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वाघ बकरी चाय ग्रुप (Wagh Bakri Tea) के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई का अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। खबरों के मुताबिक, पराग 15 अक्टूबर को मॉर्निंग वॉक पर निकले थे, तभी उन पर स्ट्रीट डॉग्स ने हमला कर दिया। डॉग्स से बचने के लिए जब वो दौड़े तो फिसलकर गिर गए जिसकी वजह से उनके सिर पर गहरी चोट आई और उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया। इसके तुरंत बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन 49 साल की उम्र में 22 अक्टूबर की शाम को पराग ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
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बता दें, पराग वाघ बकरी चाय में सेल्स, मार्केटिंग और एक्सपोर्ट्स का का देखते थे। पराग देसाई 1995 में इस कंपनी से जुडे थे। तब इस कंपनी का कारोबार से कम था। (Photo Source: WaghBakri/YouTube)
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लेकिन आज सालाना टर्नओवर 2000 करोड़ रुपए को पार कर गया है। इस कंपनी का कारोबार देश के 24 राज्यों में फैला है। इसके अलावा वाघ बकरी चाय को दुनियाभर के 60 देशों में एक्सपोर्ट किया जाता है। (Source: waghbakritea.official/instagram)
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पराग देसाई का परिवार पिछली चार पीढ़ी से इस चाय के कारोबार से जुड़े हुए हैं। इस कंपनी के फाउंडर उनके परदादा यानी दादा के पिता नारनदास देसाई हैं। (Photo Source: WaghBakri/YouTube)
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नारनदास देसाई ने 1915 में साउथ अफ्रीका से भारत लौटे थे। साउथ अफ्रीका में नारनदास 500 एकड़ के चाय बागानों के मालिक थे। वहां उन्होंने 20 साल बिताए थे और चाय की खेती से लेकर बिक्री तक सब काम किया था। मगर वहां उन्हें नस्लीय भेदभाव का शिकार होना पड़ा जिसके बाद वह भारत आ गए। (Source: waghbakritea.official/instagram)
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अपने चाय व्यवसाय के अनुभव पर नारनदास ने अहमदाबाद में गुजरात चाय जिपो की स्थापना की। कुछ सालों में वह गुजरात के सबसे बड़े चाय निर्माता बन गए और साल 1934 में वाघ बकरी चाय ब्रांड लॉन्च किया। (Photo Source: WaghBakri/YouTube)
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चाय के नाम के पीछे एक संदेश छिपा है। ये नाम सामाजिक समानता का संदेश देता है। बता दें, गुजराती भाषा में बाघ को वाघ कहते हैं और बकरी को बकरी कहा जाता है। इस नाम का मकसद ये बताना है कि उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के लोग एक साथ चाय पी सकते हैं। चाय के इस नाम के जरीए उच्च नीच के भेद भाव को मिटाने का संदेश दिया गया है। (Source: waghbakritea.official/instagram)
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