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भारतीय पौराणिक कथाओं में रावण का नाम केवल एक राक्षस राजा या लंकेश के रूप में नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली योद्धा, विद्वान ब्राह्मण और भगवान शिव के परम भक्त के रूप में लिया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण ने एक बार स्वर्ग तक जाने के लिए सीढ़ियां बनाने की कोशिश की थी? जी हां, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रावण ने स्वर्ग तक पहुंचने के लिए पांच सीढ़ियां बनाने का संकल्प लिया था, जिन्हें आज ‘स्वर्ग की सीढ़ियां’ या ‘रावण की पौड़ियां’ कहा जाता है। (Photo Source: Pexels)
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रावण की अनोखी इच्छा
कथाओं के अनुसार, रावण के मन में एक बार यह विचार आया कि मनुष्य को पुण्य-कर्मों के बिना भी स्वर्ग प्राप्त करने का मार्ग मिलना चाहिए। इस अनोखी इच्छा को पूरा करने के लिए उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनसे अमरता का वरदान मांगा। भगवान शिव ने रावण से कहा कि यदि वह एक ही रात में पृथ्वी से स्वर्ग तक पांच सीढ़ियां बना ले, तो वह अमर हो जाएगा और स्वर्ग तक का मार्ग भी प्राप्त कर सकेगा। (Photo Source: Pexels) -
रावण ने पूरे समर्पण और पराक्रम के साथ कार्य आरंभ किया। उसने एक के बाद एक चार सीढ़ियां बना लीं, लेकिन पांचवीं सीढ़ी बनाते समय थकान से नींद में डूब गया। परिणामस्वरूप, उसकी यह दिव्य योजना अधूरी रह गई। यही कारण है कि आज भारत में रावण द्वारा बनाई गई चार सीढ़ियां तो मौजूद हैं, परंतु पांचवीं सीढ़ी का मार्ग रहस्य बनकर रह गया। (Photo Source: Pexels)
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आज भी मौजूद हैं रावण की बनाई चार सीढ़ियां
रावण द्वारा बनाई गई चार सीढ़ियां आज भी भारत के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद हैं और तीर्थ स्थलों के रूप में पूजी जाती हैं। (Photo Source: Pexels) -
पहली सीढ़ी – हर की पौड़ी, हरिद्वार (उत्तराखंड)
पहली सीढ़ी रावण ने हरिद्वार में बनाई थी, जिसे आज “हर की पौड़ी” कहा जाता है। ‘पौड़ी’ का अर्थ होता है सीढ़ी। मान्यता है कि यहीं से रावण ने स्वर्ग तक जाने की अपनी पहली सीढ़ी बनाई थी। गंगा तट पर स्थित यह स्थान आज भी करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए मोक्ष और पुण्य प्राप्ति का केंद्र है। (Photo Source: Pexels) -
दूसरी सीढ़ी – पौड़ीवाला, सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
दूसरी सीढ़ी का निर्माण हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित पौड़ीवाला शिव मंदिर के पास हुआ था। यह स्थान प्राचीन काल से ही धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां का पौड़ीवाला मंदिर आज भी भक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। (Photo Source: Pexels) -
तीसरी सीढ़ी – चूड़ेश्वर महादेव मंदिर, सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
तीसरी सीढ़ी चूड़ेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी है। यह मंदिर पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है और यहां तक पहुंचने का मार्ग कठिन है। कहा जाता है कि इस सीढ़ी तक पहुंचने वाले व्यक्ति को दिव्य अनुभव और आत्मिक शांति की अनुभूति होती है। (Photo Source: Pexels) -
चौथी सीढ़ी – किन्नौर कैलाश पर्वत, किन्नौर (हिमाचल प्रदेश)
रावण की चौथी सीढ़ी हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित किन्नौर कैलाश पर्वत पर बनाई गई थी। यह पर्वत भगवान शिव का पवित्र निवास स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि रावण इसी सीढ़ी का निर्माण करते हुए थक गया और वहीं सो गया, जिसके कारण पांचवीं सीढ़ी अधूरी रह गई। (Photo Source: Unsplash) -
रावण की अधूरी सीढ़ी – एक प्रतीकात्मक अर्थ
रावण की यह कथा केवल एक पौराणिक घटना नहीं बल्कि गहरे आध्यात्मिक संदेश को समेटे हुए है। पांचवीं सीढ़ी का अधूरा रह जाना इस बात का प्रतीक है कि मानव जीवन में बिना कर्म किए मोक्ष या स्वर्ग की प्राप्ति संभव नहीं। रावण ने भले ही अद्भुत बुद्धि और शक्ति पाई, लेकिन कर्म और मर्यादा के नियमों से ऊपर उठना संभव नहीं हुआ। (Photo Source: Unsplash) -
रावण की आध्यात्मिक आकांक्षा
रावण की यह कोशिश केवल भौतिक निर्माण नहीं थी, बल्कि यह उसकी आत्मिक खोज का प्रतीक थी। वह मानव जीवन की सीमाओं से ऊपर उठकर अमरता और स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग ढूंढना चाहता था। उसकी अधूरी पांचवीं सीढ़ी आज भी इस बात की याद दिलाती है कि चाहे शक्ति और बुद्धि कितनी भी क्यों न हो, नियति से आगे कोई नहीं जा सकता। (Photo Source: Unsplash)
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