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आरती हिंदू धर्म के सबसे सुंदर और प्रतीकात्मक अनुष्ठानों में से एक है। जब भी हम किसी देवी-देवता की आरती करते हैं, तो दीपक या कपूर की लौ को उनके सामने गोल-गोल, यानी दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में घुमाते हैं। यह परंपरा केवल एक धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक अर्थ छिपा है। आइए जानते हैं कि आरती हमेशा गोल घुमाकर ही क्यों की जाती है और इसका क्या महत्व है। (Photo Source: Unsplash)
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‘आरती’ शब्द का अर्थ और उत्पत्ति
‘आरती’ शब्द संस्कृत के ‘आरात्रिक’ (Ārātrika) शब्द से बना है। शास्त्रों में बताया गया है कि भक्त को भगवान के समक्ष दीपक को सात बार घुमाना चाहिए। माना जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से आरती करता है, उसे भगवान की कृपा और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। (Photo Source: Pexels) -
गोल घुमाने का प्रतीकात्मक अर्थ
दिनभर हमारी इंद्रियां संसारिक चीजों की ओर आकर्षित रहती हैं — आंखें सुंदरता की ओर, जीभ स्वाद की ओर, कान मधुर ध्वनि की ओर। आरती हमें यह याद दिलाती है कि जीवन के ये सभी अनुभव केवल हमारे आनंद के लिए नहीं, बल्कि भगवान के प्रति समर्पित होने चाहिए। दीपक को गोल घुमाना इस बात का प्रतीक है कि जीवन की हर गतिविधि भगवान के चारों ओर घूमती है। वह ही केंद्र हैं, और सब कुछ उन्हीं में आरंभ होकर उन्हीं में विलीन होता है। (Photo Source: Pexels) -
दक्षिणावर्त दिशा का महत्व (Clockwise Motion)
आरती हमेशा दक्षिणावर्त यानी घड़ी की दिशा में की जाती है। हिंदू दर्शन के अनुसार, ब्रह्मांड की गति भी इसी दिशा में चलती है — सूर्य का उदय से अस्त तक का मार्ग, समय का चक्र, सब कुछ clockwise चलता है। इस दिशा में दीपक घुमाना ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ तालमेल (Harmony with the Cosmos) का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी पूजा भी उसी प्राकृतिक और दिव्य क्रम के अनुरूप होनी चाहिए। (Photo Source: Pexels) -
प्रदक्षिणा का सिद्धांत (Principle of Pradakshina)
मंदिरों में देवता की परिक्रमा या प्रदक्षिणा करना एक आम प्रथा है, जिसमें भक्त देवता के चारों ओर घड़ी की दिशा में घूमते हैं। आरती करते समय दीपक को गोल घुमाना एक स्थिर प्रदक्षिणा (symbolic circumambulation) माना जाता है। यह संकेत है कि हम भगवान को जीवन के केंद्र में रखकर अपनी भक्ति अर्पित कर रहे हैं। (Photo Source: Pexels) -
सूर्य और ब्रह्मांड से जुड़ाव
सूर्य को हिंदू दर्शन में प्रकाश, ऊर्जा और जीवन का प्रतीक माना गया है। दीपक को सूर्य का प्रतीक माना जाता है। जब हम दीपक को clockwise घुमाते हैं, तो यह सूर्य के गति-पथ का अनुकरण (mirroring the path of the Sun) होता है। इससे यह भाव आता है कि हम भी उसी दिव्य गति के अनुरूप अपनी चेतना को गतिशील रख रहे हैं। (Photo Source: Unsplash)
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अंधकार का नाश और सकारात्मक ऊर्जा का संचार
आरती के दीपक की लौ केवल प्रकाश नहीं देती, बल्कि यह ज्ञान, शुद्धता और सकारात्मकता का प्रतीक है। जब दीपक को घुमाया जाता है, तो यह माना जाता है कि उसकी ज्योति चारों ओर प्रकाश फैलाकर अंधकार, नकारात्मकता और बुरी ऊर्जा को दूर करती है। (Photo Source: Pexels) -
वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से
आरती करते समय लौ के साथ हवा की गति और मंत्रोच्चारण मिलकर एक सकारात्मक कंपन (positive vibration) पैदा करते हैं। जब आंखें घूमते हुए दीपक का अनुसरण (follow) करती हैं, तो मन एकाग्र हो जाता है और ध्यान केंद्रित होता है। यह ध्यान (meditation) की तरह मन को शांत और केंद्रित करता है। (Photo Source: Unsplash) -
भक्ति और समर्पण का प्रतीक
हर बार जब दीपक नीचे आता है, तो यह भाव होता है कि भक्त अपना शरीर, मन और आत्मा भगवान को अर्पित कर रहा है। आरती का हर चक्र पूर्ण समर्पण का प्रतीक है — जैसे-जैसे दीपक घूमता है, वैसे-वैसे भक्त की अहंकार परत दर परत हटती जाती है, और शुद्ध भक्ति ही शेष रह जाती है। (Photo Source: Pexels) -
सामूहिक आरती की शक्ति
जब मंदिरों में सैकड़ों भक्त एक साथ आरती करते हैं, तो वह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहता, बल्कि एक सामूहिक ऊर्जा का केंद्र बन जाता है। सामूहिक रूप से की गई आरती से वातावरण में सकारात्मकता और शांति का संचार होता है, जो हर भक्त के मन में स्थिरता और आनंद का भाव भर देती है। (Photo Source: Pexels) -
आरती के बाद लौ को छूने का अर्थ
जब आरती के बाद भक्त लौ को हाथ से छूकर आंखों और सिर पर लगाते हैं, तो इसका अर्थ है कि हम उस दिव्य ऊर्जा को अपने भीतर समाहित कर रहे हैं। यह श्रद्धा, आस्था और भक्ति का प्रतीक है। (Photo Source: Unsplash)
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