-
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान कई नियमों का पालन किया जाता है, जिनमें से एक है परिक्रमा लगाना। परिक्रमा का अर्थ है देवी-देवताओं या पवित्र स्थल के चारों ओर घड़ी की दिशा में घूमना। (Photo Created by Gemini)
-
यह परंपरा सिर्फ मंदिरों तक सीमित नहीं है, बल्कि पवित्र नदियों, पर्वतों, पीपल के पेड़, तुलसी के पौधे और यज्ञ में अग्नि के चारों ओर भी परिक्रमा की जाती है। (Photo Created by Gemini)
-
इसे प्रदक्षिणा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘दाएं की ओर’ यानी परिक्रमा करते समय भगवान हमेशा हमारे दाईं ओर होने चाहिए। (Photo Created by Copilot)
-
परिक्रमा की पौराणिक कथा
मान्यता है कि परिक्रमा की परंपरा की शुरुआत भगवान गणेश से हुई। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय को पूरी सृष्टि का चक्कर लगाने की प्रतियोगिता दी। (Photo Source: Unsplash) -
कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर निकल पड़े, जबकि गणेश जी ने माता-पिता के चारों ओर तीन बार घूमकर कहा कि माता-पिता ही संपूर्ण सृष्टि हैं। इस बुद्धिमानी से गणेश जी विजेता बने और तभी से परिक्रमा की परंपरा प्रारंभ हुई। (Photo Source: Unsplash)
(यह भी पढ़ें: मंदिर में नंगे पांव क्यों जाते हैं? जानिए इसके पीछे छिपे आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक रहस्य) -
धार्मिक महत्व
पापों का नाश – माना जाता है कि परिक्रमा करने से मन, वाणी और शरीर से किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं।
सुख-समृद्धि की प्राप्ति – परिक्रमा करने से घर में सुख-शांति और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
सकारात्मक ऊर्जा – भगवान के चारों ओर घूमने से उनके आभामंडल की सकारात्मक ऊर्जा भक्त में समाहित होती है, जिससे नकारात्मकता दूर होती है। (Photo Source: Unsplash) -
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
मंदिरों का निर्माण वास्तु और ऊर्जा विज्ञान के अनुसार होता है। गर्भगृह में अत्यधिक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। परिक्रमा करने से यह पॉजिटिव एनर्जी हमारे चारों ओर एक ऊर्जा-चक्र बनाकर हमें मानसिक शांति और आत्मबल प्रदान करती है। (Photo Created by Copilot) -
यह प्रक्रिया शरीर के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि परिक्रमा धीरे-धीरे चलने का एक रूप है जो रक्त संचार (Blood Circulation) को बढ़ाता है और मन को एकाग्र करता है। यानी नियमित परिक्रमा से रक्तसंचार भी बेहतर होता है और शरीर में लचीलापन आता है। (Photo Source: Unsplash)
-
परिक्रमा के नियम
हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में (दाएं से बाएं) परिक्रमा करें। विषम संख्या में परिक्रमा लगाना शुभ होता है (1, 3, 5, 7, 9 या 21)। परिक्रमा करते समय बात न करें, मन भगवान में लगाएं। (Photo Source: Unsplash) -
देवता के अनुसार संख्या –
अलग-अलग देवताओं की परिक्रमा संख्या भिन्न होती है , जैसे:- गणेश जी की 1 परिक्रमा, सूर्य देव की 2, हनुमान जी की 3, विष्णु एवं देवी देवी की 4, शिवलिंग की परिक्रमा आधी की जाती है, जलाधारी को पार नहीं किया जाता और विशेष पुण्य के लिए 21 परिक्रमा को अत्यंत शुभ माना गया है। परिक्रमा करते समय भगवान का ध्यान और मौन रहना श्रेष्ठ माना जाता है। (Photo Source: Unsplash)
(यह भी पढ़ें: मंदिरों की घंटी बजाने का रहस्य – जानिए क्या होता है असर और इसके पीछे का विज्ञान)
