी संघ द्वारा उत्पादित दूध ‘आंचल’ में मेलामाइन नामक जहरीले रसायन मिलाए जाने की खबर आई, तो लोगों ने सहकारी उत्पादक संघों की ईमानदारी पर सवाल उठाए।
इसी तरह पिछले दशक में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडीशा जैसे राज्यों में कृत्रिम दूध बनाने और दूध में मिलावट से कई लोगों में खतरनाक बीमारियां होने का मुद्दा सुर्खियों में रहा। इससे दूध उत्पादक पशुपालकों और दूधियों की बदनामी हुई। समाज में असहजता पैदा हुई। जिससे कई तरह की समस्याएं पैदा हुर्इं, लेकिन मिलावट का सिलसिला रुका नहीं। श्वेत-क्रांति के सफल न होने के पीछे दूध में बड़े पैमाने पर हो रही मिलावट और दूध देने वाले जानवरों की बढ़ती गोकशी प्रमुख वजह मानी जाती है।
मिलावट अब एक बेरोकटोक चलने वाली समस्या बन गई है। हर तरह की मिलावटों के खिलाफ कानून बनाए गए हैं, लेकिन उनका असर न के बराबर है। खाद्यान्न के अलावा पेय पदार्थों, तेलों, शहद और दूध में मिलावट बहुत बड़े पैमाने पर होती है। सरकारी और गैर-सरकारी दोनों तरह के दूध मिलावटी हो गए हैं। नियम के मुताबिक मिलावट को रोकने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, मगर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं होती, जो मिलावटखोरों के लिए सबक बने।
गौरलतब है कि मिलावटखोरी करने वालों को कानून के तहत अधिकतम छह साल की सजा हो सकती है। इस कानून को नाकाफी बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय की केएस राधाकृष्णन और एके सीकरी की पीठ ने राज्य सरकारों को सलाह दी है कि जिन राज्यों ने मिलावट के अपराध के लिए अधिकतम उम्र कैद की सजा का प्रावधान किया हुआ है, वे इसे सख्ती से लागू करें।
गौरतलब है कि मिलावट के खिलाफ अनेक कठोर कानून होने के बावजूद मिलावट करने वालों को कोई डर नहीं रहता। आमतौर पर निजी कंपनियों वाले मिलावट करते रहते हैं, लेकिन अब सहकारी कंपनियां द्वारा भी मिलावट करने के समाचार मिलने लगे हैं। दूध में साबुन, डिटर्जेंट, यूरिया की मिलावट आम हो गई है। सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक देश का लगभग उनहत्तर प्रतिशत दूध मिलावटी है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) के मुताबिक देश में कृत्रिम और मिलावटी दूध का कारोबार बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश, ओडीशा और पश्चिम बंगाल ने मिलावटी दूध बेचने वालों के खिलाफ उम्र कैद की सजा का प्रावधान किया हुआ है, मगर दूसरे राज्यों के कानून उतने सख्त नहीं हैं, जिससे मिलावटखोरों में कानून का डर बने और वे मिलावट करने के बारे में सोचें ही नहीं। पिछले दिनों उत्तराखंड के सरकारी दूध ‘आंचल’ और दूध से बने उत्पादों में खतरनाक रसायन मेलामाइन मिलाने की चर्चा मीडिया में रही। जानकारों के मुताबिक यह रसायन किडनी को खराब कर सकता है और मूत्र नली में इससे कैंसर पैदा हो सकता है। गौरतलब है कि मेलामाइन एक कार्बनिक रसायन है, जो प्लास्टिक बनाने के काम आता है।
दूध में मेलामाइन मिले होने की पहचान यह है कि धूप में रखने पर दूध का पैकेट फूल कर गुब्बारा हो जाता है। यूरिया से बने सेंथेटिक दूध की बिक्री भी देश में बड़े पैमाने पर होती है। पंजाब के दूध में दूसरे राज्यों की अपेक्षा चार से बारह गुना डीटीसी का पाया जाना भले ही चर्चा का मुद्दा न हो, लेकिन दूसरे खतरनाक रसायनों की मिलावट होना भी चर्चा का मुद्दा नहीं बन पाया है। इससे साबित होता है कि दूध में मिलावट को लेकर लोगों में भी कोई खास जागरूकता नहीं है।
गौरतलब है कि बिना किसी सरकारी मदद के देश में दूध का सत्तर फीसद कारोबार असंगठित ढांचा संभाल रहा है। देश में दूध उत्पादन में छियानबे हजार सहकारी संस्थाएं जुड़ी हुई हैं। चौदह राज्यों में अपनी दुग्ध सहकारी संस्थाएं हैं। ये संस्थाएं लाखों लीटर दूध का संग्रह करती हैं। आम आदमी इन सहकारी दूध उत्पादक संघों द्वारा संग्रहित या उत्पादित दूध पर यकीन और आंख मूंद कर इस्तेमाल करता है। अगर इन ‘ब्रांडों’ में भी मिलावट होने लगे तो, इन पर से विश्वास हटना लाजमी है।
सवाल है कि किस वजह से सहकारी संस्थाओं के ब्रांडों में मिलावट की जाने लगी है? इससे किसको फायदा हो रहा है? दूध उत्पादन करने वाले किसानों को, दूध के बिचौलियों को या सहकारी दूध उत्पादक संघों को? जाहिर है, इससे उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों को नुकसान हो रहा है। फिर सवाल है कि मिलावट करने की वजह क्या हो सकती है? कौन मिलावट कर रहा है, सहकारी दूध उत्पादक संघों के ब्रांडों में? उत्तराखंड के ‘आंचल’ ब्रांड में मेलामाइन मिलावट की जांच उत्तराखंड का खाद्य एवं सुरक्षा विभाग कर रहा है, लेकिन इससे ‘आंचल’ पर जो आंच आई है, उसकी भरपाई कैसे हो पाएगी?
भारत में श्वेत-क्रांति का जनजागरण अभियान वर्षों से चलाया जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारें दूध का उत्पादन बढ़ाने को लेकर सार्थक दिशा में आगे बढ़ रही हैं। मगर देश में दूध की उपलब्धता, मांग और बिक्री में बहुत अंतर है। ऐसे में मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर मिलावट होने की बात कही जाती है। मिलावट दूध में हो या शहद में, खादान्न में हो या दवाइयों में, अक्षम्य अपराध है। इसके खिलाफ एक माहौल बनाने के साथ, इसे सबसे बड़ा अपराध और पाप घोषित किया जाना चाहिए। यानी हर स्तर पर मिलावट के खिलाफ काम करने की जरूरत है।
