सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन के कारण 5 दिन पहले मारे गए 10 भारतीय जवानों में से एक का शव 8 फरवरी को मिला है। जवान का शव 30 फुट बर्फ काटकर निकाला गया है। सियाचिन, दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है, जहां दुश्मन की गोली से ज्यादा बेरहम मौसम होता है। सियाचिन में भारतीय फौजियों की तैनाती का यह कड़वा सच है। इस बर्फीले रेगिस्तान में जहां कुछ नहीं उगता, वहां सैनिकों की तैनाती का एक दिन का खर्च ही 4 से 8 करोड़ रुपए आता है। फिर भी तीन दशक से यहां भारतीय सेना पाकिस्तान के नापाक इरादों को नाकाम कर रही है। आइए जानते हैं सियाचिन की उन चुनौतियों के बारे में जो दुश्मन की गोली से भी ज्यादा खतरनाक हैं 'द ट्रिब्यून' की रिपोर्ट के अनुसार, सियाचिन की रक्षा करते हुए 1984 से अब तक 869 सैनिकों की मौत हो चुकी है। -
सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय फौज की करीब 150 पोस्ट हैं, जिनमें करीब 10 हजार फौजी तैनात रहते हैं। अनुमान है कि सियाचिन की रक्षा पर साल में 1500 करोड़ रुपए खर्च होते हैं।
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सियाचिन में अक्सर दिन में तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे और रात में माइनस 70 डिग्री तक चला जाता है।
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सियाचीन ग्लैशियर में सैनिकों को कठिनतम मौसमी दशाओं में ड्यूटी करनी पड़ती है।
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सियाचिन के लिए फौजियों की पहली ट्रेनिंग कश्मीर के खिल्लनमर्ग के गुज्जर हट में बने हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल से शुरू होती है। इसी स्कूल में सेना के जवानों को बर्फ पर रहने, पहाड़ काट कर ऊंचाई पर चढ़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद सैनिकों को सियाचिन ग्लेशियर से पहले बने बेस कैंप के सियाचिन बैटल स्कूल तक ले जाया जाता है।
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सियाचिन बैटल स्कूल में पांच हफ्ते की विशेष ट्रेनिंग के बाद सियाचिन की चौकियों पर तैनाती के लिए उन्हें हेलिकॉप्टर से सफर करना पड़ता है। इन चौकियों पर रसद और गोला-बारूद की अपूर्ति भी हेलीकॉप्टर से ही की जाती है। कोई सैनिक बीमार पड़ जाए तो उसे बेस कैंप के अस्पताल में पहुंचाने के लिए भी हेलिकॉप्टर का ही इस्तेमाल किया जाता है।
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सियाचिन में तैनाती के तीन महीने के दौरान सैनिकों को नहाने को नहीं मिलता, न वो दाढ़ी बना पाते हैं। हर रात अपनी चौकी के सामने से उन्हें बर्फ हटानी पड़ती है, क्योंकि बर्फ नहीं हटाई जाए तो बर्फ के दबाव से जमीन फटने का खतरा होता है। पानी पीने के लिए बर्फ पिघलानी पड़ती है। सैनिकों के पास एक खास तरह की गोली होती है, जिसे पिघले पानी में डालकर उसे पीने लायक बनाया जाता है।
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मुश्किल ट्रेनिंग और जज्बे के बावजूद सैनिकों को हाइपोक्सिया, हाई एल्टीट्यूड एडिमा जैसी बीमारियां हो जाती हैं, जिससे फेफड़ों में पानी भर जाता है, शरीर के अंग सुन्न हो जाते हैं।
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सियाचिन में भारतीय फौजों की किलेबंदी इतनी मजबूत है कि पाकिस्तान चाहकर भी इसमें सेंध नहीं लगा सकता। दरअसल, यह सफलता है 1984 के उस मिशन मेघदूत की है, जिसे भारतीय सेना ने सियाचिन पर कब्जे के लिए शुरू किया था। शह और मात के इस खेल में भारत ने पाकिस्तान को जबरदस्त शिकस्त दी।
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दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन में भारत और पाकिस्तान की फौजों पिछले तीन दशक से आमने-सामने डटी हुई हैं। 1984 से पहले सियाचिन में यह स्थिति नहीं थी, वहां किसी भी देश की फौज नहीं थी।
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1949 के कराची समझौते और 1972 के शिमला समझौते में दोनों देशों के बीच यह तय हुआ था कि प्वाइंट NJ 9842 के आगे के दुर्गम इलाके में कोई भी देश नियंत्रण की कोशिश नहीं करेगा। तब तक उत्तर में चीन की सीमा की तरफ प्वाइंट NJ 9842 तक ही भारत पाकिस्तान के बीच सीमा चिन्हित थी, लेकिन पाकिस्तान की नीयत खराब होते देर नहीं लगी। उसने इस इलाके में पर्वतारोही दलों को जाने की इजाजत देनी शुरू कर दी, जिसने भारतीय सेना को चौकन्ना कर दिया।
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80 के दशक से ही पाकिस्तान ने सियाचिन पर कब्जे की तैयारी शुरू कर दी थी। बर्फीले जीवन के तजुर्बे के लिए 1982 में भारत ने भी अपने जवानों को अंटार्कटिका भेजा। 1984 में पाकिस्तान ने लंदन की कंपनी को बर्फ में काम आने वाले साजो-सामान की सप्लाई का ठेका दिया। भारत ने 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर दिया। पाकिस्तान 17 अप्रैल से सियाचिन पर कब्जे का ऑपरेशन शुरू करने वाला था। हालांकि भारत ने तीन दिन पहले ही कार्रवाई कर उसे हैरान कर दिया, लेकिन ये ऑपरेशन आसान नहीं था।
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सियाचिन हिमालय के कराकोरम रेंज में है, जो चीन को भारतीय उपमहाद्वीप से अलग करती है। सियाचिन 76 किलोमीटर लंबा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। 23 हजार फीट की ऊंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर इंद्र नाम की पहाड़ी से शुरू होता है।
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सियाचिन ग्लेशियर के 15 किमी पश्चिम में सलतोरो रिज शुरू होता है। सलतोरो रिज तक के इलाके पर भारतीय सेना का नियंत्रण है। सलतोरो रिज के पश्चिम में ग्योंग ग्लेशियर से पाकिस्तानी सेना का नियंत्रण शुरू होता है।
